MP में कुपोषित हैं 10 लाख से ज्यादा बच्चे, दिग्विजय सिंह ने सीएम शिवराज को लिखा पत्र

आंगनवाड़ियों में दर्ज 65 लाख बच्चों में से एक लाख बत्तीस हजार ठिगने हैं। इसी प्रकार छः लाख तीस हजार कम वजन के होकर कुपोषित हैं। दुबलापन के शिकार बच्चे 1 लाख 37 हजार है। औसत से कम उंचाई-लंबाई वाले बच्चे 2 लाख 64 हजार हैं

Updated: May 09, 2022, 01:18 PM IST

भोपाल। मध्य प्रदेश में कुपोषण के बढ़ते मामलों को लेकर राज्य सरकार की एक बार फिर किरकिरी शुरू हो गई है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कुपोषण के मुद्दे पर सीएम शिवराज को पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने कुपोषण के हैरान करने वाले आंकड़े साझा करते हुए इसके विरुद्ध लड़ाई में उचित कदम उठाने की मांग की है।

सीएम चौहान को संबोधित पत्र में दिग्विजय सिंह ने लिखा है कि, 'मध्य प्रदेश में लाखों की संख्या में बच्चे कुपोषण से जूझ रहे हैं। नौनिहाल प्रतिवर्ष असमय मौत का शिकार बन रहे हैं। प्रदेश में दस लाख से अधिक बच्चे कम वजन के होकर कुपोषित श्रेणी में सांसे ले रहे है। इन बच्चों को हजारो करोड़ रुपये के बजट से कुपोषण दूर करने की जगह आप प्रदेश में ’’पोषण मटका आहार’’ नाम से अभियान चलाकर मध्यवर्गीय परिवारों से ही लाखों क्विंटल अनाज की उगाही करवा रहे हैं।'

सिंह ने आगे लिखा कि, 'प्रदेश में 1980 के दशक से आंगनबाडियों के माध्यम से कुपोषण को दूर करने के लिए अभियान चल रहा है। प्रदेश के महिला बाल विकास विभाग के पास इस महत्वपूर्ण अभियान की जबावदारी 1986 से हैं, जहां आये दिन भ्रष्टाचार की खबरें आती है। केन्द्र सरकार द्वारा पोषित आंगनबाड़ियों के संचालन के लिए शून्य से छः वर्ष तक के बच्चों के लिए प्रति बालक करीब पौंने आठ रुपये प्रतिदिन का बजट है। इसी प्रकार गर्भवती और धात्री माताओं को नौ रुपये प्रतिदिन के हिसाब से हर मंगलवार पूरक पोषण आहार दिये जाने का प्रावधान है। शाला त्यागी किशोरी बालिकाओं को भी ’’टेक होम राशन’’ दिया जाता है।'

सिंह ने लिखा कि, 'कुपोषण दूर करने के लिए राज्य सरकार द्वारा हर वर्ष हजारों करोड़ रुपये का बजट गर्म नास्ता, खाना और पोष्टिक आहार वाले फल और दूध के लिए रखा जाता है। आपके नेतृृत्व में प्रदेश में सरकार चलते अब सत्रह वर्ष हो गए है लेकिन कुपोषण कम होने की बजाए बढ़ता जा रहा है। मंडला-डिंडोरी के बैगा आदिवासी हो या श्योपुर-कराहल के सहरिया आदिवासी। सभी गरीब वर्ग के बच्चे और माताऐं कुपोषण के जाल में फंसकर छटपटा रही है। राज्य सरकार कुपोषण के लिए आवंटित बजट में होने वाले भ्रष्टाचार को रोकने की जगह प्रदेश की लगभग 23 हजार ग्राम पंचायतों और 52 हजार ग्रामों में सरकारी अमले को ग्रामीणों के घर भेजकर गेहूं, चना, मूंग, चावल, ज्वार, मक्का आदि अनाज मांग रहे हैं। 

पूर्व सीएम ने कहा कि प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में 70 प्रतिशत से अधिक आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही है। जिसमें 90 प्रतिशत गरीब परिवार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग के है। प्रदेश में 5 करोड़ लोगों को सरकार प्रतिमाह खाने और जीने के लिए 5 किलों गेंहू दे रही है। अब इन्हीं ग्रामवासियों के दरवाजे सरकारी अमले को भेजकर अनाज मांगा जा रहा है। फिर सरकारी अधिकारी इस लाखों क्विंटल अनाज को खुले बाजार में बेचकर कुपोषण भगायेंगे। किसानों से मांगे गये अनाज को बेचकर तेल, घी, नमक, शक्कर, गुड और मेवा खरीदा जायेगा।

सिंह के मुताबिक प्रदेश में संचालित 1 लाख आंगनबाड़ी और उप आंगनबाड़ी केन्द्रो का सुचारु रुप से संचालन करने और कुपोषित बच्चों के लिये आवंटित बजट का एक-एक पैसा उन तक पहंुचाने की जगह प्रदेश में व्याप्त भारी कुपोषण से ध्यान भटकाने के लिये ’’पोषण मटका अभियान’’ चलाया जा रहा है जबकि प्रदेश की 10 हजार आंगनवाडियों में अभी स्वच्छ पेय जल, 30 हजार आंगनवाड़ियों में शौंचालय तक नहीं है। कई केन्द्रों में अभी तक वजन लेने की मशीनें नहीं हैं। 25 हजार से अधिक आंगनवाड़ी केन्द्र किराये के कमरों में संचालित हैं। ग्रामों और कस्बों में 10 हजार आंगनवाड़ी कच्चे मकानों में चल रही है। 

सिंह के मुताबिक आंगनवाड़ियों के लिये आये बजट से प्रशासनिक व्यवस्था ठीक करने की जगह आंगनवाड़ी गोद देने का अभियान भी वर्षों से कई रूपों में चल रहा है। लेकिन कुपोषण जस का तस है। अभी भी आंगनवाड़ियों में दर्ज 65 लाख बच्चों में से एक लाख बत्तीस हजार ठिगने हैं। इसी प्रकार छः लाख तीस हजार कम वजन के होकर कुपोषित हैं। दुबलापन के शिकार बच्चे 1 लाख 37 हजार है। औसत से कम उंचाई-लंबाई वाले बच्चे 2 लाख 64 हजार हैं। ये शर्मसार करने वाले आंकड़े राज्य विधानसभा में सरकार ने एक विधायक के जबाब में सदन के पटल पर रखे थे। इन बच्चों की माताओं की स्थिति भी बेहद दयनीय है। राज्य में शिशु मृत्यु दर का ग्राफ भी कम नहीं हो रहा है। प्रसव के दौरान हर माह डेढ़ हजार महिलाएँ दम तोड़ रही है।

उन्होंने सीएम चौहान से मांग करते हुए लिखा है कि  "पोषण मटका अभियान’’ के नाम पर प्रदेश के दो करोड़ परिवारों से मांग कर आंगनवाड़ी चलाने के अभियान की जांच कराई जाये और ऐसे तुगलकी फरमान से कुपोषण के खिलाफ जंग के अभियान पर पुनः विचार कर बंद किया जाये। उन्होंने सुझाव दिया है कि सरकार के पास यदि कुपोषण दूर करने के लिये बजट की कमी पड़ गई हो तो बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से पार्टी फण्ड में चंदा लेने के जगह आंगनवाड़ियों के लिये सी.एस.आर. मद की राशि ली जानी चाहिये।