मंडला कलेक्टर ने रद्द किया आदिवासी दिवस की छुट्टी का आदेश, राजनीतिक दबाव में आने का लगा आरोप

मंडला कलेक्टर ने आदिवासी संगठनों और कांग्रेस विधायक अशोक मर्सकोले की गुहार के बाद आदिवासी दिवस के अवसर पर स्थानीय अवकाश की घोषणा की थी, जिसके बाद कलेक्टर ने गुरुवार को अवकाश का आदेश जारी किया, लेकिन उसी दिन कलेक्टर ने अपना यह आदेश निरस्त भी कर दिया

Updated: Aug 06, 2021, 01:30 PM IST

Photo Courtesy: The Hans India
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मंडला। विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर स्थानीय अवकाश घोषित करने के बाद मंडला कलेक्टर ने अपना आदेश निरस्त कर दिया है। मंडला कलेक्टर द्वारा अवकाश रद्द करना विवादों में घिर गया है। कलेक्टर ने महज दो घंटों के अंदर अपना आदेश बदला है। कलेक्टर द्वारा अवकाश रद्द किए जाने के बाद मंडला ज़िले के आदिवासियों में ज़िला प्रशासन और राज्य सरकार के खिलाफ आक्रोश बढ़ गया है। 

दरअसल आदिवासी संगठनों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की अपील के बाद मंडला कलेक्टर ने गुरुवार को एक आदेश जारी किया, जिसमें 9 अगस्त को आदिवासी दिवस के अवसर पर स्थानीय अवकाश की घोषणा की गई। लेकिन इसके ठीक दो घंटे बाद कलेक्टर ने एक नया और संशोधित आदेश जारी कर दिया, जिसमें पुराने आदेश को निरस्त करने की घोषणा की गई। जल्दबाजी में कलेक्टर द्वारा अपने ही आदेश को बदले जाने से आदिवासी समाज में आक्रोश तो बढ़ा है ही, लेकिन साथ ही कलेक्टर पर राजनीतिक दबाव में आकर आदेश बदलने का आरोप लगना भी शुरू हो गया है। 

निवास विधानसभा क्षेत्र से विधायक अशोक मर्सकोले ने हम समवेत को बताया कि बीते बुधवार को आदिवासी संगठनों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ कलेक्टर की एक मीटिंग हुई थी। कांग्रेस विधायक ने बताया कि कलेक्टर के साथ हुई इस मीटिंग वे भी मौजूद थे और इसके साथ ही जिला प्रशासन के सभी आला अधिकारी भी मीटिंग में शामिल थे। अशोक मर्सकोले ने कहा कि इस मीटिंग में कलेक्टर को कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए आदिवासी संगठनों ने आदिवासी दिवस मनाने का आश्वासन दिया था।

कांग्रेस विधायक ने मीटिंग का ज़िक्र करते हुए बताया कि कलेक्टर और ज़िला प्रशासन के सभी अधिकारी आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों की बातों से आश्वस्त थे। चूंकि कलेक्टर अपने विशेषाधिकार का उपयोग कर स्थानीय स्तर पर तीन छुट्टियां घोषित कर सकती थीं, इसलिए उन्होंने आदिवासी दिवस के अवसर पर स्थानीय अवकाश घोषित करने पर सहमति प्रदान कर दी। 

मीटिंग में बनी सहमति के आधार पर कलेक्टर ने अगले दिन गुरुवार को स्थानीय अवकाश घोषित किया। कलेक्टर द्वारा आदेश जारी करने के बाद ज़िले के आदिवासी समाज में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। लेकिन जल्द ही ज़िले के आदिवासियों की खुशी आक्रोश में उस समय तब्दील हो गई, जब कलेक्टर ने अचानक ही अपना फैसला बदल दिया। 

कांग्रेस विधायक ने कहा कि कलेक्टर द्वारा आनन फानन में अपने ही आदेश को बदला जाना चौकाने वाला तो है ही लेकिन इसके साथ ही राजनीतिक दबाव में आकर अवकाश को निरस्त करने की संभावना है। कांग्रेस विधायक ने कहा कि प्रदेश की पूर्वर्ती कमल नाथ सरकार ने आदिवासी दिवस पर शासकीय अवकाश की घोषणा कर प्रदेश के लाखों आदिवासियों को सौगात दी थी। 

कांग्रेस विधायक ने कहा कि कमल नाथ सरकार ने आदिवासी दिवस के अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन के लिए प्रदेश के कुल 89 आदिवासी विकास खंडों में राशि भी आवंटित की थी। लेकिन शिवराज सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही आदिवासियों का दमन शुरू हो गया है। कांग्रेस विधायक ने कहा कि कलेक्टर द्वारा अपने ही आदेश को बदला जाना भी शिवराज सरकार द्वारा आदिवासियों के दमन का ही एक उदाहरण है। 

स्थानीय अवकाश रद्द होने के बाद ज़िले के आदिवासी संगठनों ने शुक्रवार शाम को मीटिंग बुलाई है। कांग्रेस विधायक ने कहा कि इस मीटिंग में आगे की रणनीति तैयार की जाएगी। इस पूरे मामले में जब हम समवेत ने मंडला कलेक्टर से संपर्क करने की कोशिश की तब कलेक्टर के किसी अन्य मीटिंग में होने की जानकारी मिली। 

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आदिवासी दिवस के अवसर पर शासकीय अवकाश घोषित करने के कमल नाथ सरकार के फैसले को शिवराज सरकार ने रद्द कर दिया। इसके साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए दी जाने वाली राशि पर भी रोक लगा दी गई। इतना ही नहीं मध्य प्रदेश विधानसभा का आगामी मॉनसून सत्र भी 9 अगस्त यानी आदिवासी दिवस के अवसर पर ही शुरू होने जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने आदिवासी दिवस के अवसर को देखते हुए चार दिवसीय सत्र को एक दिन के लिए टालने की मांग की थी। 

कांग्रेस नेता ने इस संबंध में राज्य के सीएम शिवराज सिंह चौहान और विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम को हाल ही में एक पत्र भी लिखा था। जिसमें उन्होंने बताया था कि देश भर के राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा आदिवासी मध्य प्रदेश में रहते हैं। जिनकी आबादी राज्य की कुल आबादी का 21 फीसदी है। प्रदेश के 47 विधायक, 6 लोकसभा और दो राज्यसभा सांसद भी आदिवासी समुदाय से आते हैं।