Bhujaria, : मेल मिलाप की परंपरा पर कोरोना का साया

Kajaliya Festival: रक्षाबंधन के दूसरे दिन मनाया जाता है भुजरिया लोक पर्व, भोपाल में नवाब काल से किन्नर जुलूस की परम्परा

Updated: Aug 05, 2020, 07:46 AM IST

photo courtesy : patrika
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भोपाल। मध्य प्रदेश के कई इलाकों में रक्षाबंधन के अगले दिन भुजरिया या कजलियां पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। प्रदेश के मालवा, बुंदेलखंड, महाकौशल और विंध्य क्षेत्रों में भुजरिया पर्व की धूम होती है। इस दिन भुजरियों को कुओं, ताल-तलैयों पर ले जाकर भगवान को भेंट किया जाता है। इसके बाद लोग एक दूसरे से भुजरिया बदलकर गले मिलते हैं। इस दिन गुजरे वर्ष में हुए अपराध की क्षमा माँग कर शभ कामनाओं का आदान प्रदान भी होता है। 

भुजरिया पर्व की तैयारी रक्षाबंधन से हफ्ता भर पहले से होने लगती है। लोग मिट्टी के पात्र में गेहूं के दानों को अंकुरित होने के लिए रख देते हैं। जिन्हे पानी के छींटों से सींचा जाता है। ये गेंहू की भुजलियां शांति और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती हैं। हफ्ते भर में गेहूं की कोपलें बड़ी हो जाती हैं, जिसे लोग भगवान को अर्पित करने के बाद इसका आदान प्रदान करते हैं, बधाई देतें हैं। इस मौके पर लोकगीत गाने की परंपरा है।

भोपाल में किन्नर निकालते हैं भव्य भुजलियां जुलूस

रक्षाबंधन के बाद भोपाल में किन्नर भुजरिया जुलूस निकालते हैं। यह परंपरा नवाबी शासन काल से चली आ रही है। किन्नरों का जुलूस भोपाल के मंगलवारा, बुधवारा, तलैया, चौक बाजार, पीरगेट, रायल मार्केट होते हुए लालघाटी पहुंचता है, जहां भुजरियों का विर्सजन होता है।

इस परंपरा से जुड़ी भी एक किंवदंती है जिसके अनुसार एक बार भोपाल में भीषण सूखा और अकाल पड़ा था। जिससे मुक्ति पाने के लिए राजा भोज ने ज्योतिषाचार्यों से सलाह मांगी। ज्योतिषी ने राजा भोज से किन्नरों को भुजरिया करने का आग्रह करने को कहा, तभी से यह परंपरा भोपाल में चली आ रही है। वहीं कुछ लोगों का यह मानना है कि नबावी दौर में अकाल पड़ने पर भोपाल के किन्नरों ने मंदिरों और मस्जिदों में जाकर बारिश के लिए दुआ की थी और भुजरिया पर्व मनाया था। उनकी दुआ रंग लाई और भरपूर बारिश हुई थी। तब से भोपाल में भुजरिया पर्व की परंपरा शुरु हुई, किन्नर इसका आयोजन बड़ी धूमधाम से करते आ रहे हैं।

जुलूस की रौनक देखने बड़ी संख्या में जमा होते हैं लोग

भोपाल की सड़कों से गुज़रने वाले इस जुलूस में सारंगी और ढोलक की थाप पर मंगल गीतों पर झूमते हुए किन्नरों की टोलियों को देखने बड़ी संख्या में लोग जमा होते हैं। किन्नरों के जुलूस में परंपरागत पहनावे के साथ साथ अब मार्डन रंग भी देखने को मिलता है। कई किन्नर जहां तरफ साड़ी पहने दिखते हैं, वहीं दूसरी तरफ़ वेस्टर्न ड्रेसेज में कई किन्नर नजर आते हैं। बॉलीवुड के फैशन का रंग भी किन्नरों पर साफ़ नज़र आता है। किन्नरों के आशीर्वाद की मान्यता के चलते लोग भुजरिया लेना शुभ मानते है। मिट्टी के पात्र में गेंहूं लेकर लोग बड़ी संख्या में शामिल होते हैं।

कई प्रदेशों के किन्नर होते हैं जुलूस में शामिल

भुजरिया के मौके पर भोपाल में होने वाले किन्नरों के जुलूस में मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र के साथ देश के अन्य हिस्सों से सैकड़ों किन्नर शामिल होने के लिए भोपाल आते हैं। 

बुंदेलखंड में विजय दिवस के रूप में मनाते हैं भुजरिया पर्व

भुजरिया पर्व को लेकर कई लोककथाएं प्रचलित हैं। बुंदेलखंड में आला-उदल-मलखान की वीरता के किस्से लोगों को मुंह जुबानी याद हैं। कहा जाता है महोबा के राजा परमाल की बेटी राजकुमारी चन्द्रावलि का अपहरण करने के लिए दिल्ली के राजा पृथ्वीराज ने महोबा पर चढ़ाई कर दी थी। राजकुमारी उस समय कजली विसर्जन करने अपनी सहेलियों के साथ तालाब गईं थीं। राजकुमारी को पृथ्वीराज से बचाने के लिए महोबा के वीर सपूत आल्हा-उदल-मलखान ने अपना पराक्रम दिखाई थी।

इन दोनों के साथ राजकुमारी चन्द्रावली का मामेरा भाई अभई भी था। इस लड़ाई में अभई और राजा परमाल का एक बेटा रंजीत वीरगति को प्राप्त हो गए। जिसके बाद आल्हा, उदल, मलखान, ताल्हन, सैयद, राजा पहरमाल के दूसरे बेटे ब्रह्मा ने पृथ्वीराज की सेना को हराकर राजकुमारी को बचाया था। इसी के बाद से पूरे बुंदेलखंड में भुजलिया या कजलियां पर्व को विजय दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

कोरोना काल में नहीं किन्नर नहीं निकालेंगे भुजरिया जुलूस

हर साल धूमधाम से मनाया जाने वाला भुजरिया पर्व इस साल सादगी से घर पर रह कर ही मनाया जाएगा। जहां हर साल धूमधाम के साथ शोभायात्रा निकालकर भुजरिया विसर्जन होता था। वहीं इस बार कोरोना महामारी के मद्देजनर जुलूस नहीं निकाले जा रहे हैं। ना ही किसी तरह का मेला लगेगा। लोगों से अपील की गई है कि वे घर पर ही रहकर पर्व मनाएं। लोगों को भीड़ एकत्रित न करते हुए सादगी के साथ पूजा पाठ करें।