विंध्य में बवाल ला सकता है कैबिनेट विस्तार

एक तरफ चुनौती विंध्य की है तो दूसरी तरफ चंबल इलाका है, जहां भारतीय जनता पार्टी को करारी हार मिली थी वहां भी संतुलन बनाना होगा।

Publish: May 05, 2020, 08:09 AM IST

कहते हैं कि राजनीति बड़ी निष्ठुर चीज है। इसमें आपको अपने वर्चस्‍व वाले क्षेत्र में भी सफलता को बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है तो जिन क्षेत्रों में नाकाम रहे हैं वहां सफलता पाने के लिए पूरी ताकत लगानी पड़ती है। एमपी में भाजपा इनदिनों इसी कथन को अनुभव कर रही है। मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के 2018 के विधानसभा चुनाव में हार गई थी। जब क्षेत्रवार विश्लेषण हुआ तो पता चला कि मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी इलाके में विंध्य इलाके में सबसे मजबूत और चम्बल इलाके में सबसे कमजोर साबित हुई। इसके बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन गई। लेकिन 15 महीने में ही भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पार्टी को तोड़कर अपनी सरकार बना ली है। अब जब मंत्रिमंडल का विस्तार होना है तो भारतीय जनता पार्टी के सामने बड़ी चुनौती इस बात की है कि विंध्य क्षेत्र का विशेष ध्यान रखा जाए।

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स्थानीय नेतृत्व की मांग है कि विंध्य क्षेत्र से ज्यादा से ज्यादा लोग मंत्रिमंडल में रखे जाएं क्योंकि 2018 में यहां से अप्रत्याशित तौर पर भाजपा को बंपर 28 सीटें जीती थी। अब दावा यही है कि जिस विंध्य क्षेत्र ने भारतीय जनता पार्टी की लाज बचाई लेकिन वहां से भारतीय जनता पार्टी कम से कम पांच से छह मंत्री बनाये। ऐसा इसलिए क्योंकि पिछली सरकार में केवल राजेंद्र शुक्ला को ही प्रतिनिधित्व मिला था।

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विंध्य क्षेत्र में चित्रकूट सतना, रीवा, सीधी, सिंगरौली और अनूपपुर जैसे जिले आते है। इन इलाकों में विशेष तौर पर अब कई सारे मंत्री पद दिए जाने की मांग उठ रही है। इसकी एक वजह यह भी है कि क्षेत्र में बीते सालों में कई सारे विधायक अब वरिष्‍ठ हो चुके हैं जिनको अभी तक मौका नहीं मिला है। इन विधायकों में गिरीश गौतम, केदारनाथ शुक्ला, पंचूलाल प्रजापति और नारायण त्रिपाठी का नाम शामिल है। इसके अलावा कांग्रेस के बड़े नेता अजय सिंह राहुल को हराने वाले शरदेंदु तिवारी का नाम भी प्रमुखता से शामिल है।

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ब्राह्मण नेता नारायण त्रिपाठी भी लगातार कांग्रेस से संपर्क में रहे हैं इसलिए उनको भी एडजस्ट किया जाना बेहद जरूरी दिखाई दे रहा है। इन्हीं समस्याओं से घिरे होने के चलते मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के सामने मंत्रिमंडल विस्तार में विंध्य इलाके को प्रमुखता देना बड़ी चुनौती नजर आ रहा है। ऐसा नहीं होता है तो पिछले कई वर्षों से पद पाने से वंचित विंध्य क्षेत्र में कई सारे नेता बागी हो सकते हैं। अगर वे नाराज भी हुए तो कांग्रेस के लिए एक बार फिर से अपने लिए मौका नजर आएगा।

जाहिर है एक तरफ चुनौती विंध्य की है तो दूसरी तरफ चंबल इलाका है, जहां भारतीय जनता पार्टी को करारी हार मिली थी वहां भी संतुलन बनाना होगा। क्यूंकि चंबल में होने वाले उपचुनावों को भी ध्यान में रखना है। फिलहाल मंत्रिमंडल विस्तार ही शिवराज के लिए सरकार चलाने से ज्यादा बड़ी चुनौती दिख रहा है।