क्या तमिलनाडु में करुणानिधि के बड़े बेटे से हाथ मिलाएगी बीजेपी

अंग्रेज़ी अखबार इंडियन एक्सप्रेस का दावा, करुणानिधि के बड़े बेटे अड़ागिरी अपनी अलग पार्टी बनाकर करेंगे बीजेपी से समझौता, 21 नवंबर को अमित शाह से मुलाक़ात की भी संभावना

Updated: Nov 17, 2020, 03:00 AM IST

Photo Courtesy: Jansatta
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चेन्नई। तमिलनाडु की सियासत में कदम रखने की ज़मीन तलाशती बीजेपी प्रदेश के बड़े नेता और डीएमके के संस्थापक स्वर्गीय एम करुणानिधि के बेटे एमके अड़ागिरी से हाथ मिला सकती है। ये दावा अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस ने किया है। अखबार का कहना है कि डीएमके में हाशिये पर चल रहे अड़ागिरी जल्द ही एक नई पार्टी बनाने का एलान कर सकते हैं, जिसका नाम कलैनार द्रविड़ मुनेत्र कड़गम यानी केडीएमके रखे जाने की संभावना है। (तमिलनाडु में करुणानिधि को सम्मान से कलैनार कहा जाता है।)

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में यह दावा भी किया है कि अड़ागिरी 21 नवंबर को गृह मंत्री अमित शाह की चेन्नई यात्रा के दौरान उनसे मुलाक़ात भी करने वाले हैं। ख़बर के मुताबिक़ इस मुलाक़ात से पहले वे अपनी नई पार्टी बनाने का एलान कर देंगे, ताकि अमित शाह से मुलाक़ात के दौरान दोनों पार्टियों के बीच गठजोड़ को अंतिम रूप दिया जा सके। अख़बार के मुताबिक़ अड़ागिरी के साथ बीजेपी की बातचीत काफ़ी दिनों से चल रही थी, जो अब काफ़ी आगे बढ़ चुकी है। हालांकि इसके साथ ही अखबार ने ये भी बताया है कि इस बातचीत या अड़ागिरी से हाथ मिलाने की संभावना के बारे में बीजेपी की तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष एल मुरुगन ने कोई भी जानकारी होने से इनकार किया है।

तमिलनाडु की राजनीति में फ़िलहाल बीजेपी की कोई ख़ास हैसियत नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी वहां एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। यही वजह है कि पार्टी वहाँ खुद को आगे बढ़ाने के लिए किसी तमिल पार्टी का कंधा तलाश रही है। कांग्रेस पार्टी की नेता और फ़िल्म अभिनेत्री ख़ुशबू को बीजेपी में लाने के पीछे भी पार्टी की यही कोशिश थी। और अब अड़ागिरी को साथ लेकर बीजेपी तमिलनाडु में फ़ौरन चुनाव जीतने की उम्मीद भले ही न करे पाए, लेकिन डीएमके वोटों में सेंध लगाकर उसे कमज़ोर करने और राज्य में अपनी पुरानी सहयोगी पार्टी एआईएडीएमके की मदद करने की उम्मीद ज़रूर कर सकती है।

डीएमके और करुणानिधि की विरासत ब्राह्मणवाद के विरोध और नास्तिकता को बढ़ावा देने वाली विचारधारा से जुड़ी है, जिसका बीजेपी की राजनीति से कोई मेल नहीं है। इसलिए अड़ागिरी बीजेपी के साथ जाकर उस विरासत पर अपना बचा-खुचा दावा भी खो बैठेंगे, लेकिन उनके पास वैसे भी खोने के लिए कुछ नहीं है। डीएमके पर फ़िलहाल उनके छोटे भाई स्टालिन का नियंत्रण है , जो उनके पिता करुणानिधि के जीवनकाल में भी उनके उत्तराधिकारी बन चुके थे। पिछले कुछ वर्षों में अड़ागिरी तमिलनाडु की राजनीति में ज़रा भी सक्रिय नहीं रहे हैं। ऐसे में उन्हें साथ लेकर बीजेपी को दरअसल कितना फ़ायदा होगा, ये तो आगे चलकर ही पता चलेगा। लेकिन इतना ज़रूर है कि इससे बीजेपी तमिलनाडु की राजनीति में किसी न किसी तरह चर्चा में ज़रूर आ सकती है। तमिलनाडु में 2021 में विधानसभा चुनाव होने हैं।