Ram Temple: अयोध्या में मंदिर बनने की अब तक की कहानी

Ram Mandir Bhoomi Poojan: लगभग 492 बरसों के अतीत में अयोध्या ने देखे हैं कई पड़ाव, 100 साल से ज्यादा समय की कानूनी और राजनीतिक लड़ाई का इतिहास जानना भी दिलचस्प होगा

Updated: Aug 05, 2020, 10:50 PM IST

नई दिल्ली। अयोध्या में बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भूमि पूजन कर राम मंदिर निर्माण की शुरुआत कर रहे हैं। लगभग 492 बरसों के अतीत में अयोध्या ने कई पड़ाव देखे हैं।167 साल पहले मंदिर को लेकर पहली बार अयोध्या में हिंसा हुई।135 साल पहले मामला कोर्ट तक पहुंचा। 100 साल से ज्यादा समय की कानूनी और राजनीतिक लड़ाई के बाद आज राम मंदिर बनाना शुरू कर दिया जाएगा। 

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम जन्मभूमि - बाबरी मस्जिद विवाद पर रोजाना सुनवाई शुरू कर इसे समाप्त किया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ इस मामले में 2010 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट द्वारा मध्यस्थता की प्रक्रिया सफल होने के बाद ये सुनवाई शुरू की गई। तीन सदस्यों वाले मध्यस्थता पैनल ने सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इस पैनल को 2 अगस्त को भंग कर दिया गया था।

आख़िरकार 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने इसका फैसला सुना दिया। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा था कि सुन्नी वक्फ बोर्ड इस विवादित जमीन पर अपना मालिकान हक साबित नहीं कर पाया है। वहीं पुरातत्व विभाग की ओर से दी गई रिपोर्ट में भी वहां मंदिर होने के प्रमाण पेश किए गए हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने भी यह कहा कि पुरातत्व विभाग ये बात नहीं बता पाया है कि क्या वहां पर किसी मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा मुस्लिम पक्ष को विवादित स्थल से दूर 5 एकड़ जमीन मस्जिद बनाने के लिए देने का भी आदेश दिया और 8 महीने 27 दिन पहले रामलला के पुन: विराजमान होने का सुप्रीम फैसला आया। 


अयोध्या पर क्या था आखिरी फैसला

1949 में, फैजाबाद की एक अदालत (ने अयोध्या नाम दिया गया) ने पहला फैसला अयोध्या टाइटल सूट पर दिया। अदालत ने आदेश दिया कि सभी तीनों पक्ष मुसलमान, हिंदू और निर्मोही अखाड़ा तीनों राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद के संयुक्त धारक घोषित किए जाएं। हाई कोर्ट ने सितंबर 2010 में इस मामले पर अपना अंतिम फैसला दिया। इसने निचली अदालत के फैसले को व्यापक रूप से बरकरार रखा और तीनों पक्षों के बीच 2.77 एकड़ भूमि बांट दी। 2002 में, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उस जगह का भूमिगत सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था जहां बाबरी मस्जिद पहले से खड़ी थी। एएसआई ने अगस्त 2003 में अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें हाई कोर्ट को बताया गया कि बाबरी मस्जिद भवन के नीचे उत्तर भारतीय मंदिर के समान संरचना का प्रमाण मिला है। इस रिपोर्ट के आधार पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने निष्कर्ष दिया कि विवादित स्थल पर बाबरी मस्जिद के निर्माण होने से पहले एक मंदिर मौजूद था। हाईकोर्ट की तीन जजों की बेंच ने तब जमीन को तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया। इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में ही रोक लगा दी थी। हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखने, खारिज करने या संशोधित करने से पहले एक ही मामले पर करीब 15 पक्षों को सुना गया।

कब और कहां से शुरु हुआ अयोध्या विवाद

  • अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मामला मूलरूप से 2.77 एकड़ की उस विवादित जमीन के स्वामित्व को लेकर था जिसमें हिंदू पक्ष की आस्था है कि वह भगवान राम का जन्म स्थान है। जहां बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवादित ढांचा 1528 से 6 दिसंबर, 1992 को विध्वंस तक खड़ा था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए हिंदू और मुस्लिम पक्ष की ओर से कुल 14 अपीलें और याचिकाएं दायर की गई, जिन पर शीर्ष अदालत अंतिम सुनवाई कर चुकी है।
  • अयोध्या विवाद का इतिहास काफी लंबा है जो 1853 से शुरु होता है। 1853 में इस जगह के आसपास पहली बार दंगे हुए थे। जिसके बाद 1859 में अंग्रेजों ने विवादित जगह के आसपास बाढ़ लगा दी। मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की इजाजत दी गई।
  • 1885 में महंत रघुबर दास ने फैजाबाद के उप-जज के सामने याचिका दायर की कि यहां मंदिर बनाने की इजाजत दी जाए। लेकिन जज ने इसे खारिज कर दिया। यह चबूतरा मस्जिद के बेहद करीब था जिसकी वजह से मंदिर बनाने की इजाजत नहीं दी गई।
  • 23 दिसंबर 1949 में असली विवाद शुरु हुआ। मस्जिद के अंदर राम की मूर्तियां मिलने पर हिंदुओं में मंदिर बनाने की इच्छा प्रबल हुई। हिंदुओं का कहना था कि भगवान राम वहां प्रकट हुए हैं। जबकि मुस्लिमों का कहना था कि चुपके से मूर्ति वहां रख दी गई।
  • तब तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू ने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री जीबी पंत से इस मामले में फौरन कार्रवाई करने को कहा। लेकिन जिला मजिस्ट्रेट केके नायर ने हिंदुओं की भावनाओं को भड़कने और दंगे फैलने के डर से राम की मूर्तियां हटाने से मना कर दिया। जिसके बाद इसे विवादित ढांचा मानकर ताला लगवा दिया गया।
  • 16 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशाल नामक शख्स ने फैजाबाद के सिविल जज के सामने अर्जी दाखिल कर यहां पूजा की इजाजत मांगी। जिसे जज एनएन चंदा ने इजाजत दे दी।
  • मुसलमानों ने इस फैसले के खिलाफ अर्जी दायर की। विवादित ढांचे की जगह मंदिर बनाने के लिए 1984 में विश्व हिंदू परिषद ने एक कमिटी गठित की।
  • 1 फरवरी 1986 को यूसी पांडे की याचिका पर फैजाबाद के जिला जज केएम पांडे ने पूजा करने की इजाजत देते हुए विवादित ढांचे से ताला हटाने का आदेश दिया। जिसके
  • विरोध में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया गया। 6 दिसंबर 1992 को बीजेपी, वीएचपी और शिवसेना समेत दूसरे हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे को गिरा दिया। जिसके बाद पूरे देश में दंगे भड़क गए जिसमें करीब 2 हजार लोगों की जानें गई।
  • 10 दिन बाद 16 दिसंबर 1992 को लिब्रहान आयोग गठित किया गया। लिब्रहान आयोग को 16 मार्च 1993 को यानी तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया था। लेकिन आयोग ने रिपोर्ट देने में 17 साल लगा दिए।
  • 30 जून 2009 को लिब्रहान आयोग ने चार भागों में 700 पन्नों की रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदंबरम को सौंपा जांच आयोग का कार्यकाल 48 बार बढ़ाया गया।
  • 31 मार्च 2007 को समाप्त हुए लिब्रहान आयोग के कार्यकाल को अंतिम बार तीन महीने 30 जून तक के लिए बढ़ा दिया गया।
  • 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने निर्णय सुनाया जिसमें विवादित भूमि को रामजन्मभूमि घोषित किया गया। कोर्ट ने बहुमत से निर्णय दिया कि विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि माना जाता है उसे हिंदू गुटों को दे दिया जाए। इसके साथ ही यह भी कोर्ट ने आदेश दिया की रामलला की प्रतिमा वहां से नहीं हटाया जाएगा। इसके साथ ही सीता रसोई और राम चबूतरा आदि के कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्ज़ा रहा है इसलिए यह हिस्सा निर्माही अखाड़े के पास ही रहेगा।
  • दो न्यायाधीशों ने यह निर्णय भी दिया कि इस भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान प्रार्थना करते रहे हैं इसलिए विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान गुटों दे दिया जाए। कोर्ट के इस फैसले को हिंदू और मुस्लिम पक्ष मानने से इंकार कर दिया और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
  • 2010 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे दोनों पक्षों की सुनवाई होती रही, लेकिन 7 साल बाद यानी 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने यह तय किया कि हर रोज राम मंदिर मामले को लेकर सुनवाई होगी।
  • 11 अगस्त 2017 से 3 न्यायाधीशों की पीठ इस विवाद की सुनवाई प्रतिदिन करेगी। सुनवाई से ठीक पहले शिया वक्फ बोर्ड ने न्यायालय में याचिका लगाकर विवाद में पक्षकार होने का दावा किया और 70 वर्ष बाद 30 मार्च 1946 के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी जिसमें मस्जिद को सुन्नी वक्फ बोर्ड की संपत्ति घोषित कर दिया गया था।
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 5 दिसंबर 2017 से इस मामले की अंतिम सुनवाई शुरू की जाएगी। लेकिन विवाद इतना लंबा था कि एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा कि 5 फरवरी 2018 से इस मामले की अंतिम सुनवाई शुरू की जाएगी।
  • 26 फरवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता का सुझाव दिया और फैसले के लिए पांच मार्च की तारीख तय की जिसमें तय किया जाता कि मामले को अदालत की तरफ से नियुक्त मध्यस्थ के पास भेजा जाए अथवा नहीं।
  • ৪ मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा कि क्या जमीन विवाद को मध्यस्थता के माध्यम से सुलझाया जा सकता है या नहीं।
  • 10 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद से जुड़े विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थता समिति को 15 अगस्त तक का समय दिया। तीन-सदस्यीय मध्यस्थता समिति के प्रमुख न्यायमूर्ति एफ.एम.आई. कलीफुल्ला ने मध्यस्थता प्रयासों में अब तक हुई प्रगति पर अदालत में रिपोर्ट पेश करते हुए और समय देने की मांग की जिसके बाद अदालत ने समय बढ़ाने का आदेश दे दिया।
  • 12 अगस्त 2019 को मध्यस्थता प्रक्रिया विफल होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 6 अगस्त से रोजाना सुनवाई का निर्णय लिया।