सरकार की आलोचना अपराध नहीं, अभिव्यक्ति की आजादी पर हमलों के बीच बोला सुप्रीम कोर्ट

अदालत ने कहा कि पाकिस्तान के लोगों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं देना एक सद्भावना संकेत है और इसे विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच वैमनस्य या शत्रुता, घृणा या दुर्भावना की भावना पैदा करने वाला नहीं कहा जा सकता है।

Updated: Mar 08, 2024, 01:44 PM IST

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने असहमति के अधिकार को बरकरार रखते हुए कहा है कि हर आलोचना अपराध नहीं होती है। देश में अभिव्यक्ति की आजादी पर लगातार हो रहे हमलों के बीच सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अगर हर आलोचना या असहमति को अपराध की श्रेणी में रखा जाएगा तो लोकतंत्र जीवित नहीं रह पाएगा। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने को लेकर कुछ टिप्पणियां करने के आरोपी के खिलाफ दाखिल केस को खारिज कर दिया।

कोर्ट ने कहा कि भारत के संविधान के आर्टिकल 19(1)(a) के तहत नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी दी गई है। इस आजादी के तहत हर नागरिक को अधिकार है कि वह आर्टिकल 370 हटाए जाने से लेकर केंद्र सरकार के किसी भी फैसले की आलोचना कर सकता है। उसे ये कहने का अधिकार है कि वह सरकार के फैसले से खुश नहीं है।

जस्टिस अभय एस ओका और उज्ज्वल भुयान की बेंच ने कहा कि अब समय आ गया है कि हम अपनी पुलिस को आर्टिकल 19(1)(a) में दिए गए बोलने और अभिव्यक्ति के अधिकारी के बारे में जागरूक करें और उन्हें उचित संयम बनाए रखने की सीमा भी बताएं। पुलिस को हमारे संविधान में दिए गए मूल्यों के बारे में संवेदनशील बनाना चाहिए।

दरअसल, महाराष्ट्र के कोल्हापुर कॉलेज के कश्मीरी प्रोफेसर जावेद अहमद हाजम के खिलाफ एक क्रिमिनल केस दर्ज किया गया था। इसमें कहा गया था कि उन्होंने वॉट्सऐप स्टेटस लगाकर 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर के लिए काला दिन घोषित करने और 14 अगस्त को पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस मनाने की अपील की थी।

इसे लेकर कोर्ट ने कहा कि 5 अगस्त को ब्लैक डे कहना सिर्फ प्रोफेसर के विरोध और पीड़ा जताने का एक तरीका है। वहीं, पाकिस्तानी लोगों को उनकी आजादी के दिन की शुभकामना देना एक सद्भावना का काम है। ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि इससे अलग-अलग धार्मिक समूहों के बीच किसी तरह की नफरत या दुर्भावना पैदा होगी।