नेटवर्क 18 समूह से दयाशंकर मिश्र का इस्तीफा, राहुल गांधी पर पुस्तक लिखने की चुकानी पड़ी कीमत

मध्य प्रदेश के रीवा में जन्मे दयाशंकर मिश्र की पुस्तक "राहुल गांधी: सांप्रदायिकता, दुष्प्रचार, तानाशाही से ऐतिहासिक संघर्ष" जल्द ही लॉन्च होने वाली है, नेटवर्क 18 की ओर से उनपर पुस्तक वापस लेने का दबाव था लेकिन उन्होंने झुकने से इनकार कर दिया।

Updated: Nov 23, 2023, 05:05 PM IST

नई दिल्ली। मीडिया समूह नेटवर्क 18 से चौंकाने वाली खबर सामने आई है। नेटवर्क 18 ग्रुप के डिजिटल एडिटर दयाशंकर मिश्र ने इस्तीफा दे दिया है। मिश्र को राहुल गांधी पर पुस्तक लिखने के कारण नौकरी गंवानी पड़ी। उन्होंने ट्वीट कर इस बात की जानकारी दी है। मध्य प्रदेश के रीवा में जन्मे दयाशंकर मिश्र ने कहा कि मेरे पास दो विकल्प थे या तो किताब वापस ले लूं, या नौकरी छोड़ दूं। मैंने सच कहने को चुना।

हिंदी मीडिया जगत के जाने माने डिजिटल पत्रकार दयाशंकर मिश्र ने इस संबंध ने जानकारी देते हुए एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा है कि, 'राहुल गांधी पर सच लिखना क‍ितनी मुश्‍किलें खड़ी करेगा, मुझे बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था। ऐसे समय जब सत्‍ताधीशों पर गाथा-पुराण ल‍िखने की होड़ लगी हो, मैंने सोचा था कि एक लोकनीत‍िक व‍िचारक की सोच, दृष्टि और दृढ़ता को संकल‍ित कर प्रस्‍तुत करना क‍िसी को क्‍यों परेशान करेगा? लेकिन मैं ग़लत साबित हुआ। ल‍िखना और व्‍यक्‍त करना हमारा काम है। लेकिन इसी के व‍िस्‍तार से अचानक कंपनी की धड़कनें बढ़ गईं। मेरे पास विकल्प था कि मैं किताब वापस ले लूं। नौकरी करता रहूं। चुप रहूं। लेकिन, मैंने किताब को चुना। जो हमारा बुनियादी काम है, उसको चुना। सच कहने को चुना। इसलिए, पहले इस्तीफ़ा, फिर किताब।'

दयाशंकर मिश्र आगे लिखते हैं, 'यह किताब असल में न्यूज़रूम के हर उस समझौते का प्रायश्चित है, जिसे छापा नहीं, छ‍िपाया। इसमें राहुल गांधी के ख़िलाफ़ 2011 से शुरू हुए दुष्प्रचार की तथ्यात्मक कहानी और ठोस प्रतिवाद है। किस तरह से मीडिया ने लोकतंत्र में अपनी परंपरागत और गौरवशाली विपक्ष की भूमिका से पलटते हुए न केवल सत्ता के साथ जाना स्वीकार किया, बल्कि व‍िपक्ष यानी जनता की प्रतिनिधि आवाज़ को जनता से ही दूर करने, उसकी छवि को ध्वस्त करने की पेशागद्दारी की। न्यूज़रूम और दुष्‍प्रचारी IT सेल के अंतर को मीडिया ने मिटा दिया। यह किताब साम्प्रदायिकता, दुष्प्रचार और तानाशाही के ख‍िलाफ राहुल गांधी के संघर्ष का व‍िश्‍लेषण है।'

मिश्र आगे लिखते हैं, 'संवैधानिक संस्थाओं पर केंद्र का क़ब्ज़ा, अन्ना हजारे के साथ मिलकर केजरीवाल की प्रोपेगेंडा राजनीति का चक्रव्यूह, पाठक इसमें आसानी से समझ सकते हैं। यह किताब हाल‍िया इतिहास में लोकतंत्र और संविधान पर हुए हमलों को सिलसिलेवार 11 अध्‍यायों में बताने का सहज प्रयास है। आप पढ‍़िएगा और बताइएगा कि हिंदुत्‍व की राजनीत‍ि में मॉब लिंचिंग की स्‍थापना, झूठ और दुष्‍प्रचार की प्रभुसत्‍ता, हिंदू संप्रदायवाद का नया राष्‍ट्रवाद बनना, लोकतंत्र से लोकतांत्रिक मूल्‍यों का व‍िलोपन… ये भारत पर खरोंच हैं जो कुछ समय में ठीक हो जाएंगी या यह एक दशक का सत्तानीतिक ‘सांव‍िधान‍िक व‍िकास’ है, जिसके निदेशक तत्व आज भारत को चला रहे हैं और दशकों तक चलाएंगे।'

यह भी पढ़ें: राहुल गांधी के पनौती वाले बयान पर भाजपा में बौखलाहट, चुनाव आयोग से की शिकायत

दयाशंकर मिश्र की किताब "राहुल गांधी: सांप्रदायिकता, दुष्प्रचार और तानाशाही से ऐतिहासिक संघर्ष" जल्द ही लॉन्च होने वाली है। यह पुस्तक भारतीय लोकतंत्र को नफ़रत से बचाने और मोहब्बत से सींचने के प्रयासों का दस्तावेज़ है। किताब में राहुल गांधी के भाषणों का संग्रह, विश्लेषण शामिल है। राहुल गांधी के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार, रचे गए मिथकों का सच और प्रतिवाद किताब की पूंजी है। इसमें 2011 के बाद से 'बदली हुई राजनीति' का पूरा हिसाब है। किताब राहुल गांधी के विचारों, उनके मूल्यों और 'आइडिया ऑफ इंडिया' के व्यापक फलक को पाठकों के सामने रखती है। इसके अलावा उस एजेंडे का भी पर्दाफाश करती है, जिसे हिंदुत्व की राजनीति ने कॉरपोरेट मीडिया के साथ मिलकर खड़ा किया है। 'अघोषित तानाशाही' के इस दौर में जब हिंदी पत्रकारिता सत्ता के आगे दंडवत है, ऐसे समय में दयाशंकर मिश्र की यह किताब लोकतंत्र और संविधान के सवालों पर जरूरी दस्तावेज है।

नेहरू मिथक और सत्य जैसे नामचीन पुस्तकों के लेखक पीयूष बबेले कहते हैं कि, 'कांग्रेस के सर्वमान्य नेता राहुल गांधी करोड़ों आंखों का नूर हैं, तो कुछ आंखों की किरकिरी भी हैं। यह कुछ आंखें पिछले 12 साल से राहुल गांधी की चरित्र हत्या करने में प्राण-पण से जुटी हैं। सैकड़ो करोड़ रूपया उनके चरित्र पर कीचड़ उछालने में खर्च किया गया है। लेकिन खुशी की बात है कि कुछ ऐसे विद्वान शोधक भी हैं जो शुरू से ही इस षड्यंत्र पर पूरी निगाह रखे थे। ऐसे ही एक साधक दयाशंकर मिश्र ने 12 साल से राहुल जी के बारे में फैलाए गए एक-एक षड्यंत्र का मुकम्मल और तथ्यात्मक जवाब साक्ष्य के साथ जुटाया। लाइब्रेरियों और इंटरनेट की खाक छानी। राहुल गांधी की दर्शनिकता और विश्व दृष्टि को पहचाना। इसी के साथ दुनिया भर के अखबारों से वे संदर्भ भी खोज निकाले जिससे पता चलता है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया में राहुल गांधी लोकतंत्र के नायक के तौर पर सराहे जा रहे हैं और पूरी दुनिया उन्हें आशा भरी निगाहों से देख रही है। लेखक ने ऐतिहासिक काम कर दिया है और एक बड़ी मीडिया कंपनी से एक्जीक्यूटिव एडिटर के पद से इस्तीफा देकर कीमत भी चुकाई है। इतिहास में लिखा जाएगा कि जब सारी दुनिया अंधेरे में रास्ता टटोल रही थी तब एक आदमी ने ध्रुव तारे को बहुत पहले देख लिया था और उसके प्रकाश को सम्मानित करने की मुहिम बहुत पहले शुरू कर दी थी।'