Tanishq Ad withdrawn: रतन टाटा को दिग्विजय सिंह ने याद दिलाई मार्टिन निमोलर की कविता

Digvijaya Singh Tweet: पहले वे कम्युनिस्टों के लिए आए, मैं कुछ नहीं बोला। फिर वे ट्रेड यूनियन वालों के लिए आए, मैं कुछ नहीं बोला। फिर वे मेरे लिए आए, अब मेरे लिए बोलने वाला कोई नहीं बचा था।

Updated: Oct 14, 2020, 12:43 AM IST

भोपाल। कट्टरपंथियों की धमकियों के चलते तनिष्क द्वारा हिंदू-मुस्लिम सौहार्द का विज्ञापन हटा लेने के बाद मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य सभा सांसद दिग्विजय सिंह ने सवाल किया है। दिग्विजय सिंह ने कहा है कि जो टाटा समूह पिछले 100 सालों से भारत की बहुधार्मिक संस्कृति का ब्रांड रहा है, उसे पैसे पर चलने वाली निम्न स्तर की ट्रोल आर्मी से ट्रोल क्यों कराया गया। उनके ट्वीट में महान जर्मन कवि मार्टिन निमोलर की प्रसिद्ध कविता का भी जिक्र भी किया गया है। उन्होंने टाटा समूह के मालिक रतन टाटा से सवाल से पूछा है कि क्या आपको मार्टिन निलोमर की कविता याद है? उन्होंने रतन टाटा को कविता के संदेश को गंभीरता से लेने की सलाह दी है। 

दरअसल, मार्टिन निमोलर ने हिटलर की क्रूरता और जर्मनी के लोगों की लााचारी को दर्शाते हुए कविता लिखी थी। यह कविता कुछ इस तरह है- 

पहले वे कम्युनिस्टों के लिए आए 
और मैं कुछ नहीं बोला
क्योंकि मैं कम्युनिस्ट नहीं था। 

फिर वे ट्रेड यूनियन वालों के लिए आए 
और मैं कुछ नहीं बोला
क्योंकि मैं ट्रेड यूनियन में नहीं था। 

फिर वे यहूदियों के लिए आए
और मैं कुछ नहीं बोला
क्योंकि मैं यहूदी नहीं था।

फिर वे मेरे लिए आए
और तब तक कोई नहीं बचा था
जो मेरे लिए बोलता। 

यह कविता बताती है कि हिटलर ने अपनी बर्बर विचारधारा के लिए किसी को नहीं छोड़ा। उसने सबसे पहले कम्युनिस्टों को निशाना बनाया, फिर ट्रेड यूनियन वालों को, फिर यहूदियों और फिर आम लोगों को। 

दिग्विजिय सिंह ने इस कविता को वर्तमान भारतीय संदर्भ में देखने की रतन टाटा को हिदायत दी है। बीते कुछ सालों में भारत की विविध सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक ताने-बाने को एक-एक करके निशाना बनाया है। अब सोशल मीडिया की गुरिल्ला सेना ने देश के पूंजीपतियों और सिनेमा जगत को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया है। इस सेना के निशाने पर पहले मुसलमान और विपक्ष के नेता रहे। फिर वे छात्रों को, फिर किसानों को और अब अपनी विचारधारा से अलग विचार पेश करने वाले पूंजीपतियों को भी नहीं बख्स रहे हैं। 

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दरअसल, टाटा ग्रुप के ज्वैलरी ब्रांड तनिष्क ने हिंदू मुस्लिम एकता का विज्ञापन बनाया था। जिसके बाद सोशल मीडिया पर तनिष्क का बहिष्कार करने की मुहिम छेड़ दी गई। इस मुहिम को संगठित तरीके से चलाया गया और इसमें सत्ताधारी पार्टी के आईटी सेल के भूमिका मानी जा रही है।  

वैसे रतन टाटा समय-समय पर मोदी सरकार की तारीफ करते रहे हैं और वो मोदी के एक आमंत्रण पर पश्चिम बंगाल से अपनी नैनो कार की फैक्ट्री शिफ्ट कर गुजरात के आनंद चले गए थे। पश्चिम बंगाल के सिंगुर में मुआवज़े के लिए संघर्ष चला था और कम्युनिस्ट सरकार को घुटने टेकने पड़ गए थे। तब की कम्युनिस्ट सरकार ने टाटा को एक हज़ार एकड़ जमीन अधिग्रहण करके दिया था ताकि राज्य में औद्योगीकरण को बढ़ावा दिया जा सके। लेकिन स्थानीय तृणमूल कांग्रेस और किसानों के विरोध के चलते उन्होंने गुजरात का रुख कर लिया था। इन तमाम दोस्तियों का भी उनके नाम और ब्रांड पर असर नहीं पड़ा। महज एक विज्ञापन की वजह से सोशल मीडिया की गुरिल्ला आर्मी ने रतन टाटा और उनकी मशहूर ज्वेलरी ब्रांड को विलेन बना दिया।