Third Farm Bill Passed: दाल, आलू, प्याज, तिलहन जैसी चीजें अब नहीं जरूरी, विपक्ष की गैर-मौजूदगी में राज्यसभा से पारित हुआ संशोधन

सरकार ने संशोधन को किसानों के हक में बताया, विपक्ष को किसानों का शोषण और काला-बाज़ारी बढ़ने का डर

Updated: Sep 23, 2020, 05:39 AM IST

Photo Courtesy: Newsfirst
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नई दिल्ली। मोदी सरकार ने अनाज, दलहन, आलू, प्याज, खाने का तेल जैसी आम लोगों के जरूरत की चीजों को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर करने की दिशा में आज एक कदम और बढ़ा लिया। लोकसभा ने जिस आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक को 15 सितंबर 2020 को मंजूरी दे दी थी, उसे आज राज्यसभा ने भी पारित कर दिया।

इस संशोधन के लागू हो जाने पर अनाज, दालें, खाने का तेल, तिलहन, प्याज और आलू जैसी चीजें आवश्यक वस्तु अधिनियम (Essential Commodities Act) के दायरे से बाहर हो जाएंगी। इसका सीधा असर यह होगा कि इन सभी चीजों की खरीद-बिक्री और भंडारण पर सरकार का नियंत्रण नहीं रह जाएगा। सरकार की दलील है कि इन बदलावों के लागू होने से निजी निवेशकों को सरकारी दखलंदाज़ी से छुटकारा मिल जाएगा, जिससे कृषि उत्पादों की सप्लाई चेन में निवेश बढ़ेगा।

लेकिन विपक्षी दल कानून में इस बदलाव का कड़ा विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि आम लोगों के ज़रूरत की चीज़ों को आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से बाहर करने पर उनकी काला-बाज़ारी का खतरा बढ़ेगा। उन्हें डर है कि इस संशोधन से कृषि उत्पादों की सप्लाई चेन पर बड़े कॉरपोरेट का कब्ज़ा हो जाएगा, जिससे किसान और कंज्यूमर, दोनों का शोषण बढ़ेगा। बड़ी कंपनियां बाज़ार की कीमतों को अपने मुनाफे के हिसाब से मैनेज करेंगी। जिस वक्त किसान की फसल बाज़ार में आने के लिए तैयार होगी, बड़ी कंपनियां कीमतों को निचले स्तर पर रखकर अपने भंडार भर लेंगी। बाद में सप्लाई चेन पर नियंत्रण का फायदा उठाकर वही चीजें कंज्यूमर को मनमानी कीमतों पर बेची जाएंगी।


एसेंशियल कमोडिटी एक्ट क्‍या है

आवश्यक वस्तु अधिनियम या Essential Commodities Act  साल 1955 में बना था। ताकि ज़रूरी चीजें लोगों को मुनासिब दामों पर मिल जाएं और उनकी काला-बाज़ारी न हो। खाने-पीने की चीजों के अलावा कई और वस्तुएं भी इस कानून के दायरे में आती हैं। इन सभी चीजों की कीमतों, बिक्री, सप्लाई और डिस्ट्रीब्यूशन पर केंद्र सरकार नियंत्रण रखती है। सरकार को जब भी महसूस होता है कि किसी चीज़ की बाज़ार में सप्लाई उसकी मांग के मुकाबले काफी कम है, जिससे उसकी कीमतें बेलगाम हो सकती हैं, तो वो कुछ समय के लिए इस एक्ट के प्रावधान उस चीज़ पर लागू कर देती है। एक्ट लागू किए जाने के बाद सरकार उन चीजों के स्टॉक की अधिकतम सीमा तय कर सकती है। ज़रूरत पड़ने पर उनके अधिकतम खुदरा मूल्य यानी MRP भी तय किए जा सकते हैं। ये कदम मुख्य तौर पर इसलिए उठाए जाते हैं ताकि कुछ बड़े कारोबारी मांग और सप्लाई के बीच अंतर का फायदा उठाकर काला बाज़ारी न कर सकें। या सप्लाई चेन पर अपने नियंत्रण का फायदा उठाकर कृत्रिम रूप से बाज़ार में उसकी कमी न पैदा कर सकें।