मनरेगा को कमजोर करने में जुटी मोदी सरकार, सोनिया गांधी ने दैनिक मजदूरी 400 करने की उठाई मांग
राज्यसभा में सोनिया गांधी ने मांग की, कि न्यूनतम मनरेगा मजदूरी 400 रुपये प्रतिदिन की जाए। साथ ही कार्यदिवस की संख्या 100 से बढ़ाकर 150 प्रतिवर्ष की जाए।

नई दिल्ली। राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान कांग्रेस सांसद सोनिया गांधी ने मनरेगा के तहत रोजगार गारंटी का मुद्दा उठाया। उन्होंने केंद्र सरकार पर इस योजना को सुनियोजित तरीके से कमजोर करने का आरोप लगाया। सोनिया गांधी ने कहा कि मनरेगा के लिए इस साल जो बजट आवंटित किया गया है, वह 10 साल में सबसे कम है।
सोनिया गांधी ने राज्यसभा में बड़ी मांग करते हुए कहा कि मनरेगा योजना के तहत न्यूनतम मजदूरी 400 रुपये प्रतिदिन की जाए। साथ ही उन्होंने कार्यदिवस की संख्या भी 100 से बढ़ाकर 150 करने की मांग उठाई। सोनिया गांधी ने संसद में अपने संबोधन में कहा कि 2024-25 के लिए केंद्र सरकार ने जो मनरेगा के लिए बजट आवंटित किया है वह पिछले 10 वर्षों में सबसे कम है, जो 86,000 करोड़ रुपये है, जो पिछले साल के खर्च से 19,297 करोड़ रुपये कम है।
यह भी पढ़ें: सामाजिक न्याय की दिशा में यह क्रांतिकारी कदम, तेलंगाना में 42 फीसदी OBC आरक्षण पर बोले राहुल गांधी
सोनिया गांधी ने मनरेगा को ऐतिहासिक कानून करार देते हुए कहा कि यह लाखों ग्रामीण गरीबों के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच रहा है। उन्होंने कहा, ‘हालांकि यह गहरी चिंता का विषय है कि वर्तमान भाजपा सरकार ने व्यवस्थित रूप से इसे कमजोर कर दिया है। इसके लिए बजट आवंटन 86,000 करोड़ रुपये पर स्थिर बना हुआ है, जो जीडीपी के प्रतिशत के रूप में दस साल का सबसे कम प्रतिशत है।'
राज्यसभा में कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने रेजिडेंशियल कोचिंग अकादमी का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा, 'मैं UPA चेयरपर्सन रही श्रीमती सोनिया गांधी जी और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जी को सलाम करता हूं। जिनके प्रयासों से सच्चर कमेटी की सिफारिशों के बाद 2009 में कोचिंग के अभाव में प्रतियोगी परीक्षाओं में हिस्सा न ले पाने वाले SC, ST, माइनॉरिटी वर्ग से आने वाले बच्चों के लिए रेजिडेंशियल कोचिंग अकादमी (RCA) शुरू की गई थीं।'
प्रतापगढ़ी ने आगे कहा, 'दूरदराज गांव से आने वाले बच्चों ने महंगी UPSC कोचिंग के बजाए रेजिडेंशियल कोचिंग अकादमी (RCA) में दाखिला लेना शुरू किया, जिसके बाद उनके सपने पूरे होने शुरू हुए। इसी से प्रभावित होकर मुंबई के हज हाउस में 2009 में कोचिंग सेंटर शुरू हुआ। इसके लिए सरकार से कोई फंड नहीं लिया गया, बल्कि हाजियों के रजिस्ट्रेशन फीस और सर्विस चार्ज से बनने वाले हज कमेटी के कॉर्पस के एक हिस्से से इसे चलाया जा रहा था।'
उन्होंने कहा कि तकरीबन 10 साल तक चले इस कोचिंग सेंटर के बढ़िया रिजल्ट रहे, कई बच्चे IAS, IPS बने। कई महाराष्ट्र स्टेट सर्विस में सेलेक्ट हुए। लेकिन कोरोना आने के बाद कोचिंग सेंटर की सीटें घटाई गईं और आखिर में तत्कालीन अल्पसंख्यक मंत्री ने मौका देखकर सेंटर को बंद कर दिया गया। उनके इस फैसले से लाखों बच्चों के सपने टूट गए।उन्होंने अल्पसंख्यक मंत्रालय से अनुरोध किया कि हाजियों के पैसे से चलने वाले इस सेंटर को फिर से शुरू किया जाए और इसकी सीटें बढ़ाई जाएं।