ऑर्डिनेंस फैक्ट्री के कर्मचारी नहीं कर सकेंगे हड़ताल, आंदोलन करने पर जाएंगे जेल, मोदी सरकार ने जारी किया अध्यादेश

केंद्र सरकार के नए अध्यादेश के मुताबिक कोई भी शख्स यदि हड़ताल शुरू करेगा या आंदोलन में शामिल होगा तो उसे कम से कम एक साल की जेल का प्रावधान है

Updated: Jul 01, 2021, 12:20 PM IST

Photo Courtesy: Youthkiaawaj
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नई दिल्ली। ऑर्डिनेंस फैक्ट्री जहां देश के तीनों सेनाओं के लिए गोला-बारूद और हथियार बनते हैं, वहां के कर्मचारियों ने 26 जुलाई से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने का ऐलान किया है। हड़ताल इसलिए क्योंकि केंद्र की मोदी सरकार द्वारा ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड (OFB) को निगम बनाने का फैसला लिया है। हालांकि, अब हड़ताल को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने नया अध्यादेश जारी किया है, जिसके मुताबिक ऑर्डिनेंस फैक्ट्री का कोई भी व्यक्ति यदि हड़ताल या आंदोलन में शामिल होता है तो उसे कम से कम एक साल की सजा होगी।

केंद्र सरकार द्वारा आवश्यक रक्षा सेवा अध्यादेश, 2021 लाया गया है। कानून मंत्रालय द्वारा जारी इस अध्यादेश  पर एक गजट अधिसूचना में कहा गया है कि सेना से जुड़े किसी भी इंडस्ट्रियल एंटरप्राइज के डिफेंस एकविपमेंट्स के संचालन या रखरखाव के प्रोडक्शन में लगे कर्मचारियों के साथ-साथ मरम्मत और रख-रखाव में कार्यरत कर्मचारी रक्षा उत्पाद अध्यादेश के दायरे में आएंगे। यानी नए अध्यादेश के मुताबिक संबंधित कर्मचारियों द्वारा हड़ताल या आंदोलन करना अवैध गतिविधियों की श्रेणी में आएगा।

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कानून मंत्रालय ने गजट नोटिफिकेशन में कहा कि कोई भी व्यक्ति, जो हड़ताल या आंदोलन शुरू करता है या उसमें शामिल होता है, या ऐसी किसी भी तरह के हड़ताल में भाग लेता है, उसे जेल की सजा दी जा सकती है। इसे एक साल तक बढ़ाया जा सकता है या 10 हजार रुपए जुर्माना लिया जा सकता है। या फिर वह जेल और जुर्माना दोनों का हकदार होगा।

दरअसल, बीते 16 जून को केंद्रीय कैबिनेट ने 41 OFB को निगम बनाने की घोषणा की थी। इस फैसले के खिलाफ वहां काम कर रहे करीब 74 हजार कर्मचारियों ने 26 जुलाई यानी किसान आंदोलन के आठ महीने पूरे होने वाले दिन से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने का ऐलान किया था। OFB के कर्मचारियों का कहना था कि यह फैसला देशहित में नहीं है। 

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इसी बीच अब केंद्र सरकार ने आवश्यक रक्षा सेवा अध्यादेश, 2021 को बुधवार से तत्काल प्रभाव से पूरे देश में लागू कर दिया है। नोटिफिकेशन में कहा गया है कि फिलहाल संसद का सत्र नहीं है लेकिन राष्ट्रपति इससे संतुष्ट हैं और परिस्थितियों को देखते हुए तत्काल कार्रवाई करना आवश्यक है। कानूनी जानकार इस अध्यादेश को आम नागरिकों और कर्मचारियों के प्रोटेस्ट करने का संवैधानिक अधिकार छीनने वाला बता रहे हैं।

कर्मचारियों के लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचला जा रहा है- CPIM

केंद्र सरकार के इस अध्यादेश को कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) ने कर्मचारियों के अधिकारों को कुचलने वाला बताया है। सीपीआईएम नेता बादल सरोज ने अध्यादेश को लेकर कहा, 'मोदी सरकार की बेचने वाली जो नीतियां हैं, वो केवल आर्थिक मुद्दों पर सीमित नहीं रहेंगी, वह लोकतंत्र में भी आएगी। लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचले बिना वे खरीद-बिक्री नहीं कर सकते। आज यही देश में हो भी रहा है। डिफेंस फैक्ट्री तो एक तात्कालिक मामला है, असल में वे नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को छीनकर अंबानी और अडानी जैसे कॉरपोरेट घरानों को लाभ पहुंचाना चाहते हैं।' उन्होंने आगे कहा, 'यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज डिफेंस जैसे सेक्टर को भी नहीं छोड़ा जा रहा है। सरकार उस बुनियाद पर हमला कर रही है जो देश के सुरक्षा व्यवस्था की रीढ़ है।'

RSS के स्वयंसेवक की तरह आचरण कर रहे हैं राष्ट्रपति कोविंद- बादल सरोज

मामले पर हम समवेत से बातचीत के दौरान बादल सरोज ने राष्ट्रपति की भूमिका को लेकर भी निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि, 'रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति बनने के बाद भी RSS के स्वयंसेवक की तरह आचरण कर रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में उन्होंने साबित कर दिया है कि वह भारतीय गणराज्य संघ के राष्ट्रपति नहीं हैं, बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता हैं। इस देश में राष्ट्रपतियों के कई राजनीतिक नियुक्तियां हुईं हैं, लेकिन ख़ुशी की बात है कि राष्ट्रपति के पद पर बैठने के बाद स्वतंत्र भारत के इतिहास में किसी भी राष्ट्रपति ने राजनीति से प्रेरित फैसले नहीं लिए, सभी ने पार्टी हित से ऊपर संविधान को रखा। दुर्भाग्य से रामनाथ कोविंद उस तरह के आचरण कायम रखने में पूरी तरह से विफल साबित हुए हैं।'