कोरोना जांच कराई नहीं, फिर भी मिला रिज़ल्ट, क्या ये बिहार में टेस्ट संख्या बढ़ाने का खेल है

पूरे भारत में RT-PCR टेस्ट का औसत 60 प्रतिशत है, लेकिन बिहार में यह दर केवल 10 से 20 प्रतिशत तक है

Updated: Dec 02, 2020, 04:09 PM IST

Photo Courtesy : Jones Day
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नई दिल्ली/पटना। बिहार में कोरोना टेस्ट के आंकड़ों का चौंकाने वाला खेल चल रहा है। ऐसे लोगों के फोन पर भी टेस्ट के नतीजे बताने वाले मैसेज आ रहे हैं, जिन्होंने कोरोना टेस्ट कराया ही नहीं है। या फिर चार-पांच महीने पहले टेस्ट कराया था, जिसके नतीजे उन्हें तभी दे दिए गए थे। जिन लोगों को बिना टेस्ट कराए ही रिज़ल्ट भेजे जा रहे हैं, वो समझ नहीं पा रहे कि आखिर उन्हें ऐसे मैसेज क्यों मिल रहे हैं। 

दरअसल राज्य सरकार की तरफ से लोगों के फोन पर मैसेज भेजा जाता है कि फलां तारीख को आपके द्वारा कराए गए कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट नेगेटिव आई है। जबकि हकीकत यह है कि न तो वे लोग कोरोना जांच के लिए कहीं गए और न ही उन्हें कभी कोई लक्षण दिखाई पड़ा। 

दरअसल बिहार कोरोना की जांच में अन्य राज्यों के मुकाबले काफी पीछे चल रहा है। खास तौर पर RT-PCR टेस्ट के मामले में तो बिहार काफी पीछे हैं। इसीलिए शक जाहिर किया जा रहा है कि राज्य सरकार टेस्टिंग के आंकड़े बढ़ाकर दिखाने के लिए उन लोगों के फोन पर टेस्ट रिज़ल्ट के मैसेज भेज रही है, जिन्होंने कभी टेस्ट ही नहीं करवाया। लोगों का आरोप है कि राज्य सरकार गिनती बढ़ाने के लिए ऐसी गड़बड़ी कर रही है। 

राज्य में कोरोना टेस्ट की ऐसी फर्जी रिपोर्ट बताने वाले मामलों का खुलासा तब जाकर हुआ जब कई लोगों ने सोशल मीडिया पर इस बारे में लिखना शुरू किया। अगर सभी लोग ऐसे मैसेज को नज़रअंदाज़ कर देते तो शायद  इस हैरान करने वाली गड़बड़ी का किसी को पता ही नहीं चलता। 

सरकारी अधिकारियों का कहना है कि इस समस्या की वजह आंकड़े बढ़ाने की साज़िश नहीं है, बल्कि डेटा एंट्री में गलती हुई है। हिन्दी के एक प्रमुख अख़बार ने जब राज्य की एक स्वास्थ्य कर्मचारी से पूछा तो उनका कहना था कि, 'ऐसा होना तो नहीं चाहिए। अगर ये हुआ है तो बड़ी बात है। इस तरह के मैसेज जिले में बने कंट्रोल रूम से भेजे जाते हैं। हर जिले का अलग कंट्रोल रूम है। जिले के केंद्र पर जो सैंपल लिए जाते हैं, उसमें दिए गए डेटा के अनुसार ही मैसेज भेजे जाते हैं। थोड़ा रूककर वे कहती हैं, वो सकता है कि डेटा फीड करने वाले ने गलत कोरोना ID डाल दी हो और इस वजह से ऐसा हुआ हो।' 

कोरोना टेस्ट के मामले में क्या है बिहार की हालत
दरअसल मार्च और अप्रैल में बिहार सरकार की आलोचना हो रही थी, क्योंकि यहां जांच की रफ्तार बेहद कम थी। उसके बाद एक के बाद एक, दो स्वास्थ्य सचिव बदले गए। बिहार सरकार के ‘संकट मोचक’ अधिकारी प्रत्यय अमृत ने कमान संभाली। इसके बाद से बिहार सरकार हर रोज़ कोरोना जांच को लेकर नए रिकॉर्ड बना रही है। अगस्त में बिहार ने सबसे ज़्यादा कोरोना टेस्ट करने के मामले में रिकॉर्ड बनाया। तब स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया था कि 24 घंटे में रिकॉर्ड एक लाख 21 हजार 320 सैंपलों की जांच की गई है। हर दिन जांच का यह आंकड़ा देश में सबसे ज्यादा है। लेकिन जानकार लगातार बिहार में हो रहे कोरोना टेस्ट पर सवाल उठा रहे हैं।

आंकड़ों के मुताबिक 30 सितंबर को पूरे भारत में 14 लाख से ज्यादा टेस्ट हुए और 80 हजार से अधिक नए संक्रमणों का पता लगा। जबकि, बिहार में इसी दिन में 1.31 लाख से ज्यादा टेस्ट हुए और सिर्फ 1435 नए मरीजों का पता लगा। पूरे भारत के मुकाबले बिहार में नए मरीजों के मामले इतने कम आने की वजह जानकार टेस्टिंग के तरीके को मानते हैं। भारत में जहां औसतन 60% आरटी-पीसीआर टेस्ट हो रहे हैं, वहीं बिहार में इसकी दर केवल 10-20% के बीच है। यानि 80-90 फीसदी जांच रैपिड टेस्ट के जरिए हो रही जिसकी विश्वसनीयता RT-PCR टेस्ट के मुकाबले काफी कम है। जानकारों का मानना है कि इसी वजह से बिहार में टेस्ट की संख्या भले ही बढ़ी हुई दिख रही हो, सही मायनों में पॉज़िटिव केस कितने हैं, ये पता नहीं पा रहा है।