बाल यौन उत्पीड़न मामलों में स्किन टू स्किन टच जरूरी नहीं, SC ने पलटा बॉम्बे हाईकोर्ट का विवादित फैसला

बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक विवादित फैसले में कहा था कि कपड़े हटाए बिना स्तन दबाना पोक्सो एक्ट में नहीं आएगा, उच्च न्यायालय ने पॉक्सो के लिए त्वचा से त्वचा का संपर्क जरूरी बताया था

Updated: Nov 18, 2021, 08:28 AM IST

Photo Courtesy: ABP
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नई दिल्ली। बच्चों के खिलाफ यौन अपराध के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अहम फैसला सुनाया है। सर्वोच्च न्यायालय ने यौन उत्पीड़न के लिए स्किन टू स्किन टच यानी त्वचा से त्वचा संपर्क वाले विवादित व्याख्यान को खारिज कर दिया है। शीर्ष अदालत ने इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा है कि पॉक्सो एक्ट में स्किन टू स्किन टच जरूरी नहीं है।

मामले की सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि, 'यह नहीं कहा जा सकता है कि यौन उत्‍पीड़न की मंशा से कपड़े के ऊपर से बच्‍चे के संवेदनशील अंगों को छूना यौन शोषण नहीं है। अगर ऐसा कहा जाएगा तो बच्‍चों को यौन शोषण से बचाने के लिए बनाए गए पॉक्‍सो एक्‍ट की गंभीरता ही खत्‍म हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि उच्च न्यायालय के इस व्याख्यान को हम गलत मानते हैं और इसे स्वीकारा नहीं जा सकता है। इस तरह की संकीर्ण व्याख्या हानिकारक होगी।'

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सर्वोच्च अदालत ने इस मामले में आरोपी को तीन साल की सजा भी सुनाई है। जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस रविंद्र भट्ट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने ये फैसला सुनाया है। दरअसल, बॉम्‍बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने अपने एक विवादास्पद फैसले में यौन उत्‍पीड़न के आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि यदि आरोपी और पीड़िता के बीच कोई सीधा स्किन टू स्किन टच नहीं है तो पॉक्सो एक्‍ट के तहत यह कोई अपराध नहीं है।

कोर्ट ने तब कहा था कि बच्ची के स्तन को कपड़े हटाए बगैर दबाने में त्वचा से त्वचा का सीधा संपर्क नहीं है इसलिए पॉक्सो एक्ट के तहत इसे यौन हमला नहीं माना जा सकता। बल्कि यह IPC की धारा 354 के तहत एक महिला की शील भंग करने का मामला है। हालांकि, अब खुद सर्वोच्च न्यायालय ने इसे संकीर्ण और बेतुकी व्याख्या करार दिया है। शीर्ष न्यायालय के इस फैसले की चौतरफा सराहना की जा रही है।