कुतुब मीनार में मंदिर होने का दावा, दिल्ली कोर्ट में याचिका दायर करके पूजा की मांगी इजाज़त

याचिका में दावा किया गया है कि क़ुतुब मीनार की जगह पहले मंदिर थे, जिन्हें गिराकर यहां मस्जिद बनाई गई

Updated: Dec 10, 2020, 07:14 PM IST

Photo Courtesy: Times Of India
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नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के अयोध्या विवाद में विवादित मस्जिद गिराए जाने के बाद वहां मंदिर बनाने की इजाजत दिए जाने का असर अब जगह-जगह ऐसे दावों के रूप में देखने को मिल रहा है, जिनमें कथित इतिहास में सैकड़ों साल पहले हुई घटनाओं को बदलकर उससे पहले की स्थिति बहाल किए जाने की मांग की जा रही है। ताज़ा विवाद दिल्ली की विश्व प्रसिद्ध कुतुब मीनार को लेकर शुरू हो गया है।

अयोध्या के फैसले के बाद मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद तो शुरू हो ही चुका है, लेकिन अब दिल्ली की कुतुब मीनार में एक नया विवाद शुरू हो गया है। वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल कुतुब मीनार को लेकर दिल्ली की एक अदालत में याचिका दाखिल हुई है, जिसमें कुतुब मीनार के परिसर में मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाए जाने का दावा किया गया है। याचिका में कहा गया है कि अब यहां पूजा पाठ की इजाजत देने की मांग की गई है। 

यह याचिका दिल्ली के साकेत कोर्ट में दाखिल की गई है। यह याचिका जैनों के पहले तीर्थंकर ऋषभदेव और भगवान विष्णु के नाम से दाखिल की गई है। इसमें पूजा अर्चना को फिर से बहाल करने की मांग की गई है। वकील हरिशंकर जैन की तरफ से दाखिल याचिका में मंगलवार को बहस भी हुई। इस पूरे मसले पर साकेत कोर्ट में अब 24 दिसंबर को सुनवाई होनी है। 

याचिका में क्या दावा किया गया है

इस याचिका में दावा किया गया है कि सन 1192 में यहां कुतुबुद्दीन ऐबक की बनवाई मस्जिद में कभी नमाज़ नहीं पढ़ी गई। क्योंकि इस मस्जिद को गिराए गए मंदिरों की सामग्री से बनाया गया था। लिहाजा इसकी इमारत के खंभों, मेहराबों, दीवारों और छत पर जगह-जगह हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां थीं। उन धार्मिक प्रतीकों को आज भी देखा जा सकता है।

याचिका में दावा किया गया है कि आज का महरौली पहले मिहिरावली कहा जाता था। इसे चौथी सदी के महान शासक चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक वराहमिहिर ने बसाया था। वराहमिहिर ने ग्रहों के अध्ययन के लिए विशाल स्तंभ का निर्माण करवाया था, जिसे ध्रुव स्तंभ या मेरु स्तंभ कहा जाता था। कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसे ही कुतुब मीनार नाम दे दिया। इस परिसर में 27 नक्षत्रों के प्रतीक 27 मंदिर थे। इनमें जैन तीर्थंकरों के साथ-साथ भवन विष्णु, शिव, गणेश आदि के मंदिर शामिल थे। कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में अपने शासन के दौरान इन मंदिरों को तोड़कर वहां मस्जिद बनवा दी। याचिका में दावा किया गया है कि अब आठ सौ साल पुराने इतिहास को बदलकर वहां फिर से पूजापाठ करने की इजाजत दी जाए।