Rajasthan Crisis: राजस्थान की राजनीति में Twists and Turns

Rajasthan Politics: राज्य में राजनीति के चार मोर्चें खुले, सियासी हलचल की शुरुआत में कभी फ्रंटफुट खेलने वाली बीजेपी अब आई बैकफुट पर

Updated: Aug 10, 2020, 05:58 AM IST

जयपुर। 14 अगस्त से शुरू होने वाले राज्य के विधानसभा सत्र से पहले राज्य की सियासत में पल पल घटनाक्रम बदल रहा है। राजस्थान के सियासी हलचल की शुरुआत में कभी फ्रंटफुट खेलने वाली बीजेपी अब बैकफुट पर आ गई है। जिस कारण राज्य की सियासत और ज़्यादा दिलचस्प हो गई है। जहां सचिन पायलट गुट मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से नाराज हो कर पार्टी से अलग चले गए हैं तो कांग्रेस ने अपने विधायकों को जैसलमेर में रखा हुआ है। सत्र शुरू होने से पहले बीजेपी ने भी अपने विधायकों को टूटने से बचाने के लिए रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का सहारा लिया हैं। अब तक ख़ामोश रही पूर्व सीएम वसुधंरा राजे ने दिल्ली में डेरा डाल दिया है। उनके अचानक दिल्ली जाने ने बीजेपी की राजनीति में हलचल बढ़ गई है। 

विधानसभा सत्र से पहले अब राजस्थान बीजेपी को इस बात का डर सताने लगा है कि पार्टी में फूट पड़ने की बारी अब उसकी है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार राज्य का गहलोत खेमा अब बीजेपी के विधायकों से संपर्क साधने की कोशिश कर रहा है। गहलोत खेमे के हरकत में आने से बीजेपी घबरा गई है। बीजेपी ने सतर्कता बरतते हुए अपने 20 विधायकों को गुजरात भेज दिया है। बीजेपी के अनुसार यह सभी विधायक सोमनाथ दर्शन के लिए गए हैं। लेकिन जब राज्य में इतना बड़ा सियासी बवाल अपने चरम पर हो, ऐसे समय में सभी विधायकों को एक साथ सोमनाथ की याद आना दूध का दूध और पानी पानी का कर देता है। 

विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स इस बात का दावा कर रहे हैं कि अभी राजस्थान बीजेपी अपने 20 और विधायकों को गुजरात भेजने वाली है। ताकि पार्टी के अंदर की टूट को रोका जा सके।

मुकाबला त्रिकोणीय नहीं चतुष्कोणीय 

बीजेपी पार्टी के अंदर टूट को रोकने के लिए अपने लगभग 40 विधायकों को विधानसभा सत्र से पहले गुजरात भेज रही है। राज्य की राजनीति पर नज़र रखने वाले राजनीतिक पंडित यह मानते हैं कि बीजेपी को जितना ज़्यादा खतरा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से नज़र आ रहा है, उतना ही खतरा वसुंधरा राजे से भी है। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि यह मुकाबला त्रिकोणीय नहीं चार कोण वाला है। राज्य की सियासत में अब चार अलग अलग धुरी पनप गई हैं। एक धुरी पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं, दूसरी धुरी पर सचिन पायलट, तीसरा धुरी पर राजस्थान बीजेपी और चौथी धुरी पर खड़ी हैं खुद पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे। 

राज्य के इस सियासी घटनाक्रम में वसुंधरा की एंट्री ने मुकाबले को चार कोणीय बना दिया है। वसुंधरा ने पिछले तीन दिनों से दिल्ली में डेरा डाल रखा है। वसुंधरा ने पहले बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मुलाकात की। इसके बाद संगठन महामंत्री बीएल संतोष और आखिरी में वसुंधरा ने बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह से मुलाकात की। लेकिन इन सब के बीच सवाल यह उठता कि वसुंधरा के अचानक ही दिल्ली में डेरा डालने और राज्य की राजनीति में सक्रिय होने के क्या मायने हैं?

विधायकों को गुजरात भेजने पर वसुंधरा को आपत्ति 

मीडिया में इस बात की चर्चा है कि वसुंधरा पार्टी में खुद को दरकिनार होता महसूस कर रही हैं। वसुंधरा ने नेताओं से मुलाकात कर इस बात पर भी आपत्ति जताई है कि आखिर उनके विधायकों को गुजरात क्यों भेजा जा रहा है? दरअसल, बीजेपी के राज्य की राजनीति में अभी बैकफुट पर आने और वसुंधरा की राजनीति में अचानक सक्रिय होने सहित सभी जवाब इन्हीं विधायकों की शिफ्टिंग में है। दरअसल, जितने भी विधायक गुजरात भेजे जा रहे हैं वे सभी वसुंधरा गुट के हैं। और इसी वजह से वसुंधरा नाराज़ हैं। बीजेपी के 72 विधायकों में से कम से कम 45 विधायक ऐसे हैं जो वसुंधरा गुट के माने जाते हैं। बीजेपी को डर है कि कहीं ज़रूरत पड़ने पर वसुंधरा गुट के ये विधायक गहलोत कैंप का रुख न कर लें, लिहाज़ा उनको गहलोत और खुद वसुंधरा की पहुंच से दूर किया जा रहा है।

राज्य की राजनीति में अक्सर यह एक खुले राज़ के तौर पर समझा जाता है कि गहलोत और वसुंधरा के बीच एक अलिखित समझौता हमेशा बरकार रहता है। इसलिए दोनों कभी एक दूसरे को परेशानी में डालने से बचते हैं। पिछले महीने जब सचिन पायलट ने बगावती रुख अपना कर राज्य की राजनीति में नाटकीय रूप ला दिया था तब पूर्व मुख्यमंत्री होने के बावजूद वसुंधरा बीजेपी की एक मात्र ऐसी नेता थीं, जिन्होंने इस पूरे सियासी घटनाक्रम पर सिर्फ इतना कहा था कि यह समय सत्ता की लड़ाई लड़ने की जगह महामारी से लड़ने का है। 

वसुंधरा अपनी ही पार्टी द्वारा उनको नीचा दिखाने की कोशिशें से परेशान हैं। और यही कारण दूसरे छोर पर खड़े सचिन पायलट भी गिना रहे हैं। तीसरा और चौथा छोर बीजेपी और अशोक गहलोत का है, जो कमोबेश एक ही तरह की लड़ाई लड़ रहे हैं। बीजेपी और गहलोत दोनों के सामने चुनौती एक ही है, और वो है अपने विधायकों को समेट के रखना। उधर वसुंधरा और पायलट एक तरह से अपनी पार्टी में अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहे हैं। पायलट ने तो जंग बहुत दिनों से छेड़ रखी है। लेकिन अब अपनी पार्टी से जंग छेड़ने की बारी वसुंधरा की है। 

वसुंधरा की बीजेपी से दुश्मनी कितनी पुरानी है? 

राजस्थान में पनपे सियासी संकट के बीच यह सवाल सबको परेशान कर रहा है कि आखिर एक पूर्व मुख्यमंत्री अपनी ही पार्टी में कैसे उपेक्षित महसूस कर रही है ? वसुंधरा के बीजेपी में कम होते दबदबे का सबसे बड़ा प्रमाण अगर कुछ हो सकता है तो वो है बीजेपी की एलायंस राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल का वो बयान जिसमें उन्होंने वसुंधरा पर गहलोत के साथ मिलीभगत के आरोप लगाए थे। वसुंधरा राज्य में आरएलपी के साथ गठबंधन तोड़ना चाहती हैं लेकिन पार्टी है कि वसुंधरा की बात मानने को तैयार ही नहीं है। राजस्थान बीजेपी में वसुंधरा के अलावा एक और दूसरा गुट है जो कि केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत और भंवर लाल शर्मा का है। भले ही विधायकों के समर्थन के मामले में वसुंधरा अपनी पार्टी के विपक्षी गुट से आगे हों लेकिन पार्टी और संगठन में वसुंधरा की पकड़ अब पहले जैसी नहीं रही है। यही वजह है कि वसुंधरा अब पार्टी के अंदर अपने दबदबे से ज़्यादा अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही हैं। ऐसा नहीं है कि बीजेपी दो खेमों में अभी बंट गई है। वसुंधरा को पार्टी में दरकिनार किए जाने का अंदाज़ा पिछले चुनाव में ही लग गया था जब बीजेपी के अंदर से यह आवाज़ें जनता तक पहुंचाई जा रही थीं कि ' मोदी तुझसे बैर नहीं पर वसुंधरा तेरी खैर नहीं।'