Sachin Pilot: अगले कदम का इंतज़ार

हर तरफ से सीएम अशोक गहलोत पर दबाव बनाने की रणनीति अपनाने वाले सचिन पायलट सोशल मीडिया से भी गायब

Updated: Jul 29, 2020, 01:59 AM IST

जयपुर। राजस्थान की राजनीतिक लड़ाई में अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और राज्यपाल आमने सामने हैं। राज्यपाल ने कुछ शर्तों के साथ विधानसभा सत्र बुलाने का आदेश दिया है, जिसके ऊपर गहलोत कैबिनेट विचार विमर्श कर रही है। इस बीच अयोग्यता नोटिस मामले में राजस्थान हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से राहत पा चुके सचिन पायलट कहीं दिख नहीं रहे हैं। शुरुआत में उन्होंने ट्वीट भी किए थे, लेकिन वे अब सोशल मीडिया पर भी नजर नहीं आ रहे हैं। ऐसे में यह जिज्ञासा पैदा हो रही है कि आखिर सचिन हैं कहां और इस पूरी राजनीतिक सरगर्मी में उनका अगला कदम क्या होगा।

हरियाणा बीजेपी की मेजबानी में पायलट

राजस्थान कांग्रेस के एक करीबी सूत्र ने बताया कि सचिन पायलट अभी भी हरियाणा बीजेपी की मेजबानी वाले होटल में हैं और वहीं से अपनी रणनीति बना रहे हैं। सचिन पायलट के सामने अभी मुख्य रूप से दो उद्देश्य हैं। पहला, उनके साथ जो 18 विधायक हैं उन्हें गहलोत कैंप में वापस जाने से रोकना और दूसरा, राज्यपाल, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट से जो समय उन्हें मिला है उसमें गहलोत कैंप के ज्यादा से ज्यादा विधायकों को अपने पाले में खींचना।

सूत्रों ने हमें बताया कि पायलट अब पूरी तरह से गजेंद्र सिंह शेखावत के इशारों पर काम कर रहे हैं। उनकी मंशा अब पूरी तरह से साफ है कि वे गहलोत सरकार को अल्पमत में लाना चाहते हैं। बीजेपी ने एक बार फिर से राजस्थान हाई कोर्ट में बसपा विधायकों के कांग्रेस में विलय के खिलाफ याचिका डाली है। पायलट की रणनीति हर तरफ से गहलोत के ऊपर दबाव बनाने की है। हालांकि, ना तो गहलोत पर दबाव बनाना आसान है और ना ही उनके कैंप के विधायकों का शिकार करना।

गहलोत कैंप के विधायक लगातार मुख्यमंत्री द्वारा बुलाई गई बैठकों में शामिल हो रहे हैं और उनमें से किसी ने भी अभी तक असंतोष या विरोध की कोई भी आवाज नहीं उठाई है। यहां तक बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायक भी कह चुके हैं कि वे किसी भी परिस्थिति में गहलोत का ही साथ देंगे।

पायलट कैंप के विधायकों का डर

पायलट के लिए अपने कैंप के 18 विधायकों को बचाना अब सबसे जरूरी काम है। बताया जा रहा है कि गहलोत खेमा इन बागी विधायकों से संपर्क करने की कोशिश कर रहा है। इन विधायकों में कुछ ऐसे हैं, जो अशोक गहलोत से काफी नाराज हैं। उनसे संपर्क करके उनकी नाराजगी दूर करने की कोशिश की जा रही है।

दूसरी, तरफ ये विधायक यह भी समझ रहे हैं कि कोरोना के समय में उन्होंने विद्रोह करके बेमतलब की परेशानी अपने सर पर ले ली है। अगर किसी भी परिस्थिति में वे अयोग्य घोषित हो जाते हैं तो उन्हें फिर से चुनाव लड़ना होगा। लेकिन खुले तौर पर विरोध करने के कारण एक तरफ उन्हें जनता के गुस्से का डर और दूसरी तरफ यह अनिश्चितता है कि कोरोना काल में पता नहीं कब चुनाव हों। ऐसे में इन डरे हुए विधायकों को अपने पाले में बनाए रखने के लिए पायलट को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है।

बीजेपी का ठप्पा लग गया है पायलट पर

पायलट के लिए जो सबसे मुश्किल काम है वो अपनी उस छवि को सुधारना, जिसके ऊपर बीजेपी से मिले होने का ठप्पा लग गया है। पायलट शुरू से ही यह कहते आए हैं कि वे बीजेपी में शामिल नहीं होने जा रहे हैं, वे बस अशोक गहलोत से नाराज हैं। हालांकि, बीते दिनों जो घटनाक्रम हुआ है, उसने कहीं ना कहीं उनकी इस मंशा पर सवाल खड़े किए हैं।

खासकर, पायलट का बागी विधायकों के साथ बीजेपी शासित हरियाणा के होटल में रुकना। बीजेपी और केंद्र सरकार की पैरवी करने वाले वरिष्ठ वकीलों मुकुल रोहतगी और हरीश साल्वे से अपनी और बागी विधायकों की पैरवी कराना। नोटिस मामले में केंद्र सरकार को पक्षकार बनाने के लिए हाई कोर्ट में अर्जी देना। ये सभी तथ्य कहीं ना कहीं यह इशारा करते हैं कि पायलट और बीजेपी के बीच कुछ तो चल रहा है।

कहा तो यह भी जा रहा है कि पायलट ने शुरुआत से बीजेपी में शामिल ना होने की बात पर इसलिए जोर दिया ताकि वे कोर्ट में अयोग्यता नोटिस के खिलाफ यह तर्क दे पाएं कि वे बस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से असंतुष्ट हैं, दूसरी पार्टी के साथ मिलकर कोई साजिश नहीं रच रहे हैं। ऐसे में पायलट क्या कदम उठएंगे,क्या वे सच में बीजेपी में नहीं जाना चाहते हैं या अपना अलग मोर्चा बनाना चाहते हैं, यह देखना रोचक होगा।