पूर्व CJI गोगोई पर साज़िश के तहत यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने का केस क्लोज़, सुप्रीम कोर्ट ने बंद किया मामला

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो साल बीत जाने के चलते जांच के लिए जरूरी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड मिलने की संभावना बहुत कम, केस जारी रखना ज़रूरी नहीं

Updated: Feb 18, 2021, 02:00 PM IST

Photo Courtesy : Twitter
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नई दिल्ली। क्या सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के खिलाफ एक महिला कर्मचारी के यौन उत्पीड़न का आरोप एक बड़ी साज़िश के तहत लगाया गया था? क्या ऐसा बेंच फिक्सिंग करने या सीजेआई के पद को निष्प्रभावी बनाने के इरादे से किया गया था? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनका पक्के तौर पर जवाब मिल पाना अब मुश्किल है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर जो केस शुरू किया था, उसे खुद सर्वोच्च न्यायालय ने ही बंद कर दिया है। 

सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने आज केस बंद करने का फैसला करते हुए कहा कि अब इस मामले को और आगे जारी रखना जरूरी नहीं है। अदालत ने आज कहा कि पूर्व जस्टिस एके पटनायक की जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि जस्टिस गोगोई पर आरोप लगाए जाने के पीछे किसी बड़ी साज़िश की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। साथ ही इसमें यह भी बताया गया है कि जस्टिस गोगोई के कई फैसले उन पर झूठे आरोप लगाए जाने की वजह हो सकते हैं। साथ ही इसमें आईबी के उस इनपुट का जिक्र भी किया गया है, जिसके मुताबिक असम में एनआरसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की वजह से कई लोग जस्टिस गोगोई से नाराज़ थे। बेंच ने कहा कि उस घटनाक्रम को दो साल बीत चुके हैं, लिहाजा साज़िश की जांच के लिए ज़रूरी इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस यानी सबूत मिल पाना अब बेहद मुश्किल होगा। बेंच ने माना कि इन परिस्थियों के मद्देनज़र केस को अब आगे जारी रखना ज़रूरी नहीं रह गया है, लिहाजा केस बंद किया जाता है। 

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व महिला कर्मचारी ने साल 2019 में तत्कालीन चीफ जस्टिस गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। यह महिला 2018 में जस्टिस गोगोई के आवास पर बतौर जूनियर कोर्ट असिस्टेंट काम कर रही थी। महिला का दावा था कि बाद में उसे नौकरी से हटा दिया गया। महिला ने अपने हलफनामे की कॉपी 22 जजों को भेजी थी। इसी आधार पर चार वेब पोर्टल्स ने चीफ जस्टिस के बारे में खबर प्रकाशित की। अप्रैल 2019 में मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस गोगोई पर लगे आरोपों को गलत बताते हुए उन्हें क्लीन चिट दे दी थी। इसके बाद वकील उत्सव बैंस ने आरोप लगाया कि गोगोई को फंसाने के लिए एक बड़ी साज़िश के तहत आरोप लगाए गए थे। इस पर कोर्ट ने पूर्व जस्टिस एके पटनायक को साजिश की इस आशंका की जांच करने को कहा था। जस्टिस पटनायक कमेटी ने अक्टूबर 2019 में अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सौंप दी थी। रिपोर्ट में पूर्व CJI के खिलाफ साजिश की आशंका खारिज नहीं किया, लेकिन इस आरोप को साबित करने के लिए ज़रूरी सबूत भी जुटाए नहीं जा सके। और आज साजिश से जुड़ा केस भी बंद कर दिया गया। गौरतलब है कि पटनायक की कमेटी सिर्फ साजिश के एंगिल की जांच कर रही थी। यौन उत्पीड़न के आरोपों में तो सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही जस्टिस गोगोई को क्लीन चिट मिल चुकी थी।

जस्टिस रंजन गोगोई 3 अक्टूबर 2018 से 17 नवंबर 2019 तक देश के प्रधान न्यायाधीश (Chief Justice of India) रहे। इस दौरान उन्होंने असम एनआरसी मामले के अलावा अयोध्या विवाद, राफेल घोटाले समेत कई  महत्वपूर्ण व राजनीतिक रूप से संवेदनशील समझे जाने वाले मामलों की सुनवाई की या उन पर अहम फैसले सुनाए। 19 मार्च 2020 को यानी रिटायरमेंट के करीब चार महीने बाद ही मोदी सरकार ने जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा में नॉमिनेट कर दिया। फिलहाल वे राज्यसभा के सांसद हैं।