पूजा स्थल कानून 1991 की वैधता को चुनौती, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा जवाब 

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि पूजास्थल कानून के प्रावधान हिंदुओं को अपने प्राचीन धार्मिक स्थलों को बर्बर आक्रमणों के दौरान किए गए क़ब्ज़े से मुक्त कराने से रोकते हैं

Updated: Mar 13, 2021, 04:23 AM IST

Photo Courtesy: Adobe Stock
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 1991 के पूजा स्थल अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने का फैसला लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। दरअसल, बीजेपी नेता व वकील अश्विनी उपाध्याय ने इस एक्ट की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है। याचिकाकर्ता की मांग है कि कानून की धारा दो, तीन, चार को रद्द किया जाए, क्योंकि इनमें क्रूर आक्रांताओं द्वारा गैरकानूनी रूप से कब्जा किए गए या बनाए गए पूजा स्थलों को कानूनी मान्यता दी गई है।

याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि यह कानून संविधान के दायरे का उल्लंघन करता है। शुक्रवार को सोमवार को चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय और संस्कृति मंत्रालय को नोटिस जारी करके जवाब तलब किया है। शीर्ष अदालत द्वारा इस मामले का विचार करना इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि अयोध्या की तरह ही वाराणसी और मथुरा में भी विवाद को बढ़ावा देने की कोशिशें जारी हैं। 

याचिका में कहा गया है कि, '11 जुलाई, 1991 को लागू कानून में मनमाने और अतार्किक ढंग से पूर्ववर्ती तिथि से कटऑफ डेट तय करते हुए यह घोषित कर दिया गया कि पूजा स्थलों और तीर्थ स्थलों की 15 अगस्त, 1947 की स्थिति में बदलाव नहीं किया जाएगा। केंद्र न तो कानून को पूर्व तिथि से लागू कर सकता है और न ही नागरिकों को ज्यूडिशियल रेमेडी (कोर्ट का सहारा लेने) से वंचित कर सकता है। केंद्र नागरिकों के लिए कोर्ट के दरवाजे नहीं बंद कर सकता।

क्या हैं याचिकाकर्ता की दलीलें

- यह कानून भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण के बीच भेदभाव करता है, जबकि दोनों भगवान विष्णु के ही अवतार हैं। ऐसा करना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।

- कानून हिंदू लॉ के इस सिद्धांत का उल्लंघन करता है कि मंदिर की संपत्ति कभी समाप्त नहीं होती, चाहे बाहरी व्यक्ति वर्षो उसका उपयोग क्यों न कर ले।

- यह कानून आक्रांताओं के गैर कानूनी कृत्यों को कानूनी मान्यता देता है। केंद्र को यह कानून बनाने का अधिकार नहीं क्योंकि संविधान में तीर्थ स्थल राज्य का विषय हैं।

- यह अनुच्छेद 25 के तहत हिंदू, जैन, बौद्ध और सिखों को धर्म के पालन और उसके प्रचार के मिले अधिकार को बाधित करता है। 

क्या है यह कानून

साल 1991 में लागू इस कानून में कहा गया है कि पूजा स्थलों की जो स्थिति 15 अगस्त, 1947 को, यानी देश की आजादी के समय थी, उसमें कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है। सिर्फ अयोध्या में चल रहे बाबरी मस्जिद और राम जन्म भूमि विवाद को इस कानून के दायरे से अलग रखा गया था। इसी कानून की वजह से काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर से जुड़े विवादों को बढ़ाने के अदालती रास्ते बंद हैं।