यूपी कैबिनेट ने पास किया धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश, अंतर-धार्मिक शादी के लिए लेनी होगी डीएम की इजाजत

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि हर बालिग़ नागरिक को जीवनसाथी चुनने का मौलिक अधिकार, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो, राज्य को इसमें दखल देने का हक़ नहीं

Updated: Nov 25, 2020, 02:18 AM IST

Photo Courtesy : The Economic Times
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लखनऊ। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार कथित लव जिहाद पर रोक लगाने के नाम पर धर्मांतरण के खिलाफ अध्यादेश लाने जा रही है। आज इस अध्यादेश को राज्य की कैबिनेट ने पास कर दिया है। योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि आज उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म समपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020 को पारित कर दिया है। 

मंगलवार को कैबिनेट में पारित किए गए इस अध्यादेश के तहत दूसरे धर्म में शादी करने वालों के लिए डीएम की इजाजत लेना ज़रूरी कर दिया गया है। इसके लिए शादी से 2 महीने पहले नोटिस देना होगा। बिना अनुमति लिए शादी करने या धर्म परिवर्तन करने पर 6 महीने से लेकर 3 साल तक की सजा के साथ 10 हजार का जुर्माना भी देना पड़ेगा।

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इसके साथ ही अध्यादेश में नाम छिपाकर शादी करने पर 10 साल की सजा का भी प्रावधान किया गया है। इसके अलावा गैरकानूनी तरीके से धर्म परिवर्तन करने पर एक से 10 साल तक की सजा होगी। साथ ही 15 हजार तक का जुर्माना भी देना पड़ सकता है। अध्यादेश में सामूहिक तौर पर गैरकानूनी तरीके से धर्म परिवर्तन करने पर 10 साल तक की कैद और 50 हजार रुपये तक जुर्माना देना पड़ सकता है। 

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योगी सरकार के मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह का कहना है कि योगी सरकार का यह अध्यादेश महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए बेहद ज़रूरी है। उन्होंने कहा, 'बीते दिनों में 100 से ज्यादा घटनाएं सामने आई थीं, जिनमें ज़बरन धर्म परिवर्तित किया जा रहा है। छल-कपट, बल से धर्म परिवर्तित किया जा रहा है। 

गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि देश का कानून सभी बालिग व्यक्तियों को अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार देता है और इस मामले में दखलंदाजी करने का सरकार को कोई हक़ नहीं है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ये अहम फैसला कुशीनगर के रहने वाले सलामत अंसारी और प्रियंका खरवार की शादी के मामले की सुनवाई के दौरान दिया। हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि अदालत ने कहा कि देश का कानून एक बालिग स्त्री या पुरुष को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार देता है, चाहे वे समान धर्म के हों या अलग धर्म के। यह देश के संविधान से मिले जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का मूलभूत हिस्सा है।' इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो बालिग नागरिकों के आपसी सहमति से बने निजी संबंधों में हस्तक्षेप करना दो लोगों की पसंद की स्वतंत्रता के अधिकार पर गंभीर अतिक्रमण होगा।