दफ्तर दरबारी: बलि का बकरा बच गया, अब किसका सिर कटेगा

MP News: पहले तो डिजाइन पास की फिर ब्रिज बन भी गया। मीडिया में मामला उठा तो डिजाइन पर सवाल उठे। विभाग ने ताबड़तोड़ कार्रवाई कर ठेकेदार को ब्‍लैकलिस्‍ट कर दिया। अब हाई कोर्ट ने ठेकेदार को निर्दोष करार दे दिया तो बलि के लिए नए बकरे की तलाश है।

Updated: Sep 20, 2025, 02:31 PM IST

आपको भोपाल का 90 डिग्री वाला ब्रिज तो याद होगा। किरकिरी हुई तो विभाग ने डिजाइन पास करने वाले अफसरों को बचा कर ब्रिज बनाने वाले ठेकेदार को ही ब्‍लैक लिस्‍ट कर दिया, कुछ मैदानी कर्मचारी कार्रवाई की जद में आ गए। इंतजार होता रहा कि अनुमति देने वाले बड़े अफसरों पर कार्रवाई कब होगी। उन पर कार्रवाई तो ठीक खुद पीडब्‍ल्‍यूडी मंत्री राकेश सिंह अपने बयानों से अफसरों का बचाव करते रहते हैं। लेकिन अब मामला उल्‍टा पड़ गया है। 

अब हाई कोर्ट ने ठेकेदार पुनीत चड्ढा को क्लीन चिट दे दी है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने स्पष्ट किया है कि जब ठेकेदार ने लोक निर्माण विभाग की तरफ से स्वीकृत नक्‍शे और निर्देशों के अनुसार कार्य किया है, तो उस पर कार्रवाई करना न केवल अनुचित बल्कि अन्यायपूर्ण है। उसे जो निर्देश दिए गए थे उसी हिसाब से ब्रिज बनाया गया है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने तल्ख लहजे में कहा 'बलि का बकरा बाहर हो गया, अब किसी न किसी का सिर तो कटेगा।' साफ है कि विभाग अब उस अफसर को खोजने निकल जाएगा जिसके सिर पर इस निर्माण का ठीकरा फोड़ा जाए। 

वैसे देखा जाए तो इस पूरे मामले में विभाग की पूरी कार्रवाई ही अजीबोगरीब है। जब मीडिया में हल्‍ला मचा तो कर्मचारी निलंबित कर दिए गए, ठेकेदार को ब्‍लैकलिस्‍ट कर दिया गया। अब मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान भोपाल की सिविल इंजीनियरिंग विभाग की जांच रिपोर्ट कोर्ट में रखते हुए खुलासा किया गया है कि ब्रिज तो सही है। लोकनिर्माण विभाग ने 119 डिग्री कोण का ब्रिज बनाने को कहा था, 114 से 118 डिग्री के बीच में ब्रिज बनाया गया। रिपोर्ट के मुताबिक 90 डिग्री जैसा कोई भी कोण या तकनीकी दोष नहीं है। 

मतलब, जब सवाल उठे तब भी जांच करवाए बिना ही इंजीनियरों और ठेकेदार पर कार्रवाई कर दी गई। अब पीडब्ल्यूडी मंत्री राकेश सिंह कह रहे हैं कि इस ब्रिज को लेकर कोई समस्या थी ही नहीं, लेकिन राजनीतिक और मीडिया प्रचार के चलते यह अनावश्यक विवाद में आ गया था। जब ब्रिज वास्तव में 114 डिग्री का है और तकनीकी रूप से सही है तो फिर मीडिया की खबरों पर कार्रवाई क्‍यों की गई? यह सवाल बकाया है। कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है। अब जब बलि का बकरा बनाया गया ठेकेदार बाहर हो गया है तो देखना होगा कि किस अफसर पर गाज गिरेगी और कौन बचा लिया जाएगा।

पुलिस निलंबित, पुलिस का ट्रांसफर, दबंगई कायम है

बीते दिनों प्रदेश के अनेक हिस्‍से से तेज रफ्तार वाहनों द्वारा राहगिरों को कुचलने की खबरें सामने आई हैं। इंदौर में नो इंट्री में घुसे ट्रक ने लोगों को कुचला तो शासन नींद से जागा। चौराहों पर हेलमेट-सीट बेल्‍ट चेकिंग में व्‍यस्‍त पुलिसकर्मी तथा सहायक आयुक्‍त सस्पेंड कर दिए गए, क्‍योंकि उन्‍हें नो इंट्री में आता ट्रक दिखाई नहीं दिया। व्‍यवस्‍था में विफल होने के बाद यातायात व्‍यवस्‍था देख रहे डिप्टी पुलिस कमिश्नर हटा दिए गए। मगर इससे होगा क्या?

क्‍या यह पहली बार था जब वह ट्रक नो इंट्री में घुसा था। पुलिसकर्मी जानते हैं, रोज ही ऐसा होता है। रोज हजारों बार ऐसे नियम तोड़े जाते हैं। ये नियम तोड़ने वाले आम लोग नहीं होते। आम जनता को तो पुलिस पकड़ लेती है। ये होते हैं दबंग। वे जो पॉवर सिस्‍टम का हिस्‍सा है। जैसे, इंदौर के बीजेपी विधायक के परिवार की बस ने चार लोगों को कुचल दिया। विधायक कह रहे हैं कि बाइक खड़ी बस से जा कर टकरा गई। जबकि मृतकों के परिजनों का कहना है कि बस तेज रफ्तार भी थी और ड्राइवर मोबाइल पर बात कर रहा था। वे पूछ रहे हैं कि बस खड़ी थी तो बाइक सवारों के सिर कैसे कुचले? परिजनों का आरोप है कि विधायक के परिवार की बस होने से ड्राइवर के खिलाफ मामूली धारा में प्रकरण दर्ज हुआ जबकि ट्रक ड्राइवर पर गैर इरादतन हत्‍या का मामला दर्ज हुआ। 

मुद्दा यही है कि पुलिसकर्मी सस्पेंड होते हैं, पुलिस अफसर ट्रांसफर मगर ‘पॉवर’ को किसी घटना से कोई फर्क नहीं पड़ता। हर घटना के बाद एक आदेश निकलता है। मैदानी अमले को समझाइश मिलती है कि वे सख्‍ती से नियमों का पालन करवाएं। वे सब देखते हैं, सब जानते हैं मगर अनियमितता रोक नहीं सकते क्योंकि पॉलिटिकल पॉवर जो चाहता है, वही होता है। जो अफसर आज हटे हैं, वे कल फिर महत्‍वपूर्ण पद पाए जाएंगे। सस्‍पेंड कर्मचारी फिर बहाल हो जाएंगे। 

ये एसडीएम, ये तहसीलदार, इनकी ठोकर पर सिस्टम

कानून-व्‍यवस्‍था ही नहीं, प्रदेश में सिस्टम कितना बिगड़ गया है यह इसीबात से समझा जा सकता है कि हर खास ओ आम परेशान है। मंत्रियों और विधायकों को बरसों से शिकायत है कि अफसर उनकी सुनते नहीं हैं। अब एडीएम, तहसीलदार जैसे मैदानी अफसर जनता को धमका रहे हैं, डरा रहे हैं। हौसला ऐसा कि कार्रवाई के बाद भी आधी रात दफ्तर खोल कलेक्टर के आदेश को पलट रहे हैं। 

पहला मामला मुरैना का है जहां मारपीट, अभद्रता और शादी के लिए साल भर से युवती को परेशान करने के आरोप लगे तो सबलगढ़ एसडीएम अरविंद माहौर को कलेक्‍टर अंकित अस्थाना ने हटाकर कलेक्टोरेट में डिप्टी कलेक्टर के पद पर पदस्थ कर दिया। कलेक्‍टर का आदेश मिलते ही एसडीएम अरविंद माहौर ने आधी रात को कार्यालय खोलकर छह पटवारियों का तबादला कर दिया। एसडीएम का यह आदेश उनके विभाग में भी चर्चा का विषय बन गया है क्योंकि एसडीएम ने खुद को हटाने वाले कलेक्टर के ही एक आदेश को पलट दिया। कलेक्‍टर ने पटवारी हरिओम मीणा का तबादला किया था लेकिन पटवारी ज्‍वाइन नहीं कर रहे थे। एसडीएम अरविंद माहौर ने पटवारी को उसकी मनचाही जगह पर नियुक्‍त कर तबादला आदेश सोशल मीडिया ग्रुप में पोस्‍ट कर दिया। हालांकि, अब एसडीएम निलंबित हैं और पटवारी के तबादलों की जांच हो रही है। यह पहला मामला भी नहीं है, एसडीएम अरविंद माहौर के खिलाफ अभद्रता और मारपीट की कई बार शिकायतें आ चुकी हैं। 

दूसरी तरफ, मंदसौर में विवादों में रहे तहसीलदार बृजेश मालवीय फिर चर्चा में हैं। एक किसान ने वीडियो जारी कर बताया है कि उनकी जमीन कर कब्‍जे के मामले में तहसीलदार के पास  चक्‍कर लगा रहे हैं। उनका आरोप है कि तहसीलदार दूसरी पार्टी के हक में बात कर रहे हैं। इसलिए तहसीलदार ने उन्हें और उनके बेटे को धमकाया है कि तुझे जेल भिजवा दूंगा। अब बुजुर्ग किसान वीडियो जारी कर सहायता मांग रहे हैं। 

पूरे सिस्‍टम में ऐसे अफसरों का कद बहुत छोटा है लेकिन इनका तरीका बताता है कि इन्‍हें किसी की परवाह नहीं है। जब तक आका का संरक्षण मिला हुआ है, सिस्‍टम इनकी ठोकर पर है। वो तो सोशल मीडिया के कारण ऐसी आवाजें सुनाई दे रही है अन्‍यथा तो इनकी कोई सुनवाई नहीं है। 

ये कौन सा जोड़ है कि कलेक्टर –एसपी हटते नहीं

मजबूत जोड़ का उल्‍लेख करते है एक विज्ञापन याद हो जाता है। इनदिनों प्रशासनिक जगत में यही सवाल पूछा जा रहा है कि कुछ अफसरों का ऐसा कौन सा जोड़ है जिसके कारण वे पद से हटते ही नहीं है। जैसे, खाद संकट वाले जिलों के कलेक्‍टर। प्रदेश में कई दिनों से खाद का संकट है। किसान धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। पुलिस ने लाठी चार्ज तक किया है।जबकि सरकार कह रही है कि खाद का संकट नहीं है। अव्‍यवस्‍था के कारण संकट दिखाई दे रहा है। जबकि मैदान में किसान परेशान है। बिगड़ी स्थिति देख मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कलेक्टरों के प्रति सार्वजनिक रूप से आक्रोश जताते हुए कहा था कि इन्‍हें हटाना पड़ेगा। इसी तरह, मंदसौर यात्रा के दौरान मिलने आए किसानों से संवाद करते समय भी मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने नाराज हो कर एसपी से कहा था कि व्यवस्था नहीं कर सकते तो हटा देता हूं। 

मुख्‍यमंत्री की नाराजगी के बाद भी न खाद संकट हल हुआ और न अफसरों पर कार्रवाई हुई। मैहर में तो महिलाओं ने कलेक्टर की कार रोक कर खाद संकट पर खरी-खरी सुना दी। कलेक्‍टर की गाड़ी बड़ी मुश्किल से बाहर निकाली जा सकी। जब मुख्यमंत्री ने ऐसे अफसरों को हटाने के लिए कहा था तो कलेक्टर बनने को लालायित अफसरों की बांछे खिल गई थी। मगर जब आईएएस व आईपीएस की ट्रांसफर सूची आई तो उन अफसरों के नाम तो सूची में थे ही नहीं।  पद पाने के उत्सुक अफसर मायूस हैं। उन्‍हें अब भी लग रहा है कि दशहरे के बाद होने वाली कलेक्‍टर-कमिश्‍नर कांफ्रेंस के बाद वे अफसर हटा दिए जाएंगे जिनसे मुख्‍यमंत्री नाराज हैं। अब यह तो दिल बहलाने के लिए ख्‍याल अच्‍छा है अन्‍यथा उन्‍हें नादान कहा जाता है जो यह भी नहीं समझ पाते हैं कि दिखाने के दांत अलग होते हैं और खाने के अलग।