दफ्तर दरबारी: इकबाल सिंह बैंस के घर ईडी नहीं तो कौन

MP News: कहते हैं जहां धुंआ उठता है, वहां आग होना निश्चित है। यही सवाल पूर्व मुख्‍य सचिव इकबाल सिंह बैंस के घर ईडी के पहुंचने की खबर पर भी उठ रहा है। बताते हैं कि कुछ ऐसा घटा था जिससे ईडी की दबिश का अहसास हुआ लेकिन सभी ने इस सूचना को अफवाह करार दिया। यदि ईडी नहीं थी तो ताकतवर आईएएस के हाई सिक्‍यूरिटी बंगले पर आखिर पहुंचा कौन था?

Updated: Mar 25, 2024, 09:22 AM IST

शनिवार दोपहर अचानक एक सूचना वायरल होती है कि पूर्व मुख्‍य सचिव इकबाल सिंह के निवास पर ईडी ने छापा मारा है। सूचना आग की तरह फैली, खबर मिलते ही मीडिया और स्‍थानीय पुलिस भी इकबाल सिंह बैंस के सूरज नगर स्थित निवास पर पहुंचे। इसके पहले की कुछ समझ आता, सूचना की पुष्टि हो पाती, इसका खंडन आ गया। खुद इकबाल सिंह बैंस ने कहा कि उनके यहां कोई छापा नहीं पड़ा, सब अफवाह है। जितनी तेज खबर उड़ी थी, उतनी ही तेजी से खंडन भी हुआ। मगर अब सबकी यह जानने में रूचि है कि आखिर बिना आग के धुंआ उठा क्‍यों? 

पूर्व मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी अफसर आईएएस इकबाल सिंह बैंस करीब दस सालों तक सत्‍ता केंद्र रहे हैं। उनका रूतबा और कार्यप्रणाली ऐसी कि अच्‍छे-अच्‍छे अधिकारी उनके सामने आने से कांपते थे। उन पर कुछ आरोप भी लगते रहे हैं। उन्‍होंने जिस क्षेत्र में बंगला बनवाया है वह बड़े तालाब का कैचमेंट एरिया है और इस निर्माण पर भी कई आपत्तियां है। इस जानकारी का उल्‍लेख इसलिए ताकि इकबाल सिंह बैंस के रूतबे का अंदाजा हो सके। 

अपने समय के सबसे ताकतवर आईएएस इकबाल सिंह बैंस के निवास पर यदि अचानक एक साथ लगभग एक दर्जन बड़ी गाडि़यां पहुंची तो आसपास के लोग इकट्ठा हो गए। पुलिस और मीडिया तक सूचना पहुंची। स्‍थानीय पुलिसकर्मी तो मौके पर पहुंचे ही, खबरनवीस भी पहुंच गए। कहीं से कोई जानकारी स्‍पष्‍ट नहीं हुई। तब तक खबर बन गई थी कि बैंस के घर ईडी का छापा हुआ है। ईडी का ही जिक्र इसलिए क्‍योंकि जो तरीका अपनाया गया था ईडी वैसे ही छापे मारती है। एक घंटे के इस घटनाक्रम में कई तरह की कहानियां सामने आ रही है। सोशल मीडिया पर बताया जा रहा है कि ईडी के अधिकारी ही एक साथ पहुंचे थे लेकिन कार्रवाई शुरू होते ही कुछ फोन हुए और फिर टीम लौट गई। इस एक घंटे के दौरान गाडि़यां और उनमें आए लोग पूर्व सीएस के बंगले पर ही थे। 

छापे की खबरों का खंडन हो चुका है। बंगले पर मौजूद गार्ड ने भी बताया है कि सात-आठ गाड़ियां जरूर आई थीं, लेकिन छापे जैसा कुछ नहीं था। सवाल यह है कि ईडी या और कोई सरकारी जांच एजेंसी नहीं थी तो पूर्व सीएस बैंस के घर आखिर गया कौन था? इस वक्‍त इकबाल सिंह बैंस जापान में हैं। उनकी अनुपस्थिति में कौन ऐसे उनके हाई सिक्‍यूरिटी वाले बंगले पर जा सकता है? और अगर अनाधिकृत रूप से एक साथ इतनी गाडि़यां पहुंची थी तो उनके खिलाफ शिकायत क्‍यों नहीं हुई? मामला पेचीदा है और इसकी पेचीदगियां नहीं सुलझा पा रहे लोगों के पास एक ही तर्क है, समरथ को नहीं दोष गोसाईं। 

आईएएस का कुंठा या अहंकार

मध्‍य प्रदेश के प्रशासनिक इतिहास में शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि एक प्रमुख सचिव स्‍तर के आईएएस और सचिव स्‍तर के आईएएस में विवाद कमरे के बाहर तक आ जाए। गुजरे सप्‍ताह यही हुआ जब प्रमुख सचिव मनीष रस्‍तोगी ने एक बैठक में जेल विभाग के सचिव प्रमोटी आईएएस ललित दाहिमा को फाइल पर टिप्‍पणी लिखने से रोका। प्रमुख सचिव मनीष रस्‍तोगी ने सचिव ललित दाहिमा को साइड लाइन करते हुए उप सचिव कमल नागर को प्राथमिकता दी और दाहिमा को बैठक से चले जाने के लिए कहा। दाहिमा ने अपने तर्क दिए तो नाराज प्रमुख सचिव खुद अपना कैबिने छोड़ कर बाहर आ गए। इस तरह विवाद कमरे से बाहर मंत्रालय के गलियारें, खबरों और मुख्‍य सचिव के पास शिकायत के रूप में पहुंच गया। 

प्रमुख सचिव मनीष रस्‍तोगी अपने बुरे व्‍यवहार के कारण कुख्‍यात हैं। पूर्व मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का प्रमुख सचिव बनने के पहले तक उनका व्‍यवहार सौम्‍य हुआ करता था लेकिन ज्‍यों-ज्‍यों वे वरिष्‍ठ और ताकतवर होते गए धीरे-धीरे व्‍यवहार में तल्‍खी आने लगी। अपने अधीनस्‍थ स्‍टॉफ के साथ सख्‍ती से पेश आने वाले मनीष रस्‍तोगी ने प्रमोटी और जूनियर आईएएस के साथ कड़क अफसर बन ही व्‍यवहार किया। उनकी भाषा और लहजे को देखते हुए कई कर्मचारियों व अफसरों ने साथ काम करने से इंकार भी किया। 

शिवराज सरकार के पावरफुल आईएएस मनीष रस्‍तोगी का यह व्‍यवहार प्रशासनिक जगत में चर्चा का विषय है। उस दौरान उनकी तूती बोलती थी, लेकिन नई सरकार ने उनकी उपेक्षा की। वरिष्‍ठ होने के साथ एक खासतरह की विनम्रता और बड़प्‍पन आना स्‍वाभाविक है लेकिन प्रमुख सचिव का व्‍यवहार शिवराज सरकार में जितना बुरा था, वह रूतबा जाने, एक माह खाली रहने और फिर विभाग की जिम्‍मेदारी मिलने के बाद के क्रम में और बुरा हो गया है। अंतर कर पाना मुश्किल है कि यह उनका दंभ है या कुंठा कि वे छोटे कर्मचारी तो ठीक आईएएस जैसे अधिकारियों के साथ भी सम्‍मानजनक व्‍यवहार नहीं कर पा रहे हैं।

किसका चला रुतबा कि चंद घंटों में बदला ऑर्डर

लोकसभा चुनाव की आचार संहिता के लागू होने से पहले मध्यप्रदेश में बड़े पैमाने पर तबादले किए गए। लंबे समय से नई पदस्‍थापना का इंतजार कर रहे अफसरों को नई नियुक्तियां मिली। मनचाही और जमावट वाली इन पोस्टिंग में गफलत भी हो गई। सरकार को कुछ ही घंटों में अपने आदेश से पलटना पड़ा। मंडी बोर्ड भेजे गए 2006 बैच के आईएएस धनंजय सिंह भदौरिया का तबादला निरस्‍त करना पड़ा। यह तबादला इसलिए बदला गया क्‍योंकि 2007 बैच के आईएएस श्रीमन शुक्‍ल का तबादला निरस्‍त किया गया था। सरकार ने श्रीमन शुक्‍ल को प्रबंध संचालक व आयुक्‍त मंडी बोर्ड से हटा कर योजना एवं आर्थिक सांख्यिकी विभाग में सचिव बनाया था। यह आईएएस श्रीमन शुक्‍ल को लूप लाइन या अपेक्षाकृत कम महत्‍व के समझे जाने वाले विभाग में भेजने की तरह था। यानी उनका कद कम किया गया था।

लेकिन यह आदेश 24 घंटे भी कायम नहीं रह सका। सरकार ने आधी रात फिर ट्रांसफर आर्डर जारी किए। इसमें आईएएस श्रीमन शुक्‍ल को मंडी बोर्ड में एमडी के पद के साथ योजना, आर्थिक व सांख्यिकी विभाग के सचिव का अतिरिक्‍त प्रभार दिया गया था। इस तरह श्रीमन शुक्‍ल को दो जिम्‍मेदारियां दे कर उनका वजन बढ़ा दिया गया। इस फैसले के भी अपने अर्थ हैं। असल में सरकारी ऑर्डर के बदलने के पीछे एक रूतबा काम कर रहा था। यह रूतबा इंडियन एडिमिनिस्‍ट्रेशन सर्विस का होता तो सब पर लागू होता। यहां तो यह रूतबा राजनीतिक है।

आईएएस श्रीमन शुक्‍ल पूर्व गृहमंत्री और बीजेपी के वरिष्‍ठ नेता नरोत्तम मिश्रा के रिश्‍तेदार हैं। नरोत्तम मिश्रा के प्रभाव के कारण ही सरकार अपने आदेश को पलटने के लिए मजबूर हुई। इस तरह यह रूतबा राजनीतिक गलियारे से होते हुए प्रशासनिक कक्ष तक पहुंचा है। 

सिस्टम फूंक गया, फाइल जल गई, धूल गए दाग

9 मार्च को जब प्रदेश के सबसे संवेदनशील क्षेत्र मंत्रालय में आग लगी तब कयास लगाए गए थे कि यह आग लगी नहीं बल्कि लगाई गई है। किसी घोटाले के दस्‍तावेज खत्‍म करने की यह साजिश हो सकती है। आग बुझने के इतने दिनों बाद अब इस शक के अंगारे धधक रहे हैं। यह आशंका अब विश्‍वास में बदल रही है कि मंत्रालय में लगी आग में पटवारी भर्ती घोटाले की जांच रिपोर्ट जल कर खाक हो गई है। 

इस आशंका की वजह भी सरकार ने ही दी है। पटवारी भर्ती परीक्षा के बाद अपने हक के लिए लड़ रहे युवाओं ने जांच रिपोर्ट को जानने के लिए आरटीआई लगाई थी। सूचना के अधिकार कानून के तहत यह जानकारी आवेदन के 30 दिनों के अंदर मिल जानी चाहिए। लेकिन आवेदकों को अब तक जानकारी नहीं मिली है। जब उन्‍होंने सूचना के बारे में जानकारी मांगी तो कहा गया कि आग से वह पूरी विंग जल गई है जहां जांच रिपोर्ट रखी थी। फाइलें तो जल गई और कम्‍प्‍यूटर सिस्‍टम फूंक जाने से साफ्ट कॉपी भी फिलहाल उपलब्‍ध नहीं है। रिपोर्ट कब मिलेगी, इस पर चुप्‍पी है। 

जुलाई 23 में जांच के आदेश के बाद तीन माह में जांच रिपोर्ट आ जानी चाहिए थी लेकिन रिपोर्ट जनवरी में आई। मार्च अंत तक भी रिपोर्ट में क्‍या है यह खुलासा नहीं हो सका है। इस जांच रिपोर्ट के आधार सरकार पटवारी भर्ती में गड़बड़ी से पहले ही इंकार कर चुकी है। अब यदि कोई इस मामले की जांच की रिपोर्ट देखना चाहे तो उसे इंतजार करना होगा क्‍योंकि फाइलें जल गई है और सिस्‍टम फूंक गया है। यह इंतजार कब पूरा होगा कोई नहीं जानता है।