ये ‘मौसम’ और सियासत शायराना...
बात शायरी तक कहां सिमटी है? मसला तो वे सवाल हैं जो विपक्ष उठा रहा है? वे सवाल जो गृहमंत्री अमित शाह ने बतौर विपक्ष पश्चिम बंगाल में उठाए हैं। वे सवाल जो कांग्रेस नेता राहुल गांधी उठा रहे हैं।
देश में Coronavirus का कहर है। दो बड़े तूफान अम्फान और निसर्ग गुजरे हैं। मानसून सिर पर है। कोरोना संक्रमण के आंकड़ें हर रोज रिकार्ड तोड़ रहे हैं। Unlock 1 हो चुका है मगर कई मजदूर पौने तीन माह में भी अपने घर नहीं पहुंच पाए हैं। अर्थव्यवस्था अपने सबसे बुरे दौर की ओर है। बेरोजगारी पहाड़ की तरह सामने दिखाई दे रही है। रोजी-रोटी का संकट है। सीमा पर चीन पैंतरें दिखा रहा है। उसके साथ बातचीत के कई दौर हुए मगर ‘कोल्ड वार’ थम नहीं रहा है। हर तरफ से ‘ठंडी’ खबरें ही आ रही हैं मगर राजनीति का आकाश गर्म हैं। देश के राजनीति दल चुनाव मोड में आ चुके हैं। भाजपा देश भर में वचुर्अल रैलियां कर रही हैं तो कांग्रेस MODI government 2.0 से काम का हिसाब मांग रही है। आरोप-प्रत्यारोप, आक्रोश और बचाव के इस दौर में सियासत दां शायराना हो गए हैं। शायरी में ही तीखे वार भी छिपे हैं और इन ताकतवर सवालों से बचने के लिए शायरी का झीना ही सही मगर एक कवच तैयार कर लिया गया है।
यूं तो श्रोताओं पर पर असर डालने के लिए नेता अकसर ही अपने भाषणों में शेरो-शायरी पढ़ते हैं। संसद में भी ऐसे कई किस्से हैं जब नेताओं ने एक-दूसरे पर शायरी से हमले किए और शायरी में ही जवाब दिए हैं। मगर ऐसा कम ही हुआ है जब सोशल मीडिया पर और वर्चुअल रैली में शायरी के जरिए देश की सियासी जमीं गर्माई हो।
इस बार हमले की शुरुआत कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने की। उन्होंने मोदी सरकार की विदेश नीति पर सवाल उठाते हुए मिर्ज़ा ग़ालिब के शेर में कुछ परिवर्तन कर ट्वीट किया -
सब को मालूम है ‘सीमा’ की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के ख़ुश रखने को, ‘शाह-यद’ ये ख़्याल अच्छा है।'
राहुल गांधी के इस ट्वीट के जवाब में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी शायराना हो गए। उन्होंने कहा-
‘हाथ’ में दर्द हो तो दवा कीजै, ‘हाथ’ ही जब दर्द हो तो क्या कीजै..।
राजनाथ सिंह के ट्वीट का शायराना जवाब दिया कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने। उन्होंने ट्वीट कर कहा,
'आदरणीय राजनाथ जी, सवाल पूछो तो सवाल पूछते हैं,
हुकूमत वाले अब जुबान पूछते हैं,
कुछ बाजु-ए-ताक़त तो आज़माइए जनाब,
हम हिंदुस्तान हैं, लाल आँख का अंजाम पूछते हैं। सादर, समस्त भारतवासी।'
यह शायराना बयान युद्ध तो सोशल मीडिया पर जारी था मगर भाजपा नेता और गृहमंत्री अमित शाह ने अपनी कोलकाता वर्चुअल रैली में भोपाल के प्रख्यात हिंदी शायर दुष्यंत कुमार के शेर का प्रयोग किया। शाह ने दुष्यंत कुमार के शेर को कुछ यूं पढ़ा -
'हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।'
नाप तौल कर बोलने वाले और सख्त भाव भंगिमा वाले राजनेता अमित शाह का यह शायराना अंदाज कई लोगों के लिए चौंकाने वाला रहा। अब पश्चिम बंगाल की तेज तर्रार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी ऐसे ही किसी शायरना से जवाब की उम्मीद हो गई है। मगर बात शायरी तक कहां सिमटी है? मसला तो वे सवाल हैं जो विपक्ष उठा रहा है? वे सवाल जो गृहमंत्री अमित शाह ने बतौर विपक्ष पश्चिम बंगाल में उठाए हैं। वे सवाल जो कांग्रेस नेता राहुल गांधी उठा रहे हैं।
मनमोहन सिंह-सुषमा का अंदाज आज भी याद है
यूं तो संसद में हमेशा शेर-काव्य पंक्तियों का उपयोग होता है मगर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और विपक्ष में रही भाजपा नेत्री सुषमा स्वराज के दो शायरी मुकाबले आज भी याद किए जाते हैं। 24 मार्च 2011 को लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने नियम-193 के तहत हुई चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री के नेतृत्व और कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए शेर पढा,
तू इधर-उधर की न बात कर, ये बता के कारवां क्यों लुटा,
मुझे रहजनों (लुटेरों) से गिला नहीं, तेरी रहबरी (नेतृत्व) का सवाल है।
इस शेर पर सुषमा के सामने बैठे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मुस्कुरा दिए।
चर्चा के जवाब के दौरान पीएम मनमोहनसिंह ने सुषमा स्वराज के शेर के जवाब में इकबाल का मशहूर शेर पढ़ा-
माना के तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं,
तू मेरा शौक देख मेरा इंतजार देख।
पंद्रहवीं लोकसभा में ही एक बहस के दौरान मनमोहन सिंह ने भाजपा पर निशाना साधते हुए मिर्जा गालिब का मशहूर शेर पढ़ा था-
‘हम को उनसे वफा की है उम्मीद, जो नहीं जानते वफा क्या है।'
इसके जवाब में सुषमा स्वराज ने बशीर बद्र की मशहूर रचना पढ़ी,
‘कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता।'
इसके बाद सुषमा ने दूसरा शेर भी पढ़ा था,
‘तुम्हें वफा याद नहीं, हमें जफा याद नहीं,
जिंदगी और मौत के दो ही तराने हैं,
एक तुम्हें याद नहीं, एक हमें याद नहीं।'