दफ्तर दरबारी: अफसरों के अरमान पर सरकार का अड़ंगा

MP News: कुछ अफसरों के लिए घंटों की प्रक्रिया चुटकियों में पूरा करने वाली सरकार कुछ अफसरों के लिए चुटकियों के काम को महीनों की प्रक्रिया में उलझा रही है। शायद इसलिए कि नौकरी में रह कर जो अफसर नाक में दम किए हुए हैं वे चुनाव मैदान में उतर गए तो कितना परेशान करेंगे।

Updated: Sep 10, 2023, 09:18 AM IST

आईपीएस पुरुषोत्‍तम शर्मा
आईपीएस पुरुषोत्‍तम शर्मा

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 में एक दर्जन अफसर चुनाव मैदान में उतरने के ख्वाब पाले हुए हैं। कांग्रेस, बीजेपी और आम आदमी पार्टी के साथ दूसरे दलों में भी अफसर अपनी संभावनाएं टटोल रहे हैं। मगर सरकार ने इन अफसरों के अरमानों पर पानी फेर दिया है। 

एमपी में आईएएस अफसर बी. चंद्रशेखर (अब समान शेखर), वरदमूर्ति मिश्रा द्वारा आवेदन करते ही राज्‍य सरकार ने तुरंत इस्‍तीफा स्‍वीकार कर लिया था। इन अधिकारियों के वीआरएस की प्रक्रिया भी तुरंत पूरी कर दी गई थी। चार रिटायर्ड आईएएस बीजेपी की सदस्‍यता ले चुके हैं। बीजेपी ने पहली सूची में मंडला जिले के बिछिया विधानसभा से डॉ. विजय आनंद मरावी को टिकट दिया है। डॉ. विजय आनंद मरावी ने सुबह सरकारी मेडिकल कॉलेज में अपने पद से इस्‍तीफा दिया और टिकट मिलने के बाद शाम को बीजेपी की सदस्‍यता ग्रहण की। 

इन उदाहरणों को देखते हुए सीनियर आईपीएस पुरुषोत्‍तम शर्मा और डिप्‍टी कलेक्‍टर निशा बांगरे ने सोचा होगा कि चुनाव लड़ने का उनका सपना भी पूरा होगा। पुरुषोत्‍तम शर्मा ग्‍वालियर-चंबल क्षेत्र की ब्राह्मण बहुल जौरा सीट से कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। एक सर्वे में जनता का पसंदीदा उम्‍मीदवार चुने जाने पर वे खुश भी हैं। इसी तरह, बौद्ध समागम जैसे आयोजन को लेकर सरकार से पंगा लेने वाली राज्‍य प्रशासनिक सेवा की अफसर निशा बांगरे बैतूल क्षेत्र से चुनाव लड़ने की तैयारी में है। उनके लिए सभी पार्टियों के दरवाजे खुले हैं। लेकिन इनके अरमानों पर सरकार ने पानी फेर दिया है। सरकार दोनों के इस्‍तीफे मंजूर नहीं कर रही है। 

कुछ अफसरों के लिए घंटों की प्रक्रिया चुटकियों में पूरा करने वाली सरकार कुछ अफसरों के लिए चुटकियों के काम को महीनों की प्रक्रिया में उलझा रही है। शायद इसलिए कि नौकरी में रह कर जो अफसर नाक में दम किए हुए हैं वे विपक्षी दल के उम्‍मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतर गए तो कितना परेशान करेंगे। इसलिए न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी की तर्ज पर विरोधी विचारधारा के अफसरों के वीआरएस पर सरकार का एक ही जवाब है, नो। 

आईपीएस को निष्पक्षता की नसीहत

कोरोना समय में कोरोना वायरस पर दिए एक बयान के बाद बीजेपी ने प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष कमलनाथ के खिलाफ शिकायत की तो पुलिस ने तुरंत एफआईआर दर्ज कर ली थी लेकिन जब कांग्रेस मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ शिकायत लेकर पहुंची तो मामला दर्ज करना तो दूर शिकायत भी कायदे से नहीं ली गई। ऐसा ही वायरल वीडियो के मामले में भी होता है।

सत्‍ताधारी दल कोई शिकायत करता है तो 41 जिलों में एक साथ एफआईआर दर्ज होती है जबकि कांग्रेस सबूत दे कर धरना-प्रदर्शन करती है तब भी फेक न्‍यूज या एडिटेड वीडियो प्रसारित करने वाले सत्‍ता से जुड़े व्‍यक्तियों पर एफ‍आईआर नहीं होती है। 

ये राजनीतिक मसले हैं। गैर राजनीतिक मामलों में भी ऐसी ही स्थिति है। तभी तो कांग्रेस सरकार पर बदले की भावना से कार्य करने का आरोप लगाती है और कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर गलत मामले दर्ज कर रही है। अब कांग्रेस ही नहीं चुनाव आयोग भी कह रहा है कि एमपी में अफसरों का बेहतर प्रदर्शन किसी और कारण से नहीं बल्कि राजनीतिक दबाव से किया गया काम लगता है।

भोपाल में जिला कलेक्‍टरों व एसपी की बैठक में आयोग ने हिदायत दी है कि आईपीएस राजनीतिक दबाव से बाहर निकलें। आयोग ने चेताया भी कि अगर जानबूझकर गलती की जाएगी, तो माफी नहीं मिलेगी। ऐसे मामले में ऐसी कार्रवाई होगा जो मिसाल बनेगी। बाद में अफसरों की तारीफ कर लौट गए आयोग का पहले डांट और फिर पुचकार के पीछे संदेश क्‍या था और कितनी दूर पहुंचेगा?

पटवारी भर्ती: गड़बड़ी में उलझ गया भविष्य

एक तरफ पूरे प्रदेश में पटवारियों की हड़ताल जारी है दूसरी तरफ चयनित पटवारियों को अपना भविष्‍य अंधकार में दिखाई दे रहा है। पटवारी परीक्षा पास कर चुके युवा परेशान हैं। वे प्रदर्शन कर रहे हैं, पुलिस पिटाई कर रही है, एफआईआर दर्ज कर रही है लेकिन उन्‍हें जल्‍द नियुक्ति की कोई संभावना नहीं दिखाई दे रही है। 

मध्य प्रदेश में आयोजित पटवारी भर्ती परीक्षा की मेरिट लिस्‍ट में सात टॉपर ग्वालियर के एक ही सेंटर के होने से परीक्षा में धांधली के आरोप लगे। मामला बढ़ा और युवा सड़कों पर उतर आए तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जांच के आदेश दिए। जांच होने तक नियुक्तियां रोक दी गईं। सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि जांच आयोग 31 अगस्त तक रिपोर्ट सौंप दे लेकिन एक सदस्‍यीय कमेटी की अभी जांच भी पूरी नहीं हुई है। रिपोर्ट कब आएगी कोई खबर नहीं है। 

चयनित अभ्यर्थियों को भय है कि रिपोर्ट आने के पहले आचार संहिता लागू हो गई तो उनकी नियुक्ति नई सरकार बनने तक खटाई में पड़ जाएगी। डर तो यह भी है कि यदि परीक्षा ही निरस्‍त हो गई तो कई युवा ओवर एज हो जाएंगे। उन्‍हें परीक्षा में बैठने का मौका ही नहीं मिल पाएगा। 

असंतुष्ट कर्मचारियों के आगे झुकेगी सरकार 

पुरानी पेंशन, समान वेतनमान, नियमितिकरण, पदोन्‍नति जैसे स्‍थाई प्रभाव वाले मुद्दों को लेकर कर्मचारी लंबे समय से नाराज चल रहे हैं। भत्‍ते और अन्‍य मांगों पर तो सरकार ने पहल की है लेकिन मूल मुद्दों पर बात बन रही है। नाराज कर्मचारी 10 सितंबर को राजधानी में हल्‍ला बोल रहे हैं। 

दबाव डाल कर सरकार से मांगे मनवाने के लिए चुनाव मुफीद मौका होता है। कर्मचारी लामबंद हो कर कोशिश कर रहे हैं कि सरकार उनकी बरसों पुरानी मांगें पूरी कर दे। अगस्‍त में एक दिन की हड़ताल कर चुके अधिकारी कर्मचारी मोर्चा के सदस्‍य भोपाल में आंदोलन कर रहे हैं। दूसरी तरफ, अस्थाई एवं ठेका कर्मचारी संयुक्त संघर्ष मोर्चा भी भोपाल में डेरा डालने की घोषणा कर चुका है। इस संगठन में सरकारी, अर्द्धशासकीय विभागों, निगम मंडलों, पंचायतों, स्कूलों, नगरीय निकायों, कॉलेजों आदि में कार्यरत 12 से 15 लाख आउटसोर्स, अस्थाई, ठेका कर्मचारी शामिल हैं।

संयुक्त संघर्ष मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष वासुदेव शर्मा ने घोषणा की है कि प्रदेश के विभिन्‍न जिलों से आई आउटसोर्स की फोर्स अपने हक का निर्णायक संघर्ष शुरू करेंगे। फोरी राहत और घोषणाओं का पिटारा खोल देने वाली सरकार क्‍या इन मूल मुद्दों पर कर्मचारियों के आगे झुकेगी या ये समस्‍याएं यूं ही बनी रहेंगी?