दफ्तर दरबारी: बीजेपी विधायक को खुश करने के फेर में फंसी एसपी 

MP Politics: मनचाहे तबादलों की चर्चा के बीच प्रदेश के प्रशासनिक जगत राजनीतिक दबाव गहरा गया है। यह आरोप नया नहीं है कि कई जिलों में कलेक्‍टर और एसपी राजनीतिक दबाव में काम कर रहे हैं लेकिन अब तो हाईकोर्ट ने भी फटकार लगाते हुए सवाल खड़े कर दिए हैं। 

Updated: Feb 02, 2025, 10:36 AM IST

मऊगंज से बीजेपी विधायक प्रदीप पटेल
मऊगंज से बीजेपी विधायक प्रदीप पटेल

कहावत है दो सांड की लड़ाई में बागड़ का नुकसान। मऊंगज की एसपी के लिए यह कहावत सटीक बैठ रही है। वे दो बीजेपी विधायकों के झगड़े में फंस गई है। एसपी समझ नहीं पा रही है कि कट्टर हिंदुत्‍व की छवि वाले विधायक प्रदीप पटेल को खुश करने के जतन करे या पूर्व विधानसभा अध्‍यक्ष तथा देवतालाब विधायक गिरीश गौतम की सुने। 

मामले की शुरुआत तब हुई जब देवतालाब विधानसभा क्षेत्र की एक आपराधिक घटना पर मऊगंज विधायक प्रदीप पटेल सक्रिय हो गए। नाबालिग के गायब होने के मामले को लवजिहाद मानते हुए विधायक प्रदीप पटेल थाने के सामने धरने पर बैठ गए थे। उनकी मांग थी कि संबंधित इस मामले में पुलिस निष्पक्ष कार्रवाई करे। विधायक के इस दबाव के बाद मऊगंज एसपी रसना ठाकुर ने थाना प्रभारी और बीट प्रभारी पुलिसकर्मी को निलंबित कर दिया। 

अपने क्षेत्र में मऊंगज विधायक प्रदीप पटेल की यह सक्रियता देवतालाब विधायक गिरीश गौतम को रास नहीं आई। उन्‍होंने सार्वजनिक रूप से कह दिया कि मऊगंज विधायक अपनी सीमाएं लांच रहे हैं। लगातार धरना-प्रदर्शन कर अधिकारियों पर अनावश्यक दबाव बनाने का आरोप लगाते हुए गौतम ने कहा कि अधिकारियों को किसी के दबाव में आकर काम नहीं करना चाहिए।

बात यही नहीं थमी। मऊगंज एसपी रसना ठाकुर ने 22 जनवरी को चार पुलिस अधिकारियों की मैदानी पोस्टिंग करते हुए थाना प्रभारी बनाया। इससे भी देवतालाब विधायक गिरीश गौतम भड़क गए। उन्‍होंने आरोप लगाया कि विधायक के प्रभाव वाले अ‍फसरों को मैदान में भेज दिया गया है। उन्‍होंने इसके खिलाफ 25 जनवरी को कलेक्‍टर कार्यालय में धरने की घोषणा कर दी। इसका असर यह हुआ कि एसपी ने तीन घंटे बाद ही दूसरा आदेश जारी कर मऊगंज थाना प्रभारी के रूप में किसी दूसरे इंस्‍पेक्‍टर को नियुक्‍त कर दिया। 23 जनवरी की सुबह तीसरा आदेश आया जिसमें पूर्व में किए गए तबादला आदेश को तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिया गया। 

दो विधायकों का झगड़ा भोपाल बीजेपी संगठन तक पहुंच गया है और फिलहाल पुलिस अधीक्षक को राहत है लेकिन मऊगंज विधायक के धरने के बाद टीआई के निलंबन ने प्रशासन पर बढ़ते राजनीतिक हस्तक्षेप पर सवाल तो खड़े कर ही दिए हैं।

हद पार क्यों कर रहे हैं कलेक्टर साहब! 

मऊगंज एसपी ही नहीं प्रदेश में दो जिलों के कलेक्‍टर पर भी राजनीतिक में काम करने के आरोप लगे हैं। पहला मामला बुरहानपुर का है। बुरहानपुर में वनों की कटाई और अतिक्रमण का विरोध कर रहे जागृत आदिवासी दलित संगठन के कार्यकर्ता अंतराम आवासे से प्रशासन इतना नाराज हुआ कि पहले तो उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई फिर जिला बदर कर दिया गया। इस मामले पर अंतराम आवासे ने हाईकोर्ट से मदद मांगी थी। युवक का कहना था कि आरोप सिद्ध हुए बिना ही उसे जिला बदर कर दिया गया था। हाईकोर्ट में सुनवाई में पाया गया कि कलेक्‍टर ने राजनीतिक दबाव में काम किया। इसके लिए कलेक्टर भव्या मित्तल पर 50 हजार का जुर्माना लगा गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि शासन यह सुनिश्चित करें कि कलेक्‍टर राजनीतिक दबाव में अधिनियमों का दुरुपयोग न करें। 

इस आदेश के बाद जागृत आदिवासी दलित संगठन का यह आरोप सही साबित हुआ कि वे वन संरक्षण का कार्य कर रहे हैं और प्रशासन वन माफिया के पक्ष में राजनीतिक दबाव में काम कर रहा है। योजनाओं को लेकर राजनीतिक दबाव में काम करने का दूसरा आरोप छिंदवाड़ा कलेक्‍टर पर लग रहा है। छिंदवाड़ा जिले की हर्रई तहसील की शक्‍कर पेंच परियोजना के लिए जमीन का अधिग्रहण होना है। आदिवासी किसान जमीन अधिग्रहण के एवज में उचित मुआवजा की मांग कर रहे हैं। इसके तहत कई बार आंदोलन भी किए हैं और कर रहे हैं।

कलेक्‍टर शीलेंद्र सिंह ने सोशल मीडिया पर इस बांध से जुड़ी खबरें, जानकारी या सूचनाएं सोशल म‍ीडिया पर पेास्‍ट करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। लोगों को शक है और कांग्रेस ने भी आरोप लगाया है कि आंदोलन से जुड़ी खबरों को रोकने के लिए ही कलेक्टर ने ये आदेश जारी किया है। तर्क दिया जा रहा है कि जमीन के अधिग्रहण का सर्वे अडाणी की कंपनी के कर्मचारी कर रहे हैं। आदिवासियों के विरोध के कारण वे सर्वे नहीं कर पा रहे थे। यही कारण है कि कलेक्‍टर ने प्रतिबंध का आदेश जारी कर सोशल मीडिया पर विरोध जताना ही बैन कर दिया।

प्रशासन में विधायक का दखल, चुप क्यों सरकार

एक तरफ हाईकोर्ट प्रशासन पर राजनीतिक दबाव पर चिंता जताते हुए कलेक्‍टर पर जुर्माना लगा रही है तो अपने बयानों के लिए चर्चा में रहने वाले पिछोर से बीजेपी विधायक प्रीतम लोधी ने प्रशासन के कामकाज में दखल का नया रास्‍ता चुन लिया है। उन्‍होंने पुलिस थानों में विधायक प्रतिनिधि नियुक्त कर दी है। नियुक्ति पत्र में लिखा है कि पुलिस थाना की समस्त बैठक एवं कार्य हेतु विधायक प्रतिनिधि की नियुक्ति की गई है। यानी हर पुलिस थाने में एक विधायक प्रतिनिधि बैठेगा। यह एकदम चौंकाने वाला आदेश हैं क्‍योंकि संवैधानिक रूप से ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। आमतौर पर जिला योजना समिति की बैठकों सहित कुछ समितियों में विधायक प्रतिनिधि की व्‍यवस्‍था का प्रावधान है। 

विधायक प्रीतम लोधी ने जेल में भी अपना प्रतिनिधि नियुक्‍त कर दिया है जबकि प्रशासनिक अधिकारी कह रहे हैं‍ कि विधायक को यह अधिकार नहीं है। विधायक प्रीतम लोधी स्‍वयं पर कई मामले दर्ज हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में पुलिस थाने सत्ता और शक्ति का केंद्र होते हैं। ऐसे में विधायक प्रतिनिधि द्वारा पुलिस के कामकाज में हस्‍तक्षेप की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है। 

ये नियुक्तियां मीडिया और सोशल मीडिया पर सुर्खियां बनी तो बीजेपी नेता अपने विधायक के समर्थन में आ गए लेकिन विरोध के बाद भी सत्‍ता और संगठन ने अपने विधायक प्रीतम लोधी के इस कार्य पर कोई एक्‍शन नहीं लिया है। 

संघ की शरण में आने का दबाव,  अब पड़ताल करेगी पुलिस 

प्रशासन और अधिकारियों पर राजनीतिक दबाव की इस सूचनाओं के बीच एक खबर और आई। जबलपुर हाईकोर्ट ने सीधी जिले की अतिथि विद्वान डॉ. रामजस चौधरी को राहत दी है। मामला यूं है कि मझौली के कला और वाणिज्य महाविद्यालय के अतिथि विद्वान डॉ. रामजस चौधी ने कोर्ट में याचिका लगा कर कहा था कि आरएसएस की सदस्यता नहीं लेने के कारण न केवल उनकी नौकरी संकट में है बल्कि उन्हें जान का खतरा भी है।

डॉ. रामजस चौधरी का कहना है कि कॉलेज की प्राचार्य गीता भारती, उनके पति एसआर भारती, सहायक अध्यापक राजकिशोर तिवारी आदि संघ अथवा उससे जुड़े अन्य संगठन के कार्यकर्ता है। वे संघ की सदस्यता लेने तथा आर्थिक सहयोग करने का दबाव बना रहे थे। जब उन्‍होंने इंकार किया तो उनके ऊपर प्राणघातक हमला किया गया और कॉलेज के बाथरूम में बंद कर दिया गया। इसकी लिखित शिकायत पुलिस अधीक्षक तथा संबंधित पुलिस थाने में की गई लेकिन सुनवाई नहीं हुई बल्कि शिकायत वापस नहीं लेने पर प्राचार्य ने उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया।

हालांकि, बाद में उच्च शिक्षा विभाग 17 जनवरी 2025 को डॉ. रामजस चौधरी की सेवाएं बहाल कर दी। उन्‍हें अब कोर्ट से भी राहत मिली है। सरकार ने हाई कोर्ट को आश्वासन दिया है कि पुलिस अधीक्षक सीधी इस मामले की जांच कर उचित कार्रवाई करेंगे।