दफ्तरी दरबारी: बेलगाम अपराध, सीएम मोहन यादव के शुरुआती तेवर मिसिंग
MP News: बढ़ते अपराधों के कारण आरोपों से घिरे सीएम डॉ. मोहन यादव। इधर, सीएस यानी मुख्यसचिव की सांप सीढ़ी में ढ़ाई दिन शेष हैं और अब तक नए सीएस पर फैसला नहीं हो पाया है। नए दावेदारों में सीएम मोहन यादव, केंद्र सरकार और संघ के प्रिय अफसरों का दिलचस्प त्रिकोण बन रहा है।
पिछले दिनों राजधानी सहित प्रदेश के कई इलाको में महिलाओ और बच्चियो के साथ यौन शोषण के मामलों की जैसे बाढ़ आ गई है। कांग्रेस का आरोप है कि मध्य प्रदेश रेप प्रदेश बन गया है। जबकि बीजेपी कह रही है कि अपराधियों के खिलाफ कठोर कदम उठाए जा रहे हैं। बीजेपी किन्हें कठोर कदम बता रही है यह अलग विषय है लेकिन जनता को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से ऐसे कठोर कदम की उम्मीद है जैसा उन्होंने सीएम बनते ही गुना में बस दुर्घटना के बाद उठाया था। तब उन्होंने लापरवाही पर समूचे परिवहन विभाग को बदल दिया था।
भोपाल-इंदौर के बड़े-बड़े निजी स्कूलों में बच्चियों के साथ दुष्कर्म, भोपाल में पांच साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या, जबलपुर में युवती को खाने में नशीला पदार्थ खिला कर दुष्कर्म, मैहर में युवती के साथ गैंगरेप जैसे मामलों के कारण प्रदेश की कानून व्यवस्था के प्रति आक्रोश है। हालांकि, पुलिस मुख्यालय ने दावा किया है कि बीते सात महीनों में अपराधों महिलाओं, बच्चों, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के खिलाफ होने वाले गंभीर अपराधों में भी कमी आई है। कहा गया है कि गैंगरेप के मामलों में 19.01 फीसदी, क्रूरता और दहेज प्रताड़ना के मामलों में 3.23 फीसदी तथा छेड़छाड़ के मामलों में 9.85 फीसदी की कमी पाई गई है। मगर मैदानी हकीकत इन आंकड़ों से एकदम जुदा है। साफ महसूस होता है कि पुलिस मुख्यालय ने अपनी किरकिरी होती देख ये आंकड़ें जारी किए हैं।
भोपाल और इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली को लागू हुए दिसंबर में दो वर्ष हो जाएंगे। जबकि ग्वालियर और जबलपुर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की पैरवी की जा रही है। अपराधों पर लगाम लगाने की गरज से लागू की गई पुलिस कमिश्नर प्रणाली ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में पुलिस की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। ऐसे में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह का यह आरोप महत्वपूर्ण है कि मध्यप्रदेश में अपराध बढ़ रहे हैं क्योंकि एमपी पुलिस व प्रशासन पर भाजपा नेताओं का दबाव है। संविधान कानून व नियम से सरकार नहीं चल रही है। संस्थाएं भाजपा के नेताओं के दबाव से चल रही हैं। पूछो तो कहते हैं, सर क्या करें ऊपर का दबाव है।
कांग्रेस ही नहीं बीजेपी के नेता भी आक्रोश में हैं और वे कह रहे हैं कि यदि सरकार उनकी नहीं सुनेगी तो वे आंदोलन करेंगे। सीएम के पास ही गृहविभाग है इसलिए कार्रवाई का सारा दारोमदार उन्हीं पर है। कोई और गृहमंत्री होता तो उसे अब तक तलब किया जा चुका होता। ऐसे में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की ओर सभी की निगाहें हैं कि वे उन तेवरों को दिखाएं जो उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद दिखाए थे।
सीएस की सांप सीढ़ी में ढ़ाई दिन शेष
मध्य प्रदेश की मुख्यसचिव (सीएस) वीरा राणा का एक्सटेंशन खत्म होने में बस ढ़ाई दिन बचे हैं। अब तक नए सीएस पर फैसला नहीं हो पाया है। नए दावेदारों में सीएम मोहन यादव, केंद्र सरकार और संघ के प्रिय अफसरों का दिलचस्प त्रिकोण बन रहा है।
आमतौर पर मुख्य सचिव पद पर काबिज होने वाले अधिकारी को करीब एक सप्ताह पहले सीएमक का ओएसडी बना दिया जाता है ताकि वह काम समझ लें। इस लिहाज से जब कुछ माह पहले एसीएस राजेश राजौरा को मुख्यमंत्री सचिवालय में पदस्थ किया गया था तो माना गया था कि वे ही अगले सीएस है। इसका कारण भी है। आईएएस राजेश राजौरा का मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के साथ अच्छा तालमेल हो गया है और इस कारण वे ही मुख्यमंत्री की पहली पसंद हैं लेकिन संकेत है कि कुछ दिनों पहले तक डॉ. राजेश राजौरा का नाम लगभग तय था लेकिन पीएमओ ने उनके नाम पर अभी तक सहमति नहीं दी है।
माना जा रहा है कि बीजेपी व इसके गठबंधन शासित राज्यों में केंद्र सरकार अपनी पसंद के सीएस व डीजीपी रखना चाहती है। बिहार के नए सीएस अमृतलाल मीणा व दूसरे ओडिशा के नए डीजीपी वाइबी खुरानिया भी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर थे और केंद्र ने इन्हें अपने राज्य में भेजा है। इस कारण अनुराग जैन को पहला दावेदार माना जा रहा है। केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ आईएएस अनुराग जैन ने मध्य प्रदेश आने की रूचि दिखा कर इन कयासों को पुख्ता कर दिया है।
इसबीच, आईएएस. राजेश राजौरा की ही 1990 बैच के अधिकारी सीनियर आईएएस एसएन मिश्रा का नाम भी चर्चा में आ गया है। मंत्रालय में चर्चा है कि एसएन मिश्रा को मुख्य सचिव बनाने में संघ की रूचि है। देखना होगा कि मोहन यादव की पसंद राजेश राजौरा, केंद्र की प्रतिनियुक्ति पर गए अनुराग जैन या संघ के पसंदीदा माने जाने वाले आईएएस एसएन मिश्रा में से किस की ताजपोशी होती है। कुछ ही घंटों में यह फैसला भी सामने आ ही जाएगा कि प्रदेश का प्रशासनिक तंत्र किसकी पसंद के अधिकारी द्वारा संचालित होगा।
कौन होगा नया डीजीपी संस्पेंस बरकरार
सीएस यानी मुख्य सचिव की नियुक्ति के बाद ही नए डीजीपी यानी पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगा। वर्ष 2024 के अंतिम माह में ही प्रदेश पुलिस को नया मुखिया मिलना है। डीजीपी की चयन प्रक्रिया सीएस चुनने की प्रकिया से थोड़ी अलग है। संघ लोक सेवा आयोग ने डीजीपी पद पर पदस्थापना के कुछ पैमाने तय किए हैं। इनमें दस साल से अधिक मैदानी पदस्थापना के साथ ही केंद्र व राज्य की जांच एजेंसियों,महिला अपराध व सायबर सेल में कार्य करने का अनुभव प्रमुख शर्त है।
इन पैमानों पर खरे अधिकारियों के नाम भी चर्चा में हैं। जिन तीन नामों की सबसे ज्यादा चर्चा है उनमें एक 1988 बैच के कैलाश मकवाना हैं। जांच एजेंसी लोकायुक्त में रहते हुए कैलाश मकवाना ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ कर अलग लाइन खींची थी। आईपीएस कैलाश मकवाना के साथ 1989 बैच के अजय शर्मा और जीपी सिंह भी दावेदार हैं। डीजीपी के संभावित नामों 1987 बैच के शैलेष सिंह, वर्ष 1988 बैच के अरविंद कुमार व सुधीर कुमार शाही भी हैं। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन है डीजीपी बनाए जाने वाले अधिकारी का कार्यकाल कम से कम दो साल का होना चाहिए। इस लिहाज से आईपीएस अजय शर्मा का दावा ज्यादा होगा क्योंकि उनका कार्यकाल करीब दो साल यानी अगस्त 2026 तक है।
इन्हीं आधारों पर सरकार तीन अधिकारियों के नामों का पैनल संघ लोक सेवा आयोग को भेजेगी और प्रदेश के नए डीजीपी तय हो जाएंगे।
कोर्ट के आदेश के बाद सरकार और शिवराज सिंह चौहान दोनों से टूटा भरोसा
नियमित होने के लिए आंदोलन कर रहे मध्य प्रदेश में 70 हजार अतिथि शिक्षकों को बड़ा झटका लगा है। लोक शिक्षण संचालनालय ने आदेश जारी कर दिया है कि अब अतिथि शिक्षकों को नियमित नहीं किया जाएगा, बल्कि सीधी भर्ती में 25 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा। यह आदेश नियमितीकरण से जुड़ी दायर याचिका पर हाईकोर्ट के निर्देश के बाद जारी हुआ है।
अतिथि शिक्षकों को इस बात का अंदेशा था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने महापंचायत में जो घोषणा की थी वह पूरी नहीं होगी। उनके महाआंदोलन के दिन 10 सितंबर को अतिथि शिक्षकों को स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह ने दो टूक कह दिया था कि महापंचायत की घोषणाओं को भूल जाओ। मंत्री राव उदयप्रताप सिंह ने मीडिया में एक बयान दे दिया कि अतिथि हैं तो क्या घर पर कब्जा कर लेंगे। हालांकि, मंत्री ने बाद में इस पर खेद व्यक्त भी किया, लेकिन तब तक मंत्री जी का ये बयान आग में घी का काम कर चुका था। अतिथि शिक्षकों की नाराजगी के बाद पूर्व सीएम और वर्तमान केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अतिथियों से कहा था कि वे अपनी घोषणाएं पूरी कराएंगे।
लेकिन अब तो अतिथि शिक्षक समझ गए हैं कि उनके हाथ झुनझुना ही आया है। वर्तमान केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान जब मुख्यमंत्री थे तब घोषणा कर भरोसा देते थे कि जबतक वे हैं किसी को परेशान नहीं होने देंगे। लेकिन प्रदेश के 70 हजार अतिथि शिक्षकों को लग रहा है कि वे इस वादे के कारण ठगे गए हैं। सरकार और शिवराज सिंह चौहान से भरोसा टूटने के बाद अब वे 2 अक्टूबर से बड़ा आंदोलन करने की तैयारी में हैं।