दफ्तर दरबारी: कार्यकाल 30 नवंबर 23 तक, टॉरेगट मई 2024 का 

MP News: मुख्‍य‍मंत्री शिवराज सिंह चौहान के सबसे पसंदीदा अफसरों में शुमार होने वाले सीएस इकबाल सिंह बैंस की दूसरी सेवावृद्धि भी 30 नवंबर को खत्‍म हो रही है जबकि टारगेट मई 2024 तक के सेट किए जा रहे हैं। अंदाजे लगाए जा रहे हैं कि इस कांफिडेंस का आधार क्‍या है? जबकि दो आईएएस महिला अफसरों का सबकुछ ठीक होने के बाद भी मनचाही नियुक्ति नहीं मिल रही है।

Updated: Sep 16, 2023, 03:12 PM IST

मुख्‍यसचिव इकबाल सिंह बैंस और मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान
मुख्‍यसचिव इकबाल सिंह बैंस और मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान

विधानसभा चुनाव की उल्‍टी गिनती शुरू हो चुकी है। राजनीतिक के साथ ही प्रशासनिक गति‍विधियां भी मिशन 2023 केंद्रित हो चुकी है। इस बीच प्रशासनिक जगत में सबसे ज्‍यादा चर्चा मुख्‍य सचिव इकबाल सिंह बैंस और उनके कार्यकाल की है। उनका कार्यकाल 30 नवंबर को खत्‍म हो रहा है। प्रशासनिक बैठकों में मई 24 के टॉरगेट की बात होने से कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। खासकर यह कि सीएस को छह माह यानि मई 24 तक सेवावृद्धि मिल रही है। इन कयासों से कहीं खुशी है तो कहीं मातम छाया है। 

मुख्‍य‍मंत्री शिवराज सिंह चौहान के सबसे पसंदीदा अफसरों में शुमार होने वाले मुख्‍य सचिव इकबाल सिंह बैंस टारगेट एचीव करने वाले अफसर माने जाते हैं। यही कारण है कि मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केंद्र में बीजेपी सरकार का फायदा उठा कर सीएस बैंस को दो बार छह-छह माह की सेवावृद्धि दिलवाई है। दो बार की सेवावृद्धि भी 30 नवंबर को खत्‍म हो रही है। यही वह वक्‍त है जब चुनाव प्रक्रिया जारी रहेगी। कयास लगाए जा रहे हैं कि मुख्‍य सचिव के कार्यकाल में तीसरी बार वृद्धि होगी और वे लोकसभा चुनाव होने तक यानी मई 24 तक इस पद बने रहेंगे। इस कयास का एक आधार प्रशासनिक बैठकों में दिए गए टारगेट भी है। इन बैठकों में मई तक काम पूरा करने के लक्ष्‍य दिए गए हैं। हालांकि, लोगा इस कॉफिडेंस का आधार खोजने में लगे हैं लेकिन इसी कांफिडेंस से अंदाजा भी लगाया जा रहा है कि बैंस ही आगे भी सीएस बने रहेंगे। 

ज‍बकि सीएस की सेवावृद्धि तथा मुख्‍यमंत्री के एक अफसर से प्रेम को लेकर कांग्रेस आक्रामक हो गई है। पहले नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह और अब राज्‍यसभा सांसद विवेक तन्‍खा सीएस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा चुके हैं। कांग्रेस ने उनके कामकाज की लोकायुक्‍त में शिकायत भी है। कांग्रेस ने इस मामले को लेकर कोर्ट में जाने की धमकी भी है। 

गौरतलब है कि ईडी डायरेक्‍टर संजय कुमार मिश्रा की तीन बार सेवावृद्धि की शिकायत सुप्रीम कोर्ट में की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया था कि क्‍या एक ही योग्‍य अफसर है जिसे बार-बार सेवावृद्धि दी जा रही है। कोर्ट की सख्‍ती के बाद ईडी डायरेक्‍टर को बदला गया है। कांग्रेस यदि सीएस की सेवावृद्धि को लेकर कोर्ट में गई तो संभव है कि सरकार को किरकिरी झेलनी पड़े। 

बहरहाल, सीएस की सेवावृद्धि होने के कयासों के बीच अवसर हाथ से जाने से इस पद के दावेदार निराश हैं। उनके समर्थक खेमे में मातम सा है जबकि उम्‍मीद उन प्रयासों से है जो सीएस की राह में बाधा बन सकते हैं। 

प्रतिनियुक्ति के आड़े आ रही बोल्‍डनेस की विरासत 

भारतीय प्रशासनिक सेवा की 1994 बैच की आईएएस दीपाली रस्‍तोगी के लिए उनकी ‘बोल्‍डनेस की विरासत’ राह में बाधा बन रही है। वे केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर जाना चाहती हैं। सरकार से अनुमति भी मिल गई है लेकिन उन्‍हें केंद्र में मनचाहा विभाग नहीं मिल रहा है। माना जा रहा है कि बेबाकी से अपनी राय रख देने की उनकी आदत के चलते ही उन्‍हें बेहतर विभाग मिलने में दिक्‍कतें आ रही हैं। 

वरिष्‍ठ आईएएस दीपाली रस्‍तोगी वाणिज्‍यकर विभाग में प्रमुख सचिव हैं। उन्‍हें महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रमुख सचिव का अतिरिक्‍त प्रभार भी दिया गया था। वे मुख्‍यमंत्री के प्रमुख सचिव मनीष रस्‍तोगी की पत्‍नी है। वे केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर जाना चाहती हैं और सरकार ने मांगते ही उन्‍हें प्रतिनियुक्ति पर जाने की अनुमति दे भी दी लेकिन प्रतिनियुक्ति के आदेश अटका हुआ है। 

असल में केंद्र से उन्‍हें बेहतर विभाग में पोस्टिंग नहीं मिल रही हैं। इसका कारण उनकी बेबाक छवि भी है। आपको याद होगा आईएएस दीपाली रस्‍तोगी अंग्रेजी अखबार में लिखे उस आलेख के कारण चर्चा में आई थीं जिसमें उन्‍होंने पीएम मोदी के स्वच्छता अभियान पर सवाल उठाए थे। बाद में उन्‍होंने आईएएस की कार्यप्रणाली पर भी लेख लिखा था।

इस बेबाकी पर उनकी तारीफ तो हुई लेकिन यही बोल्‍डनेस की विरासत उनकी राह में बाधा बनती दिखाई दे रही है। हालांकि, वे अपने संपर्कों का इस्‍तेमाल कर रही हैं और इस उम्‍मीद में हैं वे ऐसे पद पर प्रतिनियुक्ति पा जाएंगी जहां अपने कौशल का भरपूर प्रदर्शन कर सकेंगी। सीनियर आईएएस दीपाली रस्तोगी के साथ ही 1993 बैच की आईएएस दीप्ति गौड़ मुखर्जी को भी केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने की अनुमति मिल गई है लेकिन पदस्‍थापना नहीं मिल पा रही है। 

कमिश्‍नर के फर्जी नाम से क्राइम  

साइ‍बर क्राइम एक तरह की फिशिंग है जिसमें दाना फेंक कर शिकार फंसा लिया जाता है। ऐसा ही कुछ हुआ है एमपी के एक्‍साइज कमिश्‍नर ओमप्रकाश श्रीवास्‍तव के साथ। न,न। जैसा आजकल हो रहा है, वे साइबर क्राइम के शिकार नहीं हुए बल्कि उनके नाम से साइबर क्राइम हो गया। वे चेताते रहे और उनके दोस्‍त उनके नाम पर बने फर्जी अकांडट के झांसे में आ गए। 

इनदिनों अपने आध्‍यात्मिक विचारों और लेखन के लिए चर्चित आईएएस ओम प्रकाश श्रीवास्‍तव ने कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर बताया था कि किसी ने उनके नाम से फर्जी अकाउंट बनाया है। उन्‍होंने सभी से सजग रहने के लिए कहा था लेकिन ऐसा हुआ नहीं। 

एक्‍साइज कमिश्‍नर ओम प्रकाश श्रीवास्‍तव ने अब लिखा है कि उनके कुछ परिचित साइबर क्राइम के शिकार हो गए हैं। ओपी श्रीवास्‍तव के फर्जी अकाउंट से कुछ लोगों के पास मैसेज गए कि मेरे मित्र सीआरपीएफ में है और वह अपना फर्नीचर बेच रहे हैं। आप फर्नीचर खरीद लें। उसके बाद सीआरपीएफ के फर्जी व्यक्ति का फोन आया तथा वह फर्नीचर की फोटो भेजता है। जिस फर्नीचर को पसंद किया जाता है उसके पैसे खाते में ट्रांसफर करवा लिए जाते हैं। उसके बाद फोन बंद हो जाता है। 

कुछ लोगों को जब चपत लगी तो उन्‍होंने एक्‍साइज कमिश्‍नर ओम प्रकाश श्रीवास्‍तव को पूरे मामले की जानकारी दी। अब आईएएस श्रीवास्‍तव ने लोगों को सलाह दी है कि यदि किसी के साथ ऐसा हुआ है तो वे साइबर सेल में रिपोर्ट करें। 

असल में, एक्‍साइज कमिश्‍नर की पोस्‍ट का रूतबा और आईएएस ओम प्रकाश श्रीवास्‍तव का व्‍यक्तित्‍व है ही ऐसा कि उनके फर्जी नाम पर भी लोग पैसा जमा करने पर देरी नहीं करते हैं। इसी कारण में आसानी से साइबर क्राइम का शिकार हो गए हैं। 

अफसरों को राहत कि सूखा करंट नहीं मार रहा है 

ऐन चुनाव के वक्‍त मानसून की खेंच से उपजे बिजली संकट ने सरकार ही नहीं अफसरों के भी होश उड़ा दिए थे। पंद्रह दिनों तक बारिश न होने से पूरे प्रदेश में बिजली कटौती की नौबत आ गई थी। मांग और पूर्ति का अंतर ऐसा गड़बड़ाया था कि किसानों को फसल को पानी देने के लिए भी बिजली नहीं मिल रही थी। निशाने पर सरकार थी और अधिकारियों की कार्यप्रणाली घेरे में।  

ऐसे में बिल्‍ली के भाग्‍य से छींका टूटा जैसे हालात बने और प्रदेश के कई हिस्‍सों में जोरदार बारिश शुरू हो गई। मालवा में बाढ़ के हालात है जबकि जहां सूखे का संकट था वहां बारिश औसत के करीब पहुंच रही है। बाढ़ और जलभराव के बाद भी प्रशासन में राहत है। 

जल भराव, खराब सड़क जैसे मुद्दे है लेकिन ये इतना बड़ा सिरदर्द नहीं है जितना बिजली संकट था। अब अफसरों को पानी की निकासी के इंतजाम करना है, यह तो किया जा सकेगा लेकिन सूखे जैसे हालात होते और पटवारियों की हड़ताल के बीच फसल सर्वे, पानी बिजली का इंतजाम करना टेढ़ी खीर होता। चुनाव में बिजली के संकट का करंट किसे किसे पस्‍त करता कहना मुश्किल था।