कोरोना का क़हर और अधकचरी सलाहों का जलजला

अब देखिये न बड़े अफसर लोग कह रहे हैं कि शहर में बगैर मुँह बांधे न निकलें। मास्क न हो तो गमझा, दुपट्टा भी चलेगा। आज एक साहब का वक्तव्य है कि कोरोना साग-भाजी से फ़ैल रहा है।कुछ लोग तरंगों के वायरस शमन कर ने की सलाह दे रहे हैं। जिसके असर में कालोनी के कई लोग नियमित रूप से हर शाम थाली, घण्टी, शंख बजा रहें हैं। अपना अख़्तियार तो सिर्फ़ शोध आधारित सूचनाओं पर है।

Publish: Mar 31, 2020, 01:15 AM IST

indore collector's statement
indore collector's statement

- डॉ. अजय सोडानी, इंदौर 
बड़ा निष्ठुर काल चल रहा है। एक तरफ़ कोरोना का क़हर दूसरी ओर अधकचरी सलाहों का जलजला। अब देखिये न बड़े अफसर लोग कह रहे हैं कि शहर में बगैर मुँह बांधे न निकलें। मास्क न हो तो गमझा, दुपट्टा भी चलेगा। आज एक साहब का वक्तव्य है कि कोरोना साग-भाजी से फ़ैल रहा है। वो सबको सब्ज़ी न खाने की सलाह दे रहे हैं।
कुछ लोग तरंगों के वायरस शमन कर ने की सलाह दे रहे हैं। जिसके असर में कालोनी के कई लोग नियमित रूप से हर शाम थाली, घण्टी, शंख बजा रहें हैं। उनका मानना है कि इससे COVID-19 नष्ट हो जाएगा।
ये सब बड़े पढ़े लिखे और पहुँच वाले लोग हैं । जाने इन्हें कहाँ से कौन आ इतनी गोपन ख़बरें दे जाता है? अपना अख़्तियार तो सिर्फ़ शोध आधारित सूचनाओं पर है। मोटी समझ सिर्फ़ विज्ञान तक पहुँचती है । मेरा वही मूढ़ मानस मुझे बाध्य कर रहा है यहाँ चार शब्द दर्ज़ करने को।
बात बताने की नहीं पर मौज़ूं है सो बता दूँ कि मैं और अपर्णा चिकित्सक हैं। तीन दिन पूर्व तक अस्पताल भी जाते रहे हैं। जहाँ हम कोरोना से पीड़ित मरीजों की तिमारदारी में तैनात नहीं। अतः हमें सिर्फ़ बार-बार हाथ धोने की दरकार है, मास्क की नहीं। न घर पर, न बाहर। न अस्पताल से मुझे कोई मास्क आवंटित हुआ है, न हमने बाज़ार से ही ख़रीदा । सच जानिए हमारे घर पर आप एक भी मास्क भी नहीं पाएंगे।
यह भी कहता चलूँ कि हम निर्भय हो सब्जियां खा रहें हैं, दूध भी पैकेट का ही ले रहे हैं, अख़बार भी बदस्तूर जारी है। सावधानी बस इतनी बरतते हैं कि चीजों (अख़बार के आलावा) को धो लेते हैं। सब्ज़ियाँ कच्ची नहीं खाते। दूध का पैकेट फ़ौरन खोल पतीली में उंडेल लेते हैं, पैकेट सीधे कचरे में। यह सब करने के बाद ओढ़ लेते हैं वही रामबाण सुरक्षा कवच-----बोलूं तो साबुन-पानी से हाथ धोना।
बहरहाल, मैं यह नहीं कह रहा कि आदेश-कोताही की जाए। यदि मुनादी है तो घर में रहें, मुंह भी ढाँपें। सब्ज़ी, दूध बंद है तो उसे भी स्वीकार करें। क्योंकि ऐसा करना नागरिक जिम्मेदारी है। पर सोच कुंद होने से बचाना भी तो एक (निजी) ज़रूरत है। मिथक को मिथक जान बरता तो ठीक, जो स्वीकार कर लिया तो इसे अमर-बेल की तरह चिंतन पर फैलने में टाइम नहीं लगेगा|
चुनाँचे, जो मित्र सब्जी, फ़ूड पैकेट, मास्क को लेकर विज्ञान पुष्ट मत जानना चाहते हों वे संलग्न लिंक के सहारा ले सकते हैं।

https://www.fda.gov/food/food-safety-during-emergencies/food-safety-and-coronavirus-disease-2019-covid-19?fbclid=IwAR1RIUSfn-_QHDMaOmP7qYJTjzVAfqkmbJdkM3t6hmgnSVhfYyp4MivSw5E