आँसुओं से भरे दिए में डूब गई दिवाली

अखबार बाजार में हो रही विस्फोटक खरीदी की खबरों से अटे पड़े हैं। अयोध्या से लेकर उज्जैन तक लाखों-लाख दिए जलाकर दिवाली मनाने की शुरुआत हो गई है। अयोध्या में 17 लाख दियों में करीब 85000 लीटर तेल जाएगा और इस तेल का बाजार मूल्य करीब 12 करोड़ से ज्यादा का होगा। उज्जैन व दिल्ली तो गिनती में नहीं है। बाद में कुछ संवेदनशील समाचार माध्यमों से तस्वीरें जारी होंगी जिनमें तमाम वंचित लोग इन दियों में बच रहा तेल इकट्ठा करते नजर आएंगे। क्या यह सुखद स्थिति है?

Updated: Oct 23, 2022, 03:31 PM IST

‘‘गुड़ गया सो गया / गुड़ की बात भी गई / पहले सिर्फ थाने और अदालत से भय आता था / अब हर जगह थाना / हर जगह अदालत है / लोग बाग / चलती फिरती लाशें / जीनें से बेजार / क्या हम इसी बात के लिए लड़े थे / क्या इसी नए भारत के स्वप्न देखे थे ?’’ - हंसराज रहबर

अखबार बाजार में हो रही विस्फोटक खरीदी की खबरों से अटे पड़े हैं। अयोध्या से लेकर उज्जैन तक लाखों-लाख दिए जलाकर दिवाली मनाने की शुरुआत हो गई है। अयोध्या में 17 लाख दियों में करीब 85000 लीटर तेल जाएगा और इस तेल का बाजार मूल्य करीब 12 करोड़ से ज्यादा का होगा। उज्जैन व दिल्ली तो गिनती में नहीं है। बाद में कुछ संवेदनशील समाचार माध्यमों से तस्वीरें जारी होंगी जिनमें तमाम वंचित लोग इन दियों में बच रहा तेल इकट्ठा करते नजर आएंगे। क्या यह सुखद स्थिति है? वैश्विक भूख सूचकांक में भारत खिसककर 107वें क्रम पर आ गया है। वहीं दूसरी ओर भारत अरबपतियों की वैश्विक गणना के हिसाब से ऊपर से तीसरा राष्ट्र बन गया है। दिवाली तो मनेगी ही। निजी और सरकारी दोनों स्तरों पर।

दूसरी ओर बिल्किस बानो वाले मामले में नए खुलासे हुए हैं कि उन ग्यारह हत्यारों और बलात्कारियों को भारत के गृह मंत्रालय की सिफारिश पर माफी दी गई है। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और न्यायालय ने इन दरिंदो की रिहाई का विरोध किया था। इतना ही नहीं इनमें से अधिकांश दो से चार वर्षों की अवधि तक पेरोल पर रहे हैं। पेरोल के दौरान इनमें से कुछ पर यौन प्रताड़ना के व गवाहों को डराने धमकाने के मामले भी दर्ज हो चुके हैं। ये लोग स्थानीय भाजपा नेता के साथ (पेरोल अवधि में) राजनीतिक मंच पर शिरकत कर चुके हैं। 

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वहीं उत्तरी भारत दिल्ली से सटे हरियाणा में गुरमीत सिंह उर्फ राम रहीम, जिस पर दो साध्वियों के साथ बलात्कार करने और दो व्यक्ति जिनमें कि एक पत्रकार थे और एक सेवादार की हत्या के आरोप सिद्ध हो गए हैं, उसे सजा सुनाई जा चुकी है और इसके बावजूद वह अभी चालीस दिन के पेरोल पर छूट गया है। इस दौरान वह धार्मिक प्रवचन दे रहा है, उसे सुनने हरियाणा विधानसभा के उप सभापति (डिप्टी स्पीकर) और करनाल की महापौर हाजिरी बजा रहे हैं। उन्हें भगवान सदृष्य बता रहे है। करबद्ध होकर चरणवंदन भी कर रहे हैं। तो क्या यह दिवाली सामान्य दिवाली है? 

भारतीय समाज में नैतिकता के पतन की पराकाष्ठा को हम साक्षात देख रहे हैं। बिल्किस बानो एक ऐसे मजहब की हैं, जो कि आजकल निशाने पर है। पर वे दो साध्वियां जो राम रहीम नाम के व्यक्ति की शिकार हुईं, वे तो बिल्किस बानो जिस धर्म को मानतीं हैं, उस धर्म की नहीं थीं। फिर भी कोई सवाल खड़ा नहीं हुआ। क्यों? इसका सीधा और सपाट उत्तर है कि इनमें एक बात साझा थी, और वह यह कि ये तीनों स्त्रियां हैं, इसलिए ये किसी भी दक्षिणपंथी विचारधारा द्वारा शासित राज्य और समाज में सम्मान की अधिकारी नहीं हो सकतीं। वे हमेशा दोयम दर्जे की नागरिक ही रहेगी। महिला व बाल कल्याण मंत्री, स्मृति ईरानी, वित मंत्री निर्मला सीतारमण और भाजपा की तमाम महिला सांसद इनके पक्ष में एक शब्द भी नहीं बोलीं। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री तो कभी भी इन विषयों पर कुछ बोलते नहीं। वैसे प्रधानमंत्री ने इस वर्ष लाल किले से नारी सम्मान को लेकर जो कहा था और जो हो रहा है, वह इससे एकदम विपरीत है।

श्री रामचरित मानस में राम के राज्याभिषेक से संबंधित एक दोहे है (उत्तरकांड) दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम रज नहिं काहुहि ब्यापा।।

सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीति।।

‘‘राम राज्य" में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसी को नहीं व्यापते। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं, और वेदों मे बताई हुई नीति (मर्यादा) में तत्पर रहकर अपने अपने धर्म का पालन करते हैं।’’ राम के नाम पर सत्ता में आए वर्ग के राजकाज के दौरान जिस तरह की विषम परिस्थितियां हमारे सामने हैं, दस वर्ष पूर्व तक, वे अकल्पनीय थीं। परंतु अब सबकुछ स्पष्ट होता जा रहा है। इस कथित आधुनिक राम राज में अस्सी करोड़ से ज्यादा भारतीय नागरिक मुफ्त खाद्यान्न पर निर्भर हो गए हैं। 

क्या वे दिवाली मना पाएंगे ? भारत में अब गरीबी गंभीर (क्रानिक) अवस्था को पार कर वंशानुगत होती जा रही है। क्या इससे निपटने के कुछ उपाय सामने नजर आ रहे हैं? आज भारत में करोड़ों लोग बेराजगार हैं। वहीं दीपावली पर कुल जमा सत्तर हजार युवाओं को रोजगार देने को ऐतिहासिक बताया जा रहा है। कहां तो दो करोड़ रोजगार प्रतिवर्ष का वायदा किया गया था और उसके दस प्रतिशत रोजगार तो क्या एक प्रतिशत रोजगार भी उचित तौर पर निर्मित नहीं हो पा रहे हैं। 

आजादी के बाद पहली बार ऐसा महसूस हो रहा है कि महिलाओं को अब जानबूझकर नैराष्य में डाला जा रहा है, उन्हें महसूस करवाया जा रहा है कि वे बेहद असुरक्षित हैं। उन्हें पहले एक धर्म विशेष से डराया गया अब यह डर सर्वधर्म तक पहुंचा दिया गया है। किसी रीति कुरीति के खिलाफ की गई टिप्पणी पर अधिकांशतः हिंसक प्रतिक्रिया सामने आती है। एकाएक पुलिस रिपोर्ट दर्ज हो जाती है और वह मुद्दा पार्श्र्व में चला जाता है। 

सन् 1920 के दशक में राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान, आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी को लेकर तमिल में यह कविता लिखी गई थी, ‘‘नाचो और खुशिया मनाओ / जिन्होंने कहा था / महिलाओं का किताबें छूना पाप है / मर चुके हैं / जिन पागलों ने कहा था / वे स्त्रियों को घरों में बंद करके रखेंगे / अब अपना चेहरा छिपाकर बैठे हैं / उन्होंने घरों में हमसे ऐसे काम कराया / मानों हम गाय बैल हों / मार खाकर चुपचाप काम करना / हमने उसे समाप्त कर दिया है / नाचो, गाओ और खुशियाँ मनाओ।’’ 

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सौ साल बाद, भारत में महिलाओं की स्थिति पुनः मध्यकालीन युग की ओर लौटती क्यों दिखाई पड़ रही हैं? अगर यह सब ऐसा ही चलता रहा तो क्या सती प्रथा को भी उचित ठहराया जाने लगेगा? बिल्किस बानों से बलात्कार करने वालों और परिवार के सदस्यों की हत्या करने वाले अपराधियों का स्वागत हुआ, हार पहनाए गए, उनके पैर छुए गए और दूसरी ओर बलात्कारी और हत्या के दोषी गुरमीत राम रहीम के प्रवचनों को सार्वजनिक तौर पर स्वीकृति प्रदान करना भविष्य के भारत की तस्वीर आज धुंधली ही प्रस्तुत तो कर ही रहा है। 

कांग्रेस व वामपंथी राजनीतिक दलों के अलावा बाकी के दलों ने इन मसलों पर कमोवेश चुप्पी साध रखी है। इसका सबसे बुरा उदाहरण आम आदमी पार्टी का है, जो पूरी तरह से मौन साधे हुए हैं। वहीं विश्व भूख सूचकांक में भारत को जो क्रम प्राप्त हुआ है, वह हमारी राजनीतिक, प्रशासनिक व न्यायिक व्यवस्था की सामुहिक असफलता का प्रतीक है। यह बताया जा रहा है कि हम दुनिया की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए हैं। तो इस विशालता को हासिल कर लेने की परिणिति क्या यह होगी कि अस्सी करोड़ नागरिकों का जीवन मुफ्त खाद्यान्न पर निर्भर हो जाएगा। आज भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा गरीब निवास करते हैं। भारत जैसा देश कितने समय तक इस तरह की परिस्थिति का निर्वाह कर पाएगा? 

भारतीय कृषि पर भी अभूतपूर्व संकट मंडरा रहा है। वहीं प्रतिकूल मौसम ने इस वर्ष कृषि को असाधारण क्षति पहुंचाई है और आगामी रबी फसल की बुआई, जिसमें गेहूँ प्रमुख है, की बुआई भी प्रतिकूल प्रभावित हो रही है। ऐसी परिस्थिति में इस वर्ष दीपावली क्या उसी तरह से मनाई जा सकती है, जैसी की हमेशा से मनाई जाती रही है। कोविड - 19 की वजह से भारतीय सामाजिक ताने बाने को भी चोट पहुंची है। बड़ी संख्या में नागरिक या तो मारे गए हैं या उनकी कार्य करने की क्षमता में कमी आई है। परंतु नीतिगत फैसलों में इससे निपटने की कोई सूरत नजर नहीं आ रही है। 

इस दौरान हिंसा की बढ़ती स्वीकार्यता ने भी हमारे सामने नई चुनौतियां प्रस्तुत की हैं। अल्पसंख्यकों व दलितों पर हिंसा बढ़ती जा रही है। ‘‘हेट स्पीच’’ की बढ़ती स्वीकार्यता के पीछे जो भी कारण हों लेकिन वे अंततः भारतीय लोकतंत्र के लिए अशुभ ही साबित होंगे। एक अच्छी खबर यह है कि सर्वोच्च न्यायालय ने 21 अक्टूबर को अपने एक अंतरिम आदेश में राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि वे ‘‘हेट स्पीच’’ को लेकर स्वमेव (स्वतः संज्ञान) रिपोर्ट दर्ज करें। यदि ऐसा नहीं करतें हैं तो इसे न्यायालय की अवमानना माना जाएगा और संबंधित अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही होगी। न्यायालय ने कहा कि धर्म की परवाह किये बिना कार्यवाही की जानी चाहिए। घृणा का माहौल देश पर हावी हो गया है, दिये जा रहे बयान विचलित करने वाले है और ऐसे बयानो को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। उनका कहना है हमने ईश्वर को कितना छोटा बना दिया है। धर्म निरपेक्ष देश के लिये यह समय चौकाने वाला है।”

देश की आबादी का 50 प्रतिशत महिलाएं हैं, वे फिर किसी भी वर्ग जाति, धर्म से आतीं हों, अधिकांशतः शोषण व अन्याय का शिकार हैं और यही स्थिति दलितों, अनुसूचित जातियों और जनजातियों की भी है। यानी करीब 85 प्रतिशत भारतीय अनुकूल परिस्थिति में नहीं रह पा रहे हैं। आर्थिक असमानता की बढ़ती खाई यह बता रही है कि भारत की अधिकांश संपदा महज दस प्रतिशत लोगों के हाथ में केंद्रित हो गई है। इस आर्थिक असमानता ने भी भारत राष्ट्र के सामने बहुत से सवाल खड़े करे हैं, लेकिन हम उनका हल नहीं खोजना चाहते। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि हम इस आर्थिक असमानता का कारण जानते हैं और उसको बदलने की ओर कदम नहीं उठाना चाहते। इसका सीधा सा अर्थ यही है कि जो कुछ हो रहा है, उसमें हमारी सरकार की सहमति है। 

कांग्रेस व राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा ने भारत में बेराजगारी, गरीबी, धर्मनिरपेक्षता जैसे विषयों को थोड़ा बहुत पुनः चर्चा में लाया है। इसके अच्छे परिणाम सामने आ सकते हैं। यह तय है कि बिना राजनीतिक हस्तक्षेप के वर्तमान परिदृश्य को बदल पाना असंभव है। क्या कांग्रेस ऐसा कर पाएगी ? यह भी लगातार प्रचारित किया गया कि महात्मा गांधी का कहना था कि कांग्रेस को भंग कर दिया जाना चाहिए। परंतु अपनी मृत्यु के ठीक तीन दिन पहले यानी 27.01.1948 को उन्होंने हरिजन सेवक के लिए एक टिप्पणी (जो 01.02.1948 को प्रकाशित हुई) में लिखा है, ‘‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय राजनीतिक संस्था है। उसने कई अहिंसक लड़ाइयों के बाद आजादी हासिल की है। उसे मरने नहीं दिया जा सकता। उसका खात्मा तभी हो सकता है जब राष्ट्र का खात्मा हो। एक जीवित संस्था या तो जीवित प्राणी की तरह लगातार बढ़ती रहती है, या मर जाती है। कांग्रेस ने सियासी आजादी तो हासिल कर ली है, मगर उसे अभी आर्थिक आजादी, सामाजिक आजादी और नैतिक आजादी हासिल करनी है। ये आजादियां चूंकि रचनात्मक हैं, कम उत्तेजक हैं और भड़कीली नहीं हैं, इसलिए इन्हें हासिल करना सियासी आजादी से ज्यादा मुश्किल है।’’

गांधी का उपरोक्त कथन अब देश और कांग्रेस दोनों के लिए अधिक अर्थपूर्ण हो जाता है। आज दिवाली के दियों मे तेल नहीं बल्कि आँसू भरा हुआ है। इसकी बत्ती गीली हो गई है, भीग गई है और वह रोशनी दे पाने में कमोवेश असमर्थ है। इन आंसुओं को थामना होगा। लोगों के जीवन में बढ़ते अभाव को कम करना होगा। तभी दिवाली-दिवाली बन पाएगी। प्रकाशमान हो पाएगी। 10 घरों में रोशनी और 90 घरों में अंधेरा हो तो वहां किसी त्यौहार की गुंजाइश नहीं रह पाती। नरेश सक्सेना की पंक्तियां हैं,

‘‘पृथ्वी को चमकदार देखने के लिए/अंतरिक्ष में न जाना पड़े / यहीं रह कर दिखे उसकी रोशनियां / यहीं रहकर दिखे उसका अंधकार ।’’ क्या अगली दिवाली रोशनियां बिखराएगी?