कोविड वैक्सीन से 6 तरह के कैंसर का खतरा, दक्षिण कोरियाई स्टडी ने बढ़ाई चिंता

दक्षिण कोरिया के 84 लाख लोगों के डेटा पर आधारित एक अध्ययन दावा करता है कि कोविड-19 वैक्सीन से छह प्रकार के कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है। विशेषज्ञों ने इसे विवादित बताया है।

Updated: Oct 03, 2025, 02:42 PM IST

दक्षिण कोरिया। कोरोना महामारी के दौरान उम्मीद की किरण बनकर आई कोविड-19 वैक्सीन एक बार फिर विवादों में घिर गया है। दक्षिण कोरिया में किए गए एक हालिया अध्ययन में दावा किया गया है कि कोविड टीके छह प्रकार के कैंसर के बढ़ते जोखिम से जुड़े हो सकते हैं। इस रिपोर्ट ने दुनियाभर में बहस छेड़ दी है। हालांकि, कई विशेषज्ञ इसे अत्यधिक बढ़ा-चढ़ाकर बताए गए निष्कर्ष मानते हैं।

अध्ययन का दावा
यह शोध बायोमार्कर रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इसे दक्षिण कोरिया के ऑर्थोपेडिक सर्जरी और क्रिटिकल केयर से जुड़े चिकित्सकों ने किया। अध्ययन में 2021 से 2023 के बीच करीब 84 लाख युवक/युवतियों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड का विश्लेषण किया गया। इन्हें दो समूहों में बांटा गया, पहले समूह में वे लोग शामिल थे जिन्होंने कोविड की एक या दो खुराक ली थी। वहीं, दूसरे समूह में वे जिन्होंने बूस्टर शॉट्स भी लिए थे।

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परिणाम में सामने आया कि टीका लेने वालों में एक साल के भीतर कैंसर का खतरा बढ़ा हुआ है। इनमें, थायरॉयड कैंसर 35%, गैस्ट्रिक (पेट) कैंसर खतरा 34%, फेफड़ों का कैंसर 53%, प्रोस्टेट कैंसर 68%, स्तन कैंसर 20% और कोलोरेक्टल (आंत) कैंसर 28% जोखिम पाया गया। अध्ययन के मुताबिक, पुरुषों में गैस्ट्रिक और फेफड़ों के कैंसर का खतरा ज्यादा था, जबकि महिलाओं में थायरॉइड और कोलोरेक्टल कैंसर का।

कौन-सी वैक्सीन से खतरा?
डॉक्टरों का दावा है कि cDNA वैक्सीन को थायरॉइड, गैस्ट्रिक, कोलोरेक्टल, फेफड़े और प्रोस्टेट कैंसर के जोखिम से जुड़ा है। हालांकि, बाजार में फिलहाल कोई cDNA-आधारित कोविड वैक्सीन आधिकारिक रूप से उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा, Pfizer और Moderna जैसी mRNA वैक्सीनों को भी थायरॉइड, कोलोरेक्टल, फेफड़े और स्तन कैंसर के संभावित खतरे से जोड़ा गया।

शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में यह जोखिम सबसे ज्यादा दिखाई दिया है। हालांकि, उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि टीके शरीर में ऐसा कौन सा रिएक्शन करते हैं जिससे कैंसर का खतरा बढ़ जाती है।

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विशेषज्ञों की राय और विवाद
इस अध्ययन ने वैश्विक स्तर पर बड़ी बहस छेड़ दी है। कुछ विशेषज्ञों ने इसे चिंताजनक बताया है। लेकिन साथ ही चेतावनी दी कि परिणामों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है। वहीं, कैंसर रिसर्च, यूके ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि mRNA तकनीक तो वास्तव में नए कैंसर-रोधी टीके बनाने में उपयोग की जा रही है, जो फेफड़े, डिम्बग्रंथि (ओवरी) और अन्य कैंसर को रोकने में सहायक साबित हो रहे हैं।

अमेरिका की जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी में पैथोलॉजी के सहायक प्रोफेसर डॉ. बेंजामिन माजर ने भी इसे वैज्ञानिक रूप से गलत बताया है। उन्होंने कहा, “कोई भी कार्सिनोजेन इतनी तेजी से कैंसर उत्पन्न नहीं कर सकता। कैंसर विकसित होने में वर्षों लगते हैं। यह स्टडी असल में कैंसर की उत्पत्ति नहीं, बल्कि कैंसर निदान के आंकड़ों पर आधारित है।”

डॉ. माजर ने यह भी सवाल उठाया कि अगर वास्तव में कोविड वैक्सीन कैंसर के खतरे को बढ़ा रही होती तो 2022 तक दक्षिण कोरिया में कैंसर मामलों में असामान्य उछाल दर्ज होना चाहिए था। लेकिन आधिकारिक आंकड़े इस दावे का समर्थन नहीं करते हैं।

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वैक्सीन को लेकर पहले भी उठे हैं सवाल
साल 2020 से 2022 तक पूरी दुनिया ने कोरोना महामारी का भयावह दौर देखा था। इसी दौरान कोविड वैक्सीन को आपातकालीन मंजूरी मिली, जिसे दुनिया की सबसे बड़ी मेडिकल उपलब्धियों में भी गिना जाता है। टीकों ने संक्रमण से मौत और गंभीर बीमारी का खतरा काफी हद तक कम किया। लेकिन शुरुआत से ही इनके दुष्प्रभावों पर सवाल उठते रहे। कभी हृदय रोगों और हार्ट अटैक से जोड़कर तो कभी टर्बो कैंसर जैसी बीमारियों से इसे जोड़ा गया।

वैज्ञानिकों का कहना है कि अब तक उपलब्ध वैश्विक डेटा में कोविड वैक्सीन और कैंसर के बीच कोई विश्वसनीय संबंध नहीं दिखाई देता है। बल्कि कई मामलों में वैक्सीन से मिले सुरक्षा लाभ कहीं अधिक स्पष्ट रहे हैं। दक्षिण कोरिया के इस अध्ययन ने कोविड वैक्सीन को लेकर नई बहस को जन्म दिया है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि निष्कर्ष जल्दबाजी में निकाले गए हैं और कैंसर से जुड़ी वास्तविक प्रोसेस को समझने के लिए लंबे शोध की जरूरत है। मौजूदा स्थिति में अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य एजेंसियां अब भी यही कह रही हैं कि कोविड वैक्सीन सुरक्षित और प्रभावी हैं और लाखों लोगों की जान बचा चुकी हैं।