सतह से शिखर तक कमलनाथ का शंखनाद, बदल रहा है सियासी मौसम

प्रदेश में हज़ारों शिलान्यास और घोषणाओं के बाद भी कमलनाथ को क्यों नहीं रोक पा रहे हैं सीएम शिवराज.. ..कमलनाथ की जनसभाओं में बेरोजगारी और भ्रष्टाचार की जन- गूंज से स्पष्ट है कि राजनीति का नया मौसम दस्तक देनेवाला है

Updated: Oct 12, 2023, 02:42 AM IST

भोपाल। चुनावी राजनीति में ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि मतदान से तीन महीने पहले ही जनता खुलकर कह दे कि सरकार किसकी बनेगी। लेकिन इस बार मध्यप्रदेश में राजनीति का कुछ ऐसा मौसम है जैसे हर गर्मी के बाद यह निश्चित हो कि वर्षा होगी। अब यहां कोई नहीं बात करता कि 'चुनावी राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा'। यह कहावत कम से कम इस चुनाव में तो गलत साबित होने जा रही है। मध्यप्रदेश में 2018 के चुनाव में कमलनाथ के नेतृत्व में 15 साल बाद कांग्रेस ने सत्ता हासिल की थी। मुख्यमंत्री के रूप में कमलनाथ ने जिस तरह से प्रदेश को नई दिशा देने की शुरुआत की उसमें सबसे पहले 27 लाख किसानों का कर्जा माफ़ और 100 रुपये में 100 यूनिट बिजली एक ठोस कदम था। जनता के मन में आज भी न सिर्फ यह याद बरकरार है बल्कि उम्मीद भी है कि कांग्रेस ही जीवन के रुके पहिए को गति देने में सक्षम है। 

आज किसी भी सामान्य राजनीति के जानकार से मध्यप्रदेश की बात कर लीजिए, उनका कहना है कि मध्यप्रदेश बीजेपी के कार्यालय की रौनक चुनाव परिणाम आने के तीन महीने पहले से ही फीकी पड़ती दिखाई दे रही है। दूसरी ओर कमलनाथ के नेतृत्व में भाजपा के कई बड़े नेता और जमीनी कार्यकर्ता कांग्रेस में आ रहे हैं। कमलनाथ की जनसभाओं में एकबात सामान्य हो गई है कि वे जैसे ही बेरोजगारी और भ्रष्टाचार की बात करते हैं, जनता आगे की बात सुनने से पहले ही आक्रोश में कमलनाथ की हां में हां मिलाने लगती है। हाल ही में इंदौर में हुए युवा-महापंचायत में कमलनाथ ने युवाओं को भ्रष्टाचार और कमीशन मुक्त भर्ती प्रकिया पूरा करने का वचन दिया और यह तक कह दिया कि शिवराज सरकार में हुई भर्तियों की जांच वो प्रदेश के युवाओं से ही कराएंगे।

अगर बीजेपी से कांग्रेस में शामिल होनेवाले नेताओं की बात करें तो पिछले छह महीनों से लगातार हर दिन कोई ना कोई बड़ा नेता कमलनाथ में विश्वास रखने की बात करते हुए कांग्रेस में शामिल हो रहा है। ज़ब भाजपा के स्थानीय नेताओं को थोड़ा जोर करके और कुरेदकर बात की जाती है, तो वो भी अंदर की बात नाम ना बताने की शर्त पर कहते हैं कि इसबार कांग्रेस का आना तय है। कमलनाथ कहते हैं कि शिवराज और भाजपा के पास झूठ और घोषणाओं की एक मशीन है जोकि डबल स्पीड से चल रही है।

कमलनाथ की योजनाओं और शिवराज की योजनाओं पर ज़ब जनता तुलनात्मक विश्लेषण करती है तब अक्सर यह सुनने को मिलता है कि शिवराज 18 साल तक लाड़ली बहना को क्यों भूले रहे?  गैस-सिलिंडर के दाम कम किए लेकिन ऐन चुनावी मुहाने पर आकर जबकि इस दिलदारी को दिखाने के लिए उनके पास बीस साल थे। जानकारों का कहना है कि यह काम भी शिवराज सिंह पूरी ईमानदारी से नहीं कर रहे हैं। लगातार अखबारों में ये खबरें आ रही हैं कि सभी को सस्ते गैस-सिलिंडर नहीं मिल रहे हैं और ४५० रूपये का सिलेंडर पाने के लिए पहले ४००० खर्च करना पड़ रहा है।

जनता का कहना है कि ज़ब कमलनाथ ने नारी सम्मान योजना में 1500 रूपये महीना देने की बात कही और गैस-सिलेंडर के दामों को सरकार बनने पर मात्र 500रु करने का ऐलान किया तो जमीनी लड़ाई बदलने लगी। नारी सम्मान योजना हो या सस्ते सिलेंडर का सवाल बीजेपी की गारंटी चुनावी है और कांग्रेस जीतने के बाद लंबी पारी खलने के उद्देश्य से यह दावे कर रही है। 

शिवराज चौहान के संगठन यानी भारतीय जनता पार्टी में भी उनकी घोषणाओं को लेकर उत्साह नजर नहीं आ रहा है, और ना ही गलियों और नुकड्डों पर शिवराज सिंह की योजनाओं पर कोई चर्चा दिख रही है। इसका सबसे बड़ा कारण कमलनाथ की सक्रियता और रणनीति है। जिसकी वजह से शिवराज सिंह के लिए जनता में घोर अविश्वास है। इसबार एक ही चीज घूमफिर कर दिख रही है कि कमलनाथ को जनता का आशीर्वाद चुनाव के 3 महीने पहले से ही मिल चुका है और इसका बड़ा कारण है 2020 में भारतीय जनता पार्टी द्वारा अनैतिक तरीके अपनाकर कांग्रेस की सरकार को गिराना। जिसका आक्रोश जनता पिछले 3 सालों से अपने अंदर दबाए हुए है।

आज आलम यह है कि शिवराज कुछ भी दावे करें लेकिन जनता ने कमलनाथ को प्रदेश के लिए संकटमोचक मान लिया है। यही वजह है कि अपनी तमाम घोषणाओं और उद्घाटनों के बावजूद शिवराज सिंह किसी भी तरह से कमलनाथ को ज़मीन पर चुनौती नहीं दे पा रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी  भी कह चुके हैं कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनेगी और हम 150 सीटें जीतेंगे। यह दावा अब सपना नहीं है जनता के मूड को देखकर कहा जा सकता है कि इसके सच होने में संदेह नहीं रहा। 

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और ये लेखक के निजी विचार हैं)