जी भाईसाहब जी: ज्योतिरादित्य सिंधिया के बदलते रंग, हाल खराब हैं क्या
MP Politics: महाराज कहलाने वाले केंद्रीय मंंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जनता से हाथ जोड़ कर माफी मांगी है। माफी तो मांगी लेकिन अपना गुनाह नहीं बताया। सवाल यह है कि वह कौन सा गुनाह है जिसके लिए वे माफी मांगने के लिए मजबूर हुए। इस माफी और सिंधिया के बदलते रंग को बीजेपी में सिंधिया समूह की हालत खराब होने की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है।

वो गुनाह क्या जिसकी माफी मांग रहे हैंं सिंधिया
इस हफ्ते केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने रंग के कारण चर्चा में हैं। खुद उनके दल बीजेपी के नेता-कार्यकर्ता हैरत में हैं तथा इस रंग का अर्थ पढ़ने का जतन कर रहे हैं। उधर, कांग्रेस ने बदलते रंग पर खूब चटखारे ले रही है।
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं और बीजेपी में टिकट को लेकर तनातनी शुरू हो गई है वैसे ही सिंधिया ने मुख्तलिफ रंग दिखाने शुरू कर दिए हैं। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का एक रंग तब दिखा जब वे बीजेपी की कार्यसमिति बैठक में शामिल नहीं हुए। जबकि उनके धुरविरोधी रहे जयभान सिंह पवैया अपनी दूसरी बैठक छोड़ कर भोपाल आए। हैरत इसलिए भी हुई कि कार्यसमिति की बैठक के दो दिन पहले सिंधिया ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात की थी।
कार्यसमिति जैसी महत्वपूर्ण बैठक में शामिल न होने को सिंधिया की प्रेशन पॉलिटिक्स के रूप में देखा गया। कार्यसमिति में शामिल न होने का मामला गर्म ही था और ज्योतिरात्य सिंधिया का ट्विटर अकाउंट अचानक चर्चा में आ गया। उनके ट्विटर बॉयो से बीजेपी का उल्लेख नहीं था। कहा गया कि बीजेपी से नाराज होने के कारण उन्होंने पार्टी का जिक्र हटा दिया है। हालांकि, बाद में सिंधिया ने इसका खंडन किया।
उनके इन रंगों पर भारी पड़ा माफी का रंग। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने शिवपुरी और गुना सहित ग्वालियर अंचल के लोगों से हाथ जोड़कर माफी मांगते हुए कहा कि 'मुझसे जो गलतियां हुई उसके लिए माफी मांगता हूं, मेरा दिल सिर्फ आपके के लिए धड़कता है।
‘महाराज’ कहलाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया का यह रूप और रंग सबसे ज्यादा हैरान करने वाला है। माना गया कि महाराज गुना से करारी हार को भूले नहीं हैं और अब बीजेपी में हाल भी खराब है इसलिए जनता से वे माफी मांग रहे हैं। साथ ही सवाल उठे कि आखिर वह गुनाह क्या है जिसके लिए वे हाथ जोड़ कर माफी मांग रहे हैं? कांग्रेस छोड़ते समय उन्होंने कहा था, सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं। तो फिर वह कौन सा सत्य है जो परेशान कर रहा है और हाथ जोड़ने पर मजबूर कर रहा हैं।
बहरहाल, राजनीति जो करवाए सो कम है। बीजेपी में सिंधिया समर्थकों के हाल खराब हैं और सिंधिया के कई तरह के रंग बताते हैं कि महाराज बदले-बदले से हैं और इस बदलाव का कारण राजनीतिक परिस्थितियां ही हैं।
चाल, चरित्र और चेहरा वाली बीजेपी का क्यों बदल रहा रंग?
बीजेपी बहुत सालों से स्वयं को ‘पार्टी विथ डिफरेंस’ कहती रही है। उसके चाल, चरित्र और चेहरे को लेकर नेता फख्र करते थे मगर अब कार्यकर्ताओं को पार्टी का रंग बदलना रास नहीं आ रहा है। और उनकी नाराजगी समय-समय पर फूट रही है। जो नाराज कार्यकर्ता संगठन तक बात नहीं पहुंचा पाते मीडिया में बयान दे कर अपनी बात रखते हैं। जो मीडिया में नहीं जा पाते हैं, वे अध्यक्ष के सामने झगड़ लेते हैं, जो झगड़ नहीं पाते हैं वे पत्र लिख कर इस्तीफा सौंप देते हैं। और जो पत्र भी नहीं लिख पाते वे परामर्श देते हैं।
ये सारे मामले बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के सामने उपस्थित हुए। वीडी शर्मा जब शहडोल पहुंचे तो बैठक कक्ष से चार मिनट में ही रवाना हो गए क्योंकि बीजेपी पदाधिकारी उनके सामने झगड़ लिए थे। असल में, जिला पदाधिकारी ने वीडी शर्मा को जल्दी कक्ष से ले जाना चाहा तो दूसरे कार्यकर्ताओं ने विरोध कर दिया। उनका कहना थी कि जिले में संगठन की पोल खुलने के डर से पदाधिकारी कार्यकर्ताओं को वीडी शर्मा से मिलने देना नहीं चाहते हैं। बात इतनी बड़ी की गहमागहमी हो गई और वीडी शर्मा झट से कक्ष निकल गए।
इसी यात्रा का दूसरा बुरा क्षण वह था जब सात साल से अनूपपुर में बीजेपी के महामंत्री रहे अखिलेश द्विवेदी ने इस्तीफा दे दिया। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के दौरे के अगले ही दिन अखिलेश द्विवेदी ने पत्र लिख कर पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया। अखिलेश ने पत्र में लिखा है कि भारतीय जनता पार्टी में प्रदेश से लेकर जिला तक पार्टी कार्यकर्ताओं के प्रति उपेक्षा, तिरस्कार व अपमानित करने का क्रम लगातार चल रहा है। आज पार्टी में निष्ठा और कार्य का स्थान एबीवीपी का प्रमाणपत्र चापलूसी एवं धन का होना ने ले लिया है। आज पार्टी में रहने के लिये उपरोक्त गुणों का होना आवश्यक हैं। चाहे उनके द्वारा कितनी ही बार पार्टी से विश्वासघात क्यों न किया गया हो, उन्हें पार्टी में सम्मान मिलेगा एवं उनकी बात सुनी जाएगी।
तीसरा मामला भी इसी यात्रा के दौरान का है जब एक कार्यकर्ता ने प्रदेश अध्यक्ष को दु:ख के साथ बताया कि बीजेपी नाम लिखी गाडि़यां शराब दुकानों आदि आपत्तिजनक स्थलों पर खड़ी रहती है, इससे पार्टी की छवि बिगड़ती है। उन्होंने सलाह दी कि इस बारे में पार्टी को गाइड लाइन जारी करनी चाहिए।
ये सारे मामले बता रहे हैं कि पार्टी का बदलता रंग मैदानी कार्यकर्ताओं को पसंद नहीं आ रहा है और उनका दु:ख रह-रह कर उभर आता है। यह बात और कि संगठन फिलहाल इन पर गौर नहीं कर रहा है।
जनता के पहले विधायकों के द्वार पर बीजेपी सांसद, मनुहार का दौर
उन्हें जाना तो जनता के द्वार है लेकिन लंबे समय से क्षेत्र से कटे हुए बीजेपी सांसद अब जनता के बीच जाने के पहले विधायकों के द्वार जा रहे हैं और मुनहार कर रहे हैं कि जनसंपर्क अभियान को सफल बनवा दो।
बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व में मिशन 2024 के तहत लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। इसी क्रम में सभी बीजेपी सांसदों से कहा गया है कि वे 30 मई से 30 जून तक अपने क्षेत्र में विशेष जनसंपर्क अभियान चलाएं तथा मोदी सरकार की नीतियों का प्रचार करें। मध्य प्रदेश के बीजेपी सांसदों की मुश्किल यह है कि वे लंबे समय से जनता से कटे हुए हैं। अपनी क्षेत्र की सभी विधानसभा क्षेत्र में जाने के लिए उन्हें स्थानीय विधायक और स्थानीय संगठन की मदद लेनी होगी। बीजेपी में विधायकों और सांसदों की दूरियां भी जनजाहिर हैं। कई जगह तो सांसद और विधायकों की पटरी बैठती नहीं है।
और कोई मौका होता तो सांसद जिला प्रशासन की सहायता ले लेते जैसे सांसद कप खेल प्रतियोगिता के आयोजन का जिम्मा स्कूल शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन को दे दिया गया था। अब केंद्रीय संगठन से आदेश है तो बचाव का कोई उपाय भी नहीं है। अपनी टिकट सुनिश्चित करने के फेर में सांसद जनता के बीच जाने के पहले विधायकों की मनुहार कर रहे हैं।
क्या उमा भारती राजनीतिक संन्यास ले रही हैं?
पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती बीमार हैं और डॉक्टर ने उन्हें स्वास्थ्य लाभ के लिए आराम करने की सलाह दी है। यह जानकारी देते हुए खुद उमा भारती ने ट्वीट किया है कि कुछ महिनों के लिए विश्राम ही एकमात्र उपचार है। आप प्लीज़ भूलना मत कि मैंने 6 साल की उम्र से यानी लगभग 55 सालों तक पब्लिक लाइफ में कड़ी मेहनत की है।
बीमार होने की जानकारी देने के साथ उमा भारती का ‘भूलना मत कहना’ कई संदेह खड़े कर रहा है। सभी जानते हैं कि उमा भारती पिछले कुछ सालों से राजनीति में सक्रिय होने की राहें खोज रही थीं। शराब बंदी को लेकर उनका आक्रामक रूप इसी कोशिश का हिस्सा माना गया था। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अहाते बंद करने की घोषणा की तो वे खुश हुईं। उसके बाद से वे राजनीतिक परिदृश्य से गायब थीं। एकमात्र मुद्दा जिसके सहारे में अपनी राजनीति उड़ान भरने का सोच रही थीं, वह भी खत्म हो गया। (या खत्म कर दिया गया।)
अब यकायक बीमार होने, कुछ माह आराम करने तथा राजनीतिक उम्र बताने से सहज सवाल उठा कि बीमार उमा भारती को यह क्यों कहना पड़ा कि मुझे भूलना मत। क्या वे बीजेपी में साइडलाइन कर दिए जाने से दु:खी हैं और इसी दु:ख में उन्होंने कहा कि मुझे याद रखना। उन्हें खुद को याद दिलाने की जरूरत क्यों महसूस हुई?
अपनी राजनीतिक उम्र बता कर शायद वे पार्टी को अपने महत्व का अहसास करवाना चाहती हों। यह भी संभव है कि उन्होंने सुलह की राह पकड़ कर सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने का मन बना लिया हो। यानी परिवार से नाता तोड़ने के बाद अब वे राजनीति से भी नाता तोड़ने का इरादा रखती हैं, वरना, उनके जैसी तेजतर्रार नेत्री को कोई बीमारी राजनीति में कब तक दूर रख सकती है?