जी भाईसाहब जी: बुझी हुई बैटरी से कितने दिन चलेगा रिमोट
MP Politics: एमपी में चुनाव नजदीक हैं ओर नेतृत्व परिवर्तन के कयासों के बीच बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा फिर चर्चा में हैं। इसबार उनकी पत्नी डॉ. स्तुति शर्मा के ट्वीट पर खूब राजनीतिक मजे लिए गए। सवाल तो यह भी उठा है कि बीजेपी अध्यक्ष वीडी शर्मा कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के पीछे-पीछे क्यों दौड़ रहे हैं?

राजनीति में कहे का जितना महत्व है उससे अधिक महत्व कह कर भी नहीं कहे गए शब्दों का यानी बिटवीन द लाइंस का है। अपने कहे और न कहे के कारण डॉ. स्तुति शर्मा अपने पति बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की मुसीबतें बढ़ा चुकी हैं। एक बार फिर एक गैर राजनीतिक व्यक्ति की टिप्पणी के इतने राजनीतिक अर्थ निकाले गए हैं कि बात हास परिहास से आगे निकल कर दूर तक पहुंच गई है।
सहायक प्राध्यापक डॉ. स्तुति मिश्रा स्वयं राजनीति में नहीं है लेकिन राजनीतिक परिवार से हैं। उनका माता तो बीजेपी की सक्रिय राजनीति से जुड़ी ही हैं, पति वीडी शर्मा मध्यप्रदेश बीजेपी के सांसद है। लिहाजा, स्तुति मिश्रा जब-जब सोशल मीडिया पर कोई राजनीतिक अर्थ वाली पोस्ट करती हैं तब-तब बवाल मचता है। पिछले दिनों मुस्लिम व्यक्ति की प्रशंसा में किए गए ट्वीट पर इतना हंगामा हुआ था कि उन्हें ट्वीट हटाना पड़ा था। इस ट्वीट पर वीडी शर्मा ने भी खुल कर बात नहीं कही थी।
ऐसा ही इसबार भी हुआ। डॉ. स्तुति शर्मा ने ट्वीट किया: कई लोग टीवी एसी के रिमोट की बैटरी नहीं बदलते...अपितु न चलने पर रिमोट को मारते है या फेक देते है....Remember that you cannot change a dead battery from a dead battery. 2 बैटरी नयी डालने से टीवी, एसी और रिमोट तीनों चलते रहेंगे...
यह ट्वीट सोशल मीडिया पर शेयर हुआ लोग मजे लेते हुए इस पर चर्चा करने लगे। इस बात के मंतव्य को प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन और पार्टी नेतृत्व बनाए रखने से जोड़ कर देखा गया। सभी को पता है कि युवा नेता वीडी शर्मा को बड़ी उम्मीदों के साथ प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। उनमें भावी मुख्यमंत्री की छवि भी देखी गई है। बीते कई दिनों से जब प्रदेश में मुख्यमंत्री बदलने की चर्चा होती है तो संभावित नेताओं में एक नाम वीडी शर्मा का भी होता है।
दूसरी तरफ, वे प्रदेश अध्यक्ष के रूप में दो वर्ष का कार्यकाल फरवरी में ही पूरा कर चुके हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का भी कार्यकाल फरवरी में पूरा हुआ था मगर पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर जेपी नड्डा का कार्यकाल बढ़ा दिया है। मध्यप्रदेश में तो दिसंबर 2023 में ही चुनाव होने है। वीडी शर्मा समर्थक मान कर चल रहे थे कि राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा की तरह वीडी शर्मा का कार्यकाल भी बढ़ जाएगा लेकिन अब तक कोई आदेश जानी नहीं हुआ है।
यही कारण है कि जब डॉ. स्तुति मिश्रा ने ट्वीट कर बैटरी बदलने की बात कही तो इन्हीं दोनों स्थितियों की तरफ सोचा गया। लोग चटखारे लेकर पूछते रहे कि श्रीमती वीडी शर्मा किन बंद बैटरियों की ओर इशारा कर रही हैं और किस बैटरी को बदलने से टीवी, एसी व रिमोट के चलते रहने का संकेत दे रही हैं?
दिग्विजय सिंह के पीछे-पीछे क्यों दौड़ रहे हैं वीडी शर्मा?
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह हमेशा बीजेपी नेताओं के निशाने पर होते हैं लेकिन बीते हफ्ते तो प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के पीछे-पीछे मंदसौर पहुंच गए। सवाल उठे कि वीडी शर्मा और बीजेपी के अन्य वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के पीछे-पीछे क्यों दौड़ रहे हैं? इस दौड़ का एक ही राजनीतिक उद्देश्य है, पार्टी में डैमेज कंट्रोल के बहाने अपनी छवि चमकाना।
असल में, कांग्रेस को फिर से सत्ता में लाने के लिए राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह मैदान में हैं। वे उन क्षेत्रों में जा रहे हैं जहां बीजेपी बेहद मजबूत मानी जाती है। इन क्षेत्रों में संवाद और बैठकों के माध्यम से वे कांग्रेस को एकजुट कर रहे हैं। मैदान से मिल रही खबरों का असर है कि जहां जहां दिग्विजय सिंह जा रहे हैं वहां बीजेपी डेमैज कंट्रोल में पूरी ताकत झोंक रही है। दिग्विजय सिंह के मंदसौर दौरे के तुरंत बाद बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा मंदसौर पहुंच गए। मंदसौर की राजनीति में कांग्रेस की धमक को पहचान कर वीडी शर्मा ने मंदसौर व नीमच जिले के प्रभारी मंत्री, जिला अध्यक्ष और करीब दो दर्जन संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ मंथन किया।
अंदरखाने की खबरें है कि सत्ता तथा प्रचार के सारे सूत्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाथों में हैं और दूसरे किसी नेता के लिए करने को ज्यादा जगह नहीं है। ऐसे मे दिग्विजय सिंह के दौरों के बाद पहुंच कर वीडी शर्मा पार्टी को एकजुट रखने की कोशिश करते हैं। इस तरह उनकी सक्रियता का ग्राफ तो बढ़ता ही है, विपक्ष के बड़े नेता पर हमले के बहाने उनकी राजनीति को धार भी मिल रही है।
अटलजी की विरासत और ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ पर निशाना
बीजेपी संगठन में हुए ताजा फेरबदल ने कई नेताओं की नींद उड़ा दी है। चुनाव के ठीक पहले जब सबसे ज्यादा मीडिया मैनेजमेंट की जरूरत होती है पार्टी ने अपने मीडिया प्रभारी को बदल दिया। अब लोकेंद्र पाराशर की जगह आशीष अग्रवाल मीडिया प्रभारी होंगे। मीडिया प्रभारी से हटा कर लोकेंद्र पाराशर को प्रदेश मंत्री बनाया गया है। माना जा रहा है कि वे भितरवार विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे। नया दायित्व मिलने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ फोटो को आभार व्यक्त करते हुए पोस्ट करते तथा ग्वालियर रेलवे स्टेशन पर स्वागत के फोटो पोस्ट करने से यही अर्थ निकल रहे हैं कि कभी ग्वालियर स्वदेश में पत्रकार, संपादक और बीजेपी के मीडिया प्रभारी रहे लोकेंद्र पाराशर चुनाव मैदान होंगे। उनका टिकट भितरवार से शिवराज सिंह चौहान कोटे में पक्का माना जा रहा है।
ग्वालियर क्षेत्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया तथा उनके समर्थकों के बीजेपी में आने के बाद पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई बढ़ गई है। एक सीट और सौ उम्मीदवार वाली स्थिति है। 2018 में भितरवार से अटलजी के भांजे और पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा ने चुनाव लड़ा था लेकिन वे हार गए थे। भितरवार में किसी अन्य को टिकट मिलने की आशंकों के बीच उन्होंने मीडिया से कहा था कि मैं चुनाव तो लडूंगा ही चाहे किसी भी सीट से लड़ूं। यदि लोकेंद्र पाराशर मैदान में होंगे तो ब्राह्मण वोट समीकरण तो बिगड़ेगा ही, अनूप मिश्रा के किसी और सीट पर दावा करेंगे तो अन्य दावेदारों की भी मुसीबत बढ़ेगी।
इस तरह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पसंदीदा उम्मीवार की उपस्थिति से राजनीतिक समीकरण बदलेंगे तो ज्योतिरादित्य सिंधिया यानी महल की राजनीति के दुर्ग भी ढहेंगे। क्षेत्र की 34 सीटों पर उनके प्रभाव तथा अधिकार का दायरा सिमटेगा। एक तीर से दो निशाने की तरह देखे जा रहे पाराशर को हटाने के इस निर्णय से एक सवाल यह भी उठा है कि क्या भितरवार से संभावना खत्म कर अटल जी की राजनीतिक विरासत संभाल रहे अनूप मिश्रा को पार्टी फिर दरकिनार कर देगी? ऐसा हुआ तो अनूप मिश्रा के पास निर्दलीय लड़ने, किसी और पार्टी से लड़ने या चुप बैठ जाने का ही विकल्प होगा।
बहना के बहाने भाई की ब्रांडिंग करने की सरकारी बेचैनी
चुनाव सिर पर है और जिस योजना को गेम चेंजर कह कर प्रचारित किया जा रहा है उस लाड़ली बहना योजना का माहौल लाड़ली लक्ष्मी योजना जैसा नहीं बन पा रहा है। लाड़ली लक्ष्मी योजना लंबे समय से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहचान बनी हुई है। ऐसी पहचान और पहल जिसे कई राज्यों ने अपनाया तथा दूर देशों तक जिसकी चर्चा हुई।
टीम शिवराज सिंह मान रही थी कि लाड़ली बहना योजना को मैदान और एकेडमिक क्षेत्रों में भी हाथों हाथ लिया जाएगा। फिलहाल तो लाड़ली बहना योजना विज्ञापनों में अधिक चर्चित है। आंकड़े हैं कि 30 अप्रैल तक सवा करोड़ महिलाओं ने योजना में पंजीयन करवाया है लेकिन सीएजी ने इस योजना के वित्तीय प्रबंधन पर सवाल उठा दिए है।
गांव से लेकर एयरपोर्ट तक विज्ञापन के बाद भी सरकार में एकेडमिक रूप से ब्रांडिंग न होने की बेचैनी देखी जा रही है। अब बहना के बहाने भाई यानी सीएम शिवराज सिंह चौहान की ब्रांडिंग के लिए समाज के प्रभावी तथा तटस्थ लोगों की प्रतिक्रिया को हाईलाइट करने की योजना बनाई गई है। इस योजना के तहत आईएएस पी. नरहरि ने अंग्रेजी अखबार में एक लेख लिखा है, आगामी दिनों में एकेडमिक ब्रांडिंग के ऐसे कई रूप दिखाई देंगे।