जी भाईसाहब जी: अटक, घटक और भटक के बीच बीजेपी की सियासत

MP News: मिशन 2023 को फतह करने की रणनीति में जुटी बीजेपी और कांग्रेस अलग पॉलिटिकल एटीट्यूट के साथ दिखाई दे रही हैं। बीजेपी का हाल यह है कि जो कभी अलग-अलग दल में हो कर भी अदावत पाले हुए थे वे एक दल में आकर भी साथ नहीं हैं। कांग्रेस सकारात्‍मक माहौल के साथ पहली सूची लाने की तैयारी में है।

Updated: Sep 13, 2023, 01:34 PM IST

केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया और सीएम शिवराज सिंह चौहान
केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया और सीएम शिवराज सिंह चौहान

बीजेपी की राजनीति इनदिनों अटक, घटक और भटक के बीच चल रही है। दो केंद्रीय मंत्रियों की अदावत की फांस में बीजेपी अटकी है तो नए दलों का होना उसकी राजीनीति रणनीति का घटक ही साबित हो सकता है। पार्टी की रीति-नीतियों से नाराज बीजेपी नेता कह रहे हैं कि अब पहले जैसी बीजेपी कहां है, यह तो भटक बीजेपी हो गई है।  

दो केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया जब विरोधी दलों में थे जब अदावत की सियासत करते थे अब जब एक दल में हैं तब भी साथ नहीं है। दोनों के बीच की फांस जब-तब सार्वजनिक हो ही जाती है और इस फांस में बीजेपी जैसे अटक गई है। ताजा मामला ग्‍वालियर का है। ग्‍वालियर में जब मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का रोड शो हुआ तो तोमर व सिंधिया गुट का मनमुटाव व लड़ाई फिर सार्वजनिक हो गए। सबने देखा कि अचलेश्वर महादेव मंदिर पर केंद्रीय मंत्री सिंधिया ने मुख्‍यमंत्री चौहान के साथ पूजा की लेकिन चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर वहां नहीं थे। वे सीएम के रोड शो में भी शामिल नहीं हुए। इतना ही नहीं लाडली बहना योजना के कार्यक्रम में नरेंद्र सिंह तोमर मंच पर थे लेकिन ज्‍यादा चर्चा तोमर गुट के नेता वेद प्रकाश शर्मा और सिंधिया गुट के मंत्री तुलसी सिलावट के बीच मंच पर हुए विवाद की हुई।

कार्यक्रम में पहली पंक्ति में जगह न मिलने पर सिंधिया समर्थक नेता इमरती देवी जब तोमर गुट के जिलाध्‍यक्ष पर नाराज हुई तो बचाव सिंधिया को करना पड़ा। उन्‍होंने इमरती को पहली प‍ंक्ति में कुर्सी दिलवाई। आपसी मनमुटाव का यह पहला मामला नहीं है। अदावत तो साल भर पहले गहरा गई थी जब तोमर गुट के अभय चौधरी को जिलाध्‍यक्ष बनाया गया था। अब टिकट पाने की रस्‍साकस्‍सी में यह अदावत गहरा गई है। 

इस फांस के बीच ही बीजेपी के लिए संघ छोड़ कर गए नेताओं द्वारा नए दल बना लेना भी राहत और परेशानी का सबब बना हुआ है। बीजेपी से नाराज राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ के कुछ कार्यकर्ताओं ने अपनी नई पार्टी बना ली है। इस ‘जनहित पार्टी’ के कर्ताधर्ताओं ने कहा है कि वे जनता की समस्या को लेकर प्रदेश भर में आंदोलन करेंगे। जिन विधानसभा सीट पर उनके लोग है, उनको प्रत्याशी के रूप में उतारा जाएगा। देखने पर यह बीजेपी के विरोध की गई राजनीतिक पहल दिखाई देती है मगर पड़ताल करेंगे तो पाएंगे कि ऐसे दल एक तरह से बीजेपी के घटक की साबित होते हैं। ये दल उन क्षेत्रों में काम करेंगे जहां बीजेपी के प्रति नाराजगी ज्‍यादा है। इन दलों के होने से बीजेपी के प्रति नाराजगी का वोट सीधे कांग्रेस को नहीं मिलेगा बल्कि ऐसे दलों के खाते में चला जाएगा। इसतरह बीजेपी के प्रति नाराजगी का वोट मिलने का जो लाभ कांग्रेस को हो सकता था वह नहीं होगा, उल्‍टे बीजेपी फायदे में रहेगी। 

घटक की इस राजनीति के बीच ही बीजेपी में ‘भटक’ राजनीतिक भी हावी है। पूर्व मुख्‍यमंत्री उमा भारती, पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा के बाद पूर्व लोकसभा अध्‍यक्ष सुमित्रा महाजन ने पुराने लोगों को तवज्जो नहीं देने पर नाराजगी जाहिर की है। इंदौर के पूर्व महापौर और वरिष्‍ठ नेता कृष्णमुरारी मोघे का कहना है हमें नाराज कार्यकर्ताओं को मनाने भेजा गया था लेकिन किसी ने भी उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी मिलने का वादा किया था, पर सभी अपने रास्तों से भटक गए हैं। इसके विपरीत परिणाम भुगतने पड़ेंगे। यानी की नाराज बीजेपी का कहना है कि शिवराज और महाराज बीजेपी के फेर में मूल बीजेपी ही भटक बीजेपी हो गई है। 

मोदी के मन में एमपी, 10 दिन में तीन दौरे

शिवराज सरकार के खिलाफ माहौल बनता देख बीजेपी अतिरिक्‍त सतर्ककता बरत रही है। जहां एक और चुनाव तथा संगठन सूत्र गृहमंत्री अमित शाह ने अपने हाथों में ले रखे हैं वहीं चुनापी चेहरा भी मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नहीं, पीएम नरेंद्र मोदी बना दिए गए हैं। गृहमंत्री अमित शाह तो बार-बार मध्‍य प्रदेश आ ही रहे हैं तथा मध्‍य प्रदेश के नेताओं को दिल्‍ली बुलाकर बैठक कर ही रहे हैं, खुद पीएम मोदी बार-बार मध्‍य प्रदेश आ रहे हैं। यह ऐतिहासिक मौका ही होगा कि मध्‍य प्रदेश में दस दिनों के दौरान कोई पीएम तीन बार आए। 

मोदी ऐसे पीएम होने वाले हैं। वे 14 सितंबर को सागर के बीना आ रहे हैं। बीना में मोदी 50 हजार करोड़ के पेट्रोकेमिकल प्रोजेक्ट विस्तार का शुभारंभ करेंगे। उनका 25 सितंबर को भोपाल आना तय हो चुका है। भोपाल में वे 10 लाख कार्यकर्ताओं के महाकुंभ को संबोधित करेंगे। इस बीच 18 सितंबर को ओंकारेश्वर में एकात्म धाम और शंकराचार्य मूर्ति के लोकार्पण की तैयारी है। प्रदेश सरकार पीएम मोदी से इस या इसके अलावा मेट्रो प्रोजेक्‍ट के कार्यक्रम में शामिल होने का आग्रह कर रही है। कोई कारण नहीं बनता है कि महाकाल लोक के बाद अब ओंकारेश्‍वर में शंकाराचार्य की मूर्ति के लोकार्पण जैसे आयोजन में पीएम मोदी शामिल न हों। इसलिए दस दिनों में तीन बार एमपी यात्रा कर पीएम मोदी बीजेपी के चुनावी गीत 'मोदी के मन में एमपी' को सही सिद्ध करेंगे। 

ईडी के निशाने पर कौन है?

टिकट सूची तैयार करने तथा मैदानी तैयारियों में जुटे नेताओं के बीच एक बयान अचातक चर्चा का विषय बना और इस बयान गंभीरता ऐसी कि इस पर तुरंत प्रतिक्रियाएं हुई। मामला केंद्र सरकार के राजनीतिक शस्‍त्र कहे जाने वाले ईडी और आईटी से जुड़ा है और बयान कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह का है। 

अपनी सक्रियता और बयानों से बीजेपी में ‘भूचाल’ लाने वाले राज्‍यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने इस बार आरोप लगाया है कि बीजेपी सरकार ईडी और आईटी के जरिए विपक्ष को दबाने की तैयारी कर रही है। भोपाल सहित जगह-जगह खोले जा रहे ईडी के दफ्तरों का जिक्र करते हुए उन्‍होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में हमारे नेता और पदाधिकारियों के ऊपर ईडी जबरन कार्रवाई कर रही है। ये अब मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस से जुड़े लोगों पर छापेमारने की तैयारी कर रहे है। मोदी, शाह के घोटालेबाजों के यहां करोड़ रुपए की संपत्ति है, लेकिन यह लोग अवैध संपत्तियां बनाने वालों के यहां छापा नहीं मारेंगे। यह सत्ता से बाहर जो लोग संघर्ष कर रहे है, उनको डरा रहे है।

जैसा कि होना ही था, बीजेपी ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने कहा कि एक संवैधानिक संस्था होने के नाते ईडी अपना काम करती है। जवाबी हमले के बाद भी राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि दूसरे राज्‍यों में विपक्षी सत्‍ता को कमजोर करने के लिए आमतौर पर ईडी के छापे होते हैं। फिर एमपी में तो बीजेपी की सत्‍ता है। क्‍या यहां वाकई कांग्रेस समर्थक निशाने पर हैं या वे लोग जो बीजेपी का साथ छोड़ कर कांग्रेस को मजबूत करने के इरादे पाले हुए हैं? निशाने पर कोई भी हो, ईडी की सक्रियता और उस पर कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता दिग्विजय सिंह का आरोप राजनीतिक को गर्मा तो गया है। 

सकारात्मक माहौल के साथ मैदान में उतरना चाहती है कांग्रेस

मिशन 2023 को फतह करने के लिए जी जान से मैदान में जुटी बीजेपी और कांग्रेस एक अलग पॉलिटिकल एटीट्यूट के साथ दिखाई दे रही हैं। बीजेपी जन आशीर्वाद यात्रा में जुटी है तो कांग्रेस जन आक्रोश यात्रा की तैयारी में है। मैदान पर सक्रियता जितना ही अहम् टिकट वितरण है। बीजेपी की पहली सूची आ चुकी है और दूसरी आने वाली है।

बीजेपी की पहली सूची में 39 नाम थे। पहली सूची उन क्षेत्रों की जारी की गई जहां विवाद की संभावना थी और हुआ भी ऐसा ही। प्रत्‍याशियों के नाम घोषित होते ही बीजेपी आक्रोश, गुस्‍से और विरोध से घिर गई। अपने नेताओं में फैले असंतोष के प्रबंधन के बीजेपी के सारे प्रयास नाकाफी साबित हुए। अब दूसरी सूची की तैयारी कर रही बीजेपी इस मंत्र पर चलती दिखाई दे रही है कि शुरुआती विरोध समय के साथ ठंडा पड़ जाएगा और चुनाव आते आते विरोध का असर कम रहेगा। 

इस ‘डेमेज कंट्रोल’ फार्मूले के विपरीत कांग्रेस सकारात्‍मक माहौल के साथ अपनी शुरुआत करना चाहती है तभी पहले उन 100 सीटों पर उम्‍मीदवार घोषित करने की तैयारी है जहां नेतृत्‍व किसी तरह का विवाद महसूस नहीं कर रहा है। यानी, कांग्रेस की पहली सूची आए तो हर तरफ मिशन 2023 के फतह के संकेत जाएं, किसी तरह का विवाद या असंतोष का उबाल न दिखाई दे।

पार्टी अपनी ऊर्जा विवादों का सामना करने में नहीं खपाना चाहती है। विवाद को जन्‍म दे सकने वाले निर्णय वह अंतिम समय में लेगी जब चुनाव का हल्‍ला ज्‍यादा होगा। उस हल्‍ले में असंतोष का प्रबंधन करना ज्‍यादा आसान माना जा रहा है। यही वजह है कि गैरविवादास्‍पद नामों पर चर्चा के लिए बार-बार स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक हुई। पहली सूची में ज्‍यादातर नाम उन वर्तमान विधायकों के हो सकते हैं जिनकी जीत सुनिश्चित मानी जा रही है।