जी भाईसाहब जी: क्‍या गम है जिसे छिपा रहे हो, क्‍यों दरार की आड़ लिए जा रहे हो

बीजेपी को अपने आंतरिक विद्रोह से ध्‍यान हटाने के लिए नया फार्मूला हाथ लग गया है। वह विरोधियों की ‘दरार’ से सहारा पाने की कोशिश में लगी है। वहीं बहस गर्म है कि अपनों के भितरघात और नाराजगी दूर करने के लिए गृहमंत्री अमित शाह ने प्रदेश बीजेपी को भय का भभूत दे दिया है।

Updated: Oct 31, 2023, 04:59 PM IST

मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान
मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान

एक बहुचर्चित गाने को जरा बदलकर सोचें तो मध्‍य प्रदेश बीजेपी की हालत कुछ ऐसी है कि ‘क्‍या गम है जिसे छिपा रहे हो, क्‍यों दरार की आड़ लिए जा रहे हो...।’ बीजेपी का असली गम है, अपने कद्दावर नेताओं का बागी बन मैदान में पार्टी निर्णय के खिलाफ डट जाना। यही कारण है कि अपनी कमियां कमतर दिखाने के लिए दूसरों की कमियों का ढोल पीटने की तर्ज पर बीजेपी ने कांग्रेस में गुटबाजी की खबरों को खूब हवा दी है। बीजेपी इस उम्‍मीद में है कि कांग्रेस में दरार की बातें उड़ेंगी तो सत्‍ता की चाबी बीजेपी के हाथ लग जाएगी।

स्थितियों का विश्‍लेषण करें तो अर्थ निकलता है कि जब बीजेपी ने देखा कि टिकट वितरण को लेकर फैली नाराजगी को कांग्रेस कुछ हद तक काबू कर पा रही है तो कांग्रेस के दो बड़े नेताओं के बीच दरार को मुद्दा बनाया गया। कथित तौर पर यह कहा गया कि प्रदेश अध्‍यक्ष कमलनाथ‍ और राज्‍यसभा सदस्‍य दिग्विजय सिंह के बीच सबकुछ ठीक नहीं है। पर‍िस्थितियां ऐसी बनीं कि मनमुटाव की खबरों को और बल मिला। मौका देख बीजेपी हमलावर हो गई है। अनबन की खबरों पर बीजेपी के मीडिया विभाग ने ही नहीं बल्कि खुद सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कह दिया कि दिग्विजय सिंह की चक्की में कमलनाथ पिस गए हैं। 

लेकिन आंकड़ें बता रहे हैं कि 70 से ज्‍यादा सीटों पर बागी उम्मीदवार बीजेपी का खेल बिगाड़ रहे हें। कांग्रेस में भी यह आंकड़ा करीब 50 सीटों का है। फिलहाल कांग्रेस बागियों को साधने में जहां सामंजस्य का सहारा ले रही है वहीं बीजेपी शाह सूत्र पर भरोसा कर रही है। शाह का सूत्र एक अखबार के मुताबिक डर-भय से स्थिति काबू करने का बताया जा रहा है। न सिर्फ कार्यकर्ताओं बल्कि सरकारी कर्मचारियों और अफसरों को भी धमकाया जा रहा है।  

धमकी फार्मूले के सहारे मैदान में बीजेपी 

एक तरफ तो बीजेपी ‘दूसरे के घर में आग ज्‍यादा’ के फंडे पर काम रही है तो दूसरी तरफ अपनों के विरोध और असंतोष की लपटों के बीच धमकी के फार्मूले को आजमाया जा रहा है। 

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह चुनाव से पहले तीन दिवसीय दौरे पर मध्‍य प्रदेश में रहे तो उन्होंने कार्यकर्ताओं का हौसला कई तरह से बढ़ाया। जैसे, यह कहा कि बीजेपी को अब विपक्ष बैठने की आदत नहीं है। आप मंत्री, सीएम नहीं चुन रहे हैं बल्कि देश का भविष्‍य चुनेंगे। यह भी कहा कि नाराज कार्यकर्ताओं को मनाएं और 20 दिन चुनाव में जुट जाएं। बूथ पर फोकस करें। 

यह सब तो हर वह नेता करेगा जो अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरना चाहता है मगर जीत के लिए शाह के सूत्र केवल इतने नहीं है। उन्‍होंने ‘धमकियों’ का भी सहारा लिया। रूठों को मनाने की कोशिश करने का तो कहा लेकिन साफ-साफ कहा कि ब्‍याह के फूफा की तरह रूठे नेताओं पर ध्‍यान मत दो। इनसे दस दिन बाद निपटेंगे। भोपाल में कार्यकर्ताओं की बैठक में कहा कि जो बागी नेता नहीं मान रहे हैं उनकी मुझसे (शाह से) बात करवाएं। कांग्रेस ने चुनाव आयोग में शिकायत की है कि शाह ने चुनाव में कमल का ध्यान नहीं रखने वाले अधिकारियों को भी चेतावनी दी है। उन्‍होंने यहां तक कह दिया चुनाव आयोग से भी डरो नहीं। जहां कांग्रेस मजबूत हो वहां सपा-बसपा को सपोर्ट करो। 

बीजेपी की राजनीति के सूत्रधार अमित शाह ने एक समय अच्‍छे दिन के वादे को जुमला कह दिया था। इसबार भी उन्‍होंने जुमलों से आगे जा कर ‘धमकी’ का फार्मूला दिया है। नाराज नेताओं से दस दिनों के बाद बात करने, अफसरों को कमल का ध्‍यान रखने, चुनाव आयोग से न डरने की बात करते हुए शाह का अंदाज यही था कि किसी तरह डर कायम हो और किसी तरह हर का डर भी निकले।  

लगता है नहीं जम पा रहा है चेहरे-मोहरे का सिक्‍का 

बीजेपी में संगठन के खिलाफ ताल ठोंक कर खड़े बागी ही समस्‍या नहीं है बल्कि संकट यह है कि पार्टी समझ गई है कि विधानसभा चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी और मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की डबल इंजन की सरकार का चेहरा और वादों घोषणाओं का मोहरा चल नहीं पा रहा है। चेहरा-मोहरा पिटने के बाद अब प्रलोभन का दांव चला जा रहा है। 

यह आरोप इंदौर-1 विधानसभा से प्रत्याशी बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजवर्गीय पर लगा है कि केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह की सभा को सफल बनाने के लिए महिलाओं को साड़ियों का प्रलोभन किया गया। यह आरोप कांग्रेस प्रत्याशी संजय शुक्ला ने लगाए हैं। दूसरी तरफ सिंगरौली के देवसर विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी प्रत्‍याशी राजेंद्र मेश्राम बड़ी-बड़ी बातें कर रहे थे तब लोगों ने पूछ लिया राजेंद्र मेश्राम विधायक थे, बीजेपी की सरकार थी तब काम क्‍यों नहीं किए। प्रलोभनों को नकार दिया गया तो राजेंद्र मेश्राम खीज कर वोट मत देना कहते हुए कथूरा गांव से चले गए। 

ऐसे ही मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नामांकन पत्र भरते हुए लाड़ली बहनों को लखपति दीदी बनाने की घोषणा कर डाली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 अगस्‍त को इस योजना की घोषणा कर चुके हैं। सीएम शिवराज सिंह ने बस उस योजना को लागू करने की बात कह कर लाड़ली बहना योजना के बाद महिलाओं का समर्थन पाने का एक पासा ही चला है। 

विकल्‍प बनने आए थे, मोहरा बन कर रह गए 

गृहमंत्री अमित शाह ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को जीत का मंत्र देते हुए कहा है कि सपा-बसपा की मदद करो। सपा और बसपा के प्रत्‍याशी कांग्रेस के वोट काटेंगे और बीजेपी की जीत आसान हो जाएगी। अमित शाह के इस कथन से साफ हो गया कि बसपा-गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का गठबंधन भी ऐसी ही राजनीति का परिणाम है। वह राजनीति जिसके तहत विकल्‍प बनने को आए तीसरे दल केवल मोहरा बन कर रह गए हैं। 

इस बार भी मध्‍य प्रदेश में बागियों के साथ बसपा, सपा, आप, गोगपा, जयस, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम), नारायण त्रिपाठी पार्टी विंध्‍य जनता पार्टी सहित अन्‍य दल मैदान में हैं। मध्‍य प्रदेश के अलग-अलग हिस्‍से में ताकतवर होने के बाद भी तीसरे दल कभी भी प्रादेशिक राजनीतिक विकल्‍प नहीं बन पाए। उत्‍तर प्रदेश से सटे इलाकों में ताकत बढ़ी तो बसपा ने 2013 में चार सीट जीत ली लेकिन 2018 में मात्र दो सीट ही जीत पाई। तब किसी दी को बहुमत न मिलने पर बसपा सरकार बनाने के लिए समर्थन देने की स्थिति में थी। 2018 में जय आदिवासी संगठन ने अपना दायरा फैलाया था लेकिन अब वह आंतरिक संघर्ष में उलझा हुआ है। 

बीते चुनावों की ही तरह तीसरे दल इसबार भी खेल बिगाड़ने वाली ही स्थिति में है। ज्‍यादा दल मैदान में इसलिए हैं कि वोट काट सकें। और इस उद्देश्‍य के कारण वे किसी न किसी तरह से मोहरा ही बन गए हैं। बिहार में भी ऐसे ही फार्मूले से काम कर बीजेपी से 100 से लेकर एक हजार वोट के कम अंतर से कई सीटें जीती थीं।