जी भाईसाहब जी: भूपेंद्र सिंह बने सड़क से सदन तक विरोध का नया सुर 

MP Politics: बीजेपी में सड़क से विधानसभा तक इस विरोध का झंडा बुलंद करने का काम पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह कर रहे हैं। विधानसभा सत्र के पहले ही दिन उनके तेवर तो यही दिखाते हैं। जबकि खुद को हाशिये पर पा रहे कई नेता मुराद पूरी होने की आस में दिल्‍ली की ओर तक रहे हैं। 

Updated: Dec 18, 2024, 11:31 AM IST

बीते कुछ समय से सतह पर दिखाई दे रहे घटनाक्रमों से यह आम राय बनती जा रही है कि बीजेपी सत्ता और संगठन में सब कुछ सही नहीं चल रहा है। खासकर बुंदेलखंड क्षेत्र में कद्दावर नेता गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह समय-समय पर अपनी नाराजगी को खुल कर व्‍यक्‍त कर रहे हैं। कुछ विधायकों ने भी प्रशासन के खिलाफ अपने आक्रोश को सड़क पर व्‍यक्‍त किया है। यह नाराजगी प्रशासन से थी मगर निशाने पर तो सरकार ही है। यह हाल संगठन का भी है। 

सत्‍ता और संगठन से नाराजगी आमतौर पर मंद आवाज में ही उजागर होती है लेकिन कुछ नेता हैं जो खुल कर नाराजगी जताने का खतरा मोल लेते हैं। पूर्व गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह की गिनती ऐसे ही नेताओं में होती है। सिंधिया खेमे को पार्टी में मिल रही तवज्‍जो से खफा भूपेंद्र सिंह ने सार्वजनिक मंच से कहा कि वे कांग्रेस से आए नेताओं को स्‍वीकार नहीं कर सकते हैं। यह अकेले भूपेंद्र सिंह की राय नहीं है, बीजेपी के बहुतायत नेता यही राय रखते हैं लेकिन यह कहने का साहस केवल भूपेंद्र सिंह ने दिखाया। 

सड़क पर असंतोष की आवाज बने भूपेंद्र सिंह ने विधानसभा में यह मोर्चा संभाला। 16 दिसंबर से आरंभ हुए विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह ने सागर जिले के माल्थोन में अशासकीय शैक्षणिक संस्थान के संचालन में अनियमितता के संबंध में स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह से सवाल किया था। इस पर स्कूल शिक्षा मंत्री ने जवाब दिया कि क्षेत्र के लोगों में आक्रोश जैसा कुछ नहीं है। भूपेंद्र सिंह ने गलत जवाब का आरोप लगाया कि अधिकारियों ने लिख कर दिया और मंत्री ने जवाब पढ़ दिया। मैं क्षेत्र का विधायक हूं मुझे पता है कि जनता में कितना आक्रोश है। मंत्री को यह उत्तर विधानसभा में नहीं पढ़ना चाहिए। इससे मैं झूठा साबित हो गया।  भूपेंद्र सिंह ने यह भी कहा कि मामला मैं एक घंटे में ठीक कर लूंगा। ध्यानाकर्षण का विषय नहीं था। लेकिन इसके माध्यम से प्रदेश के मामले उठाने का प्रयास है। फर्जी शैक्षणिक संस्थाओं पर रोक लगाने के लिए सरकार नीति लाए।

सरकार को घेरने का पूर्व मंत्री का यह अंदाज राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय है। सदन में मंत्री के जवाब पर सवाल उठाना और फिर ‘मामला वे खुद एक घंटे में ठीक कर लेंगे’ जैसे वाक्‍य के अपने अर्थ हैं। इस तेवर से उन असंतुष्‍टों से ताकत पाई है जो खुल कर अपनी नाराजगी जता नहीं पा रहे हैं। 

मुख्‍यमंत्री मोहन यादव की बांसुरी से नहीं निकल रहा मनमोहन सुर

एक साल भी बीत गया लेकिन वह खबर नहीं आई जिसका इंतजार है। हर तरह के जतन कर लिए, सारे समीकरण साध लिए लेकिन मुख्‍यमंत्री मोहन यादव की बांसुरी से मनमोहन सुर नहीं निकल रहा है। बीजेपी के कई नेता रातदिन एक ही गीत गुनगुना रहे हैं, बड़ी देर भई नंदलाल, राह तके मन बावरा...। 

मोहन सरकार ने इस हफ्ते अपना एक साल पूरा किया। इस एक साल में सीएम मोहन यादव ने कांग्रेस से आए नेता रामनिवास रावत के लिए अपने मंत्री नागरसिंह चौहान से वन मंत्रालय ले लिया था। इससे नागर सिंह चौहान नाराज हो गए थे। बाद में दिल्‍ली के हस्‍तक्षेप के बाद नागर सिंह शांत हुए थे। 

अब विधानसभा उपचुनाव में हार के बाद रामनिवास रावत ने वनमंत्री पद छोड़़ दिया है। इस पद के लिए एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति है। नागर सिंह चौहान सहित कई नेताओं ने स्‍वयं को वनमंत्री के लिए उपयुक्‍त करार देते हुए कहा है कि वे ये पद चाहते हैं। दूसरी तरफ, कांग्रेस से आ कर अब बीजेपी के विधायक बन चुके कमलेश शाह हो या सुरेश पचौरी जैसे अन्‍य नेता पद पाने के इंतजार में हैं। बीजेपी के अपने वे नेता भी पद पाने को लालायित हैं जिन्‍होंने पार्टी को खड़ा करने के लिए वर्षों परिश्रम किया है और अब हाशिए पर हैं। सभी नेताओं की निगाहें निगम-मंडलों में राजनीतिक नियुक्तियों पर हैं।  

ये नेता उम्‍मीद कर रहे थे कि लोकसभा चुनाव के बाद ही सरकार उन्‍हें पदों से नवाज देगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अब जब सरकार को एक साल हो गया है तब उम्‍मीद बंधी थी कि उनके हिस्‍से पर पद आ जाएगा लेकिन इस दौरान आए बयानों में राजनीतिक तस्वीर उलझी हुई दिखाईं दे रही है। मंत्रिमंडल विस्तार, निगम मंडल में नियुक्ति जैसे मसलों पर पूछे गए सवालों पर सीएम डॉ. मोहन यादव ने मीडिया से कहा है कि हम दिल्ली से मार्गदर्शन ले रहे हैं। यानी, मंत्रिमंडल का विस्‍तार हो या निगम मंडलों में नियुक्ति, तय तो दिल्‍ली से होना है। यह संकेत मिलते ही पद पाने को आतुर नेताओं की दिल्ली परिक्रमा बढ़ गई है। दिल्‍ली की तरफ वाले अपने संपर्क सूत्रों से संबंध बढ़ा दिए गए हैं। कोशिश यही है कि दिल्‍ली संकेत कर दे और यहां मंगल खबर आ जाए।  

ग्वालियर की सियासत से एक और सांसद गायब

2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्‍याशी ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को चुनाव हरा कर बीजेपी के सांसद बने केपी यादव अब गायब हैं। माना जाता है कि वर्तमान केंद्रीय मंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद तत्‍कालीन सांसद केपी यादव को पार्टी ने द‍रकिनार कर दिया। अब संकेत है कि यही फार्मूला ग्‍वालियर सांसद पर भी लागू हो रहा है। केपी यादव की ही तरह ग्‍वालियर के सांसद भारत सिंह कुशवाला केंद्रीय मंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के खेमे के नहीं है। 

यही कारण बताया जा रहा है कि 15 दिसंबर को हुए जीवाजी राव सिंधिया प्रतिमा का अनावरण कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, राज्यपाल मंगुभाई पटेल, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, विधानसभा अध्‍यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर, स्‍वयं केंद्रीय मंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया मौजूद थे लेकिन ग्वालियर के सांसद भारत सिंह कुशवाह नहीं थे। यहां तक कि आमंत्रण पत्र में भी नाम नहीं था। 

यह ग्‍वालियर में महल या सिंधिया वर्सेस सांसद राजनीति का नया अध्याय है। सांसद भारत सिंह कुशवाह को बीजेपी में ‘तोमर गुट’ का माना जाता है। हाल ही में विजयपुर से चुनाव हारे रामनिवास रावत को भी कांग्रेस से बीजेपी में लाने का श्रेय विधानसभा अध्‍यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर को दिया जाता है। कहा गया कि इसी कारण सिंधिया प्रचार करने विजयपुर नहीं गए थे। यह एक अलग विवाद का विषय बना था। मगर इस बार सांसद निशाने पर हैं। यह बात अलग है कि विधानसभा अध्‍यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर स्‍वयं कार्यक्रम में मौजूद थे। 

कांग्रेस के प्रदर्शन के मायने 

खाद, भ्रष्‍टाचार और अपराध के मसले पर बयानों से सरकार को घेर रही कांग्रेस ने सड़क पर उतर कर ताकत दिखाई। मोहन सरकार का एक साल पूरा होने पर वादा खिलाफी का आरोप लगाते हुए कांग्रेस विधानसभा के शीतकालीन सत्र के पहले दिन सड़क और सदन में सरकार के खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया। सड़क पर प्रदर्शन का मोर्चा प्रदेश अध्‍यक्ष जीतू पटवारी ने संभाला तो सदन में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने। कांग्रेस विधायक खाद की खाली बोरियां लेकर विधानसभा पहुंचे। वहीं शून्यकाल के दौरान भी खाद की कमी का मुद्दा उठाया। गया। जब सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं आया, तो कांग्रेस विधायकों ने सदन से बहिर्गमन किया।

दूसरी तरफ, विधानसभा के घेराव के ऐलान को पूरा करने के लिए कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता ट्रैक्टर रैली के जरिए विधानसभा जाना चाह रहे थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें शिवाजी नगर चौराहे के पास ही रोक लिया। कांग्रेस के प्रदर्शन में बहुत समय बाद बड़े नेता एक साथ एक मंच पर पहुंचे। कार्यकर्ताओं की उपस्थिति भी उत्‍साहवर्धक थी। यह उपस्थिति जनता के बीच पहुंची सरकार की छवि और काम से उपजी नाराजगी का प्रतीक हो सकती है। यदि दूसरे जिलों से आ रहे कांग्रेस कार्यकर्ताओं को रोकने के लिए पुलिस ने भोपाल की सीमाओं पर बैरिकेड्स न लगाए होते तो प्रदर्शनकारियों की संख्‍या और बढ़ सकती थी।