जी भाईसाहब जी: हारे हुए लोगों को बीजेपी का सहारा 

MP News: यूं तो कहा जाता है हारे को हरि नाम, लेकिन इन दिनों राजनीति में हर हारे हुए को बीजेपी का ही सहारा है। चाहे वह फिर मन से हारा हो, पद से या डर से। दूसरी तरफ, कांग्रेस में बदलाव की बयार जारी है। 10 सीटों पर घोषित प्रत्‍याशी लोकसभा परीक्षा की इसी रणनीति का खुलासा करती है। राजनीति के इन दांव पेंच में आग भी एक खेल है जो जाने किस आचरण की सफाई कर रही है।

Updated: Mar 13, 2024, 01:16 PM IST

कहते हैं डूबते हुए को तिनके का सहारा। लेकिन मध्‍य प्रदेश में कहा जा सकता है कि हारे हुए को बीजेपी का सहारा। बीते एक दशक की राजनीति को देखा जाए तो 2013 के विधानसभा चुनाव में ताकत से सरकार बनाने वाली बीजेपी ने 2018 में सत्‍ता गंवाई और इसके बाद शुरू हुआ दलबदल का खेल। मार्च 2020 में ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी और उनके बाद दो दर्जन विधायकों ने कमलनाथ सरकार का हाथ छोड़ कर बीजेपी की नाव में सवारी कर ली। मध्‍य प्रदेश की राजनीति में दल और आस्‍था बदलाव का दौर तब से शुरू हुआ है जो आजतक जारी है। 

विधानसभा चुनाव 2023 में तो दीपक जोशी जैसे बीजेपी नेताओं ने असंतुष्‍ट हो कर कांग्रेस की सदस्‍यता ली है। ऐसे अनेक नेता-कार्यकर्ता थे जो बीजेपी और शिवराज सरकार से असंतुष्‍ट हो कर कांग्रेस में चले आए थे लेकिन बीजेपी की ही सरकार बनने के बाद दृश्‍य बदल गया। कभी शिवराज सरकार के संकट मोचक रहे पूर्व गृहमंत्री नरोत्‍तम मिश्रा चुनाव जरूर हार गए लेकिन उन्‍होंने उनके कौशल के अनुरूप बीजेपी ने न्यू ज्वाइनिंग टोली का प्रमुख बनाया है। उनके साथ सह संयोजक विधायक संजय पाठक हैं। संजय पाठक कभी कांग्रेस में हुआ करते थे। ये दोनों कांग्रेस की कमजोर कडि़यों को खोज कर उन्‍हें बीजेपी में शामिल करवा रहे हैं। 

इन्‍हीं के कारण पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी अपने समर्थकों के साथ बीजेपी में शामिल हुए। पूर्व सांसद गजेंद्र सिंह राजू खेड़ी पूर्व विधायकों विशाल पटेल, संजय शुक्ला, अरुणोदय चौबे और शिवदयाल बागरी भी बीजेपी की सदस्‍यता ले ली। कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव हार चुके दीपक जोशी फिर अपनी मूल पार्टी में जाने को उतावले हैं लेकिन बीजेपी ने फिलहाल उनकी राहें रोक दी हैं। 

इस भगदड़ से कांग्रेस के नेताओं की प्रतिक्रिया है कि जिन्‍हें जाना हैं वे जाएं ताकि आस्‍था की परीक्षा हो सकें। सारे नेता वे हैं जिन्‍हें पार्टी ने बहुत कुछ दिया लेकिन जब पार्टी के लिए काम करने की बारी आई तो कोई बहाना बना कर चले गए। कांग्रेस के लिए यह सुकून की बात है कि कोई मौजूदा विधायक बीजेपी में नहीं गया है। वे ही गए हैं जो मन से हारे हैं, चुनाव में हारे हैं या जिन्‍हें सरकार द्वारा की जाने वाली किसी कार्रवाई का डर है। बीजेपी में भी तय नहीं है कि इन नेताओं की क्‍या भूमिका होगी। उसे इतना भर फायदा है कि मुख्‍य विपक्ष कांग्रेस को तोड़ कर उसके मनोबल को नुकसान पहुंचाया गया है। बीजेपी अपनी नीतियों तो वैसी ही चलाएगी जैसी चलाई जा रही है। यूं भी केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ग्‍वालियर में कह गए हैं कि हमने अब तब बीजेपी कार्यकर्ताओं को क्‍या दिया जो कांग्रेस से आए नेताओं को कुछ दे देंगे। 

पहली सूची में कांग्रेस का यूथ पर भरोसा 

विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस ने अपने संगठन में व्‍यापक बदलाव किए हैं। संगठन की कमान युवाओं के हाथ में देने की पहल करते हुए तेज तर्रार नेता जीतू पटवारी को प्रदेश अध्‍यक्ष बनाया गया है तो उमंग सिंघार को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। प्रदेश अध्‍यक्ष जीतू पटवारी के लिए लोकसभा चुनाव पहली परीक्षा है।

एक तरफ बीजेपी 370 के पार सीट का नारा दे चुकी है और कांग्रेस को अपनी अधिकतम जीत की संभावनाओं को जीवित रखना है। इस पहली परीक्षा में टिकट वितरण एक महत्‍वपूर्ण आयाम है। कांग्रेस ने मध्‍य प्रदेश की 10 सीटों पर अपने प्रत्‍याशी घोषित कर दिए हैं। इन दस टिकट वितरण में कांग्रेस की रणनीति साफ होती है। पार्टी ने युवाओं पर सबसे ज्‍यादा भरोसा दिखाया है। 10 लोकसभा क्षेत्रों में से धार व खरगोन से युवा नेता मैदान में हैं जबकि 3 क्षेत्रों में वर्तमान विधायकों को टिकट दिए गए हैं। धार से राधेश्‍याम मुवेल तथा खरगोन बड़वानी संसदीय सीट से सेल टैक्स विभाग से वीआरएस लेकर राजनीति में आए 42 वर्षीय युवा पोरलाल खरते को उम्मीदवार बनाया है। मंडला से विधायक ओमकार सिंह मरकाम, भिंड से विधायक फूल सिंह बरैया और सतना से विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा को प्रत्याशी बनाया है।

विधानसभा चुनाव में सिद्धार्थ ने भाजपा के गणेश सिंह को सतना सीट से विधानसभा चुनाव हराया था। अब लोकसभा चुनाव में भी इन दोनों के बीच ही मुकाबला होगा। 2019 के चुनाव के अनुसार देखें तो केवल दो प्रत्‍याशियों छिंदवाड़ा से नकुलनाथ और बैतूल से रामू टेकाम को मैदान में उतारा है। 

अभी 19 सीटों पर टिकट वितरण बाकी है लेकिन इस सूची में स्‍पष्‍ट होता है कि कांग्रेस में बदलाव का दौर जारी रहेगा। पार्टी ने मुकाबले में टिके रहने वाले नए चेहरों पर अधिक भरोसा जताया है। बीजेपी को केवल 5 सीटों पर टिकट घोषित करना है लेकिन कांग्रेस को 19 और प्रत्‍याशियों का निर्णय करना है। टिकट वितरण इसी प्रक्रिया पर लोकसभा चुनाव की प्रदेश संगठन की परीक्षा और बीजेपी से मुकाबले की ताकत निर्भर करेगी। 

आग के खेल से किसकी सफाई 

मध्‍य प्रदेश देश का इकलौता राज्‍य होगा जहां आधुनिक तकनीक और सुरक्षा प्रबंध के बाद भी मंत्रालय में सबसे ज्‍यादा आग लगती है। बीते शनिवार को वल्‍लभ भवन की मुख्‍य इमारत में आग लग गई जबकि इसके पहले सतपुड़ा भवन में हाल ही में दो बार आग लगी है और कई दस्‍तावेज जल कर साफ हुए हैं। 

इस आग के बाद भी सवाल उठे हैं कि फायर सेफ्टी उपकरणों के लगाए जाने के बाद भी बार-बार आग क्‍यों लगती है? क्‍यों उन क्षेत्रों के सीसीटीवी कैमरे बंद रहते हैं जहां आग लगती है? वल्‍लभ भवन में आग लगी तब बताया गया कि वहां रखी फाइलों को हटाने के लिए कई बार कहा गया था लेकिन अफसरों ने ध्‍यान नहीं दिया। ध्‍यान क्‍यों नहीं दिया? जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि शार्ट सर्किट की वजह से वल्‍लभ भवन में आग लगी थी। फिर उन निर्देशों का क्‍या हुआ जिनमें फायर ऑडिट करवा कर शार्ट सर्किट की आशंका को खत्‍म करने के लिए कहा गया था। यूं भी अभी इतनी गर्मी भी नहीं आई है कि स्‍वत: आग लग जाए।  

हालांकि, अधिकारी तर्क देते हैं कि आग से महत्‍वपूर्ण दस्‍तावेज नहीं जले लेकिन पहले हुई घटनाओं का अब तक खुलासा हुआ नहीं है तो शंका को बल मिलता है कि बार-बार आग किस चीज की सफाई करती है? अगर आग में जले दस्‍तावेज महत्‍वपूर्ण नहीं थे तो वे हटाए क्‍यों नहीं गए थे। आखिर, मंत्रालय कूड़ा घर तो हैं नहीं।

राज्य मंत्रियों के पास न काम, न ठिकाना 

बीजेपी सरकार के राज्य मंत्रियों की हालात दुबले और दो आषाढ़ जैसी हो गई है। अब तक काम का बंटवारा नहीं होने से वे परेशान थे ही अब बैठने के लिए दफ्तर भी नहीं रहा। 
सरकार गठन के बाद मोहन यादव मंत्रिमंडल में छह स्‍वतंत्र प्रभार राज्‍य मंत्री तथा पांच राज्‍य मंत्री बनाए गए थे। स्‍वतंत्र प्रभार राज्‍य मंत्रियों ने काम जोरशोर से शुरू कर दिया लेकिन चार राज्‍यमंत्री स्‍वागत के बाद से काम मिलने का इंतजार कर रहे हैं। चार में से तीन राज्‍यमंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल, प्रतिमा बागरी और राधा सिंह के विभागों के मंत्री तो राजेंद्र शुक्‍ला, कैलाश विजयवर्गीय और प्रह्लाद पटेल जैसे बड़े कद के मंत्रियों के साथ हैं। इन कैबिनेट मंत्रियों के आगे राज्‍य मंत्रियों का कोई अस्तित्‍व ही नहीं है।

सरकार ने इनके काम का बंटवारा भी अब तक नहीं किया है। यानी, ये मंत्री मंत्रालय केवल आते जाते थे और अपने कक्ष में समर्थकों से मुलाकात भर कर पाते थे। अब वल्‍लभ भवन में लगी आग के बाद इन सभी कक्षों को सील कर दिया गया है। यानी, बैठने की जगह भी गई। किस्‍मत से मंत्री तो गए लेकिन न इनके पास ताकत है न ठिकाना। अब ये इंतजार में हैं कि लोकसभा चुनाव खत्‍म हों तो काम मिले और ये काम के साबित हों।