जी भाईसाहब जी: उज्जैन में सीएम मोहन यादव के विरोध में क्यों उतरा किसान संघ
MP Politics: उज्जैन मुख्यमंत्री मोहन यादव को यूं तो राजनीतिक रूप से कोई चुनौती उिदखाई नहीं दे रही है लेकिन उनके गृह नगर में ही बीजेपी से जुड़ा एक संगठन मोर्चा खोले बैठा है। विधायकों हो तो चुप करवा दें, पूरे के पूरे संगठन को कैसे रोकें?

यह पहली बार है कि उज्जैन से विधायक डॉ. मोहन यादव प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं और उनके नेतृत्व में सिंहस्थ 2028 की तैयारियां हो रही हैं। लेकिन ये क्या कि उनकी ही पार्टी के सहयोगी भारतीय किसान संघ इन तैयारियों से नाराज हैं। नाराज ही नहीं, बल्कि अपनी बात मनवाने के लिए लगातार दबाव बना रहे हैं। मुद्दा है किसानों की लगभग सात हजार एकड़ भूमि का अधिग्रहण।
सरकार ने तय किया है कि इस बार सिंहस्थ आयोजन के लिए स्थाई नहीं पक्के निर्माण होंगे। इसके लिए किसानों की खेती योग्य 7 हजार एकड़ जमीन अधिग्रहित की जाएगी। भारतीय किसान संघ का मानना है कि पक्के निर्माण की जगह पहले की तरह 2 से 3 महीने के लिए जमीन अधिग्रहण कर अस्थाई निर्माण किया जाए। उत्तरप्रदेश के प्रयागराज महाकुंभ में भी ऐसा ही किया गया था।
खेत बिगाड़ने से नाराज भारतीय किसान संघ मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से मिल कर अपनी आपत्ति दर्ज करवा चुका है। इस आपत्ति पर सुनवाई नहीं हुई है, इसलिए किसान संघ भी चुप नहीं बैठा है। प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर संगठन की बैठक की जा रही है। जमीन का मामला है इसलिए पेंच भी कई हैं और बात सीधे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के अधिकार क्षेत्र की है। मुख्य आपत्ति ही यही है कि 12 साल में एक बार एक माह के लिए आयोजित होने वाले सिंहस्थ के लिए स्थाई अधिग्रहण क्यों किया जा रहा है जबकि अस्थाई अधिग्रहण से ही काम चल सकता है। किसान संघ से संवाद नहीं हुआ है और वह मानने को तैयार भी नहीं है।
कांग्रेस: विरोध जायज है मगर अनुशासन में
कांग्रेस जिला अध्यक्षों की सूची जारी होने के बाद कांग्रेस में राजनीतिक तूफान आया हुआ है। कद्दावर नेताओं को जिले की कमान दे दी गई तो नए और युवा चेहरों पर भी भरोसा जताया गया है। सूची आने के बाद से ही प्रदेश के कई जिलों में विरोध के सुर सुनाई देने लगे हैं। हालात ये हैं कि, राजधानी भोपाल से लेकर उज्जैन, बुरहानपुर के साथ साथ बाकी जिलों में कांग्रेसी नाराज नजर आने लगे हैं। कुछ प्रतिक्रियाएं बेहद तीखी हैं। पद के दावेदार नेताओं और उनके समर्थक कार्यकर्ताओं ने सार्वजनिक रूप से नाराजगी जताई है।
कद्दावर नेताओं को जमीन मजबूत करने का जिम्मा देकर संगठन ने विरोध से भी सख्ती से निपटने की ठानी है। कांग्रेस ने एक पत्र जारी कर कार्यकर्ताओं को अल्टीमेटम दिया है कि सोशल मीडिया पर जिला अध्यक्ष के विरोध में जो भी पोस्ट डाली गई हैं उसे 24 घंटे के अंदर हटा लिया जाए। यदि नहीं हटाई तो संगठन अनुशासनात्मक कार्रवाई करेगा।
जब नेतृत्व परिवर्तन के निर्णय होते हैं ऐसे विरोध स्वाभाविक माने जाते हैं। लोकतंत्र में सहमति और असहमति दोनों के लिए बराबर जगह होती है लेकिन राजनीतिक दलों में असहमति या निर्णय के विरोध को सुनने का स्थान कम होता जा रहा है। इस सख्ती पर कांग्रेस ने कहा है कि संगठन की गरिमा और अनुशासन से कोई समझौता नहीं होगा। आंतरिक असहमति को सोशल मीडिया पर सार्वजनिक करने की बजाय संगठन के समक्ष ही रखा जाए। सो, विरोध जायज है मगर अनुशासन में। आक्रोश जाहिर हो मगर आवाज नीची और मुट्ठियां तनी न हो।
राजनीतिक अनुकूलता और अनुशासन के बीच फंसे हेमंत खंडेलवाल
बीजेपी के नए प्रदेश अध्यक्ष बनते ही हेमंत खंडेलवाल ने सार्वजनिक रूप से अपनी अनुशासनप्रियता जाहिर की थी। कोमल स्वभाव वाले हेमंत खंडेलवाल ने नेताओं के व्यवहार और बिगड़े बोल पर सख्ती दिखाई है लेकिन नेता हैं कि मानने को तैयार नहीं है। न नेता अपने संगठन की सुन रहे हैं और न नेता पुत्र।
जैसे स्वतंत्रता दिवस पर नगरीय प्रशासन और विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि 15 अगस्त को कटी-फटी आजादी मिली थी। रीवा सांसद और बीजेपी के दिग्गज नेता जनार्दन मिश्रा ने कहा कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बंटवारे का पूरा दोष कांग्रेस पार्टी पर है। उन्होंने गांधी और नेहरू के साथ सरदार वल्लभ भाई पटेल को भी दोषी कहा जिन्होंने विभाजन को स्वीकार किया।
ये बयान तो पार्टी की एक खास विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए प्रतीत होते हैं। यही कारण है कि विवादास्पद होने के बाद भी पार्टी ऐसे बयानों पर एक्शन नहीं लेती है। जैसे, आजाक मंत्री विजय शाह पर पार्टी ने कोई कार्रवाई नहीं की। लेकिन उन मामलों पर भी संगठन की चुप्पी है जहां बीजेपी नेताओं ने ताकत कर प्रदर्शन कर विवाद खड़े किए हैं।
बीते दिनों एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें देवास टोल के कर्मचारियों के हाटपीपल्या विधानसभा क्षेत्र के विधायक मनोज चौधरी के भतीजे निखिल चौधरी ने दुर्व्यवहार किया। आरोप है कि विधायक चाचा के नाम से इंदौर-भोपाल रोड स्थित टोल नाके पर टोल नहीं देने को लेकर निखिल ने जमकर हंगामा किया। अपने बेटे के समर्थन में थाने जा कर धरना देने वाले स्वास्थ्य राज्य मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल इस बार भोपाल में अपने बंगले पर मीडियाकर्मियों के साथ बदसलूकी के कारण चर्चा में हैं। इन सारे मामलों पर प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल मौन हैं।
वोट चोरी: कांग्रेस पर हमला कितना कारगर
वोट चोरी को लेकर देश में कांग्रेस आक्रामक है। बीजेपी नेताओं को जवाब सूझ नहीं रहा है, इसलिए वे कांग्रेस नेताओं पर ही आरोप लगा रहे हैं। अक्सर अपने बयानों से सुर्खियों में रहने वाले रीवा सांसद जनार्दन मिश्रा ने कहा कि उन्होंने भी वोट चोरी देखी है। 2003 के विधानसभा चुनाव से पहले मनगवां सीट की वोटर लिस्ट में एक ही घर में 1100 वोटर दर्ज थे। कांग्रेस सरकार की ही लापरवाही से ऐसा हुआ। बाद में फर्जी वोटरों के नाम हटाए गए और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी बीजेपी के गिरीश गौतम से चुनाव हार गए थे।
सांसद जर्नादन मिश्रा के इस बयान भी गूंज राष्ट्रीय मीडिया तक सुनाई दी। हालांकि आरोप कांग्रेस पर लगा रहे थे लेकिन इस बहाने निशाने पर चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर ही संकट है। इससे वोट चोरी के कांग्रेस के आरोपों को ही बल मिल रहा है।