धृतं सर्व शास्त्रं ददाति द्रुतं वै तपस्यारतो य:सदैवात्म चित्त:

सदगुरु प्रदत्त मंत्र में ऊर्जा होती है, जबकि पुस्तक में देखकर यदि जप किया जाए तो वह अपराध हो जाता है

Updated: Nov 06, 2020, 04:31 AM IST

photo Courtesy: Dainik bhaskar
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धृतं सर्व शास्त्रं ददाति द्रुतं वै
तपस्यारतो य:सदैवात्म चित्त:
द्विपीठेश्वरोSद्वैतसम्पोषकश्च*,
महेशस्वरूपं गुरुं वै नमाम:

(श्लोकार्थ) जिन्होनें  समस्त शास्त्रों को धारण किया है तथा अति शीघ्र (उस शास्त्र ज्ञान का) दान करते हैं, जो तपस्या में मग्न हैं, जो ज्योतिष् और द्वारका शारदापीठ इन दो पीठों के अधीश्वर हैं और अद्वैत सिद्धांत के सम्पोषक हैं, ऐसे शिव स्वरूप सदगुरु देव को हम नमन करते हैं।
सदगुरु प्रदत्त मंत्र में ऊर्जा होती है। वही मंत्र पुस्तक में देखकर यदि जप किया जाए तो वह अपराध हो जाता है लेकिन गुरु प्रदत्त मंत्र सशक्त होता है। इसलिए कहा गया है कि-
भवेद्वीर्यवती विद्या
गुरुवक्त्रसमुद्भवा।
अन्यथा फलहीना स्यात्
निर्वीर्या ह्यतिदुःखदा।।

गुरु के द्वारा दी गई विद्या ही फलवती होती है अन्यथा निर्वीर्या और अतिदुःखदायी हो जाती है। इसलिए मीरा जी कहती हैं कि-
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी मेरे सदगुरु
किरपा कर अपनायो

राम रतन को गुरु देव देते हैं तो वो अमोलक रत्न बन जाता है। उसका कोई मूल्य नहीं होता। जो उसको भूल जाता है वह बहुत बड़े पुरुषार्थ से वंचित हो जाता है। पुस्तक में लिखे हुए मंत्र से वह बात नहीं बनती
पुस्तके लिखितान् मंत्रान्
अवलोक्य जपेत्तु य:।
स जीवन्नेव चाण्डालो
मृते च ग्रामशूकर:।।

पुस्तक में देखकर जो मंत्र का जप करते हैं वो जीते जी चाण्डाल और मरने पर शूकर बनते हैं। इसलिए मंत्र गुरु से ही लेना चाहिए। लेकिन नाम जप के लिए गुरु बनाने की आवश्यकता नहीं है। बिना गुरु के भी नाम जप किया जा सकता है। क्यूंकि ये महामंत्र है। इसमें किसी नियम की आवश्यकता नहीं है। किसी ने शंका किया कि जप के समय मन बहुत चंचल हो जाता है।
माला तो कर में फिरे,
मनवां तो चहुं ओर।

लेकिन जप के समय भले ही मन चंचल हो लेकिन सुमेरु के आने पर तो मन एकाग्र हो ही जायेगा। तो इसके लिए गुरु की आवश्यकता है। गुरु कर्णधार हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि-
नृदेहमाद्यं सुलभं सुदुर्लभम्।
प्लवं सुकल्पं गुरुकर्णधारं

देवदुर्लभ मानव शरीर भगवत्प्राप्ति का एक बहुत बड़ा साधन है। जिसके कर्णधार गुरु देव ही हैं। इसलिए जीवन में गुरु की शरणागति आवश्यक है।