क्या है समाधि और समाधि कैसे लगाई जाए

प्रश्न ये है कि आत्म दर्शन कैसे हो? महात्मा लोग कहते हैं कि समाधि के द्वारा, समाधि कैसे लगाई जाए, अपनी आत्मा में स्थित हो जाना ही समाधि

Updated: Sep 06, 2020, 08:00 PM IST

दान परसु बुधि शक्ति प्रचंडा अर्थात् संसार शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए बुद्धि ही प्रचंड शक्ति है। वह बुद्धि जो वेदांत शास्त्र के अभ्यास से सुसंस्कृत है। ब्रह्म का साक्षात्कार क्या है? जैसे हम किसी मनुष्य को देखते हैं और कहते कि हमने आपका साक्षात्कार किया। उस प्रकार ब्रह्म का साक्षात्कार नहीं है। ब्रह्म किसी का गोचर नहीं हो सकता। इन्द्रियों और मन के द्वारा नहीं जाना जा सकता। तो प्रश्न ये है कि ब्रह्म का साक्षात्कार क्या है? ब्रह्म दृश्य बन नहीं सकता। यदि वह दृश्य बन गया तो ब्रह्म ही नहीं। सबलोग जानते हैं कि ब्रह्म है। किस रूप में जानते हैं? जिस रूप में श्रुतियां प्रतिपादन करती हैं। वही आत्मा है और आत्मा सबको विदित है। 

"मैं" हूं ये कौन नहीं जानता? अहमस्मि भगवान के विषय में तो लोग प्रश्न करते हैं कि भगवान हैं कि नहीं लेकिन अपने विषय में कोई नहीं पूछता कि मैं हूं कि नहीं? उनसे पूछा जाए कि आप अपनी सत्ता को मानते हैं न? अगर आप हैं तो भगवान भी हैं।

श्रुतियां कहती हैं कि उसका अस्ति रूप में उपलम्भ करना चाहिए। यह नियम है कि मैं से मेरा अलग होता है। जैसे- लोग कहते हैं कि मेरा घर, मेरा परिवार, मेरी आफिस आदि-आदि। तो घर से परिवार से मैं अलग हूं। इसी प्रकार कहते हैं कि मेरा शरीर। अर्थात् शरीर से मैं अलग हुआ। और आगे चलें तो कहते हैं कि मेरा मन, मेरी बुद्धि अर्थात् हम मन, बुद्धि से भी भिन्न हैं। तो जिसको हम मेरा कहते हैं वह स्वाभाविक रूप से हमसे अलग है।

अपने आप को कोई नहीं जान सकता,सब अपने से भिन्न को ही जान सकते हैं। अपने आप को जानना कर्तृ-कर्म विरोध है। कर्तृ-कर्म विरोध का अर्थ हुआ कि एक ही व्यक्ति कर्ता और वही व्यक्ति कर्म नहीं हो सकता।

देवदत्त: ग्रामं गच्छति अर्थात् देवदत्त ग्राम को जाता है। तो यहां देवदत्त कर्ता है और ग्राम कर्म है तो ये प्रयोग तो हो सकता है, किन्तु ये प्रयोग कभी नहीं हो सकता कि - देवदत्त: स्वात्मानं गच्छति।

देवदत्त स्वयं को जाता ये नहीं बन सकता। क्यूंकि अपने कंधे पर कोई नहीं चढ़ सकता। तो फिर अपने आपको कोई कैसे जानेगा? हम शरीर को जानते हैं इसका अर्थ हुआ कि शरीर हमसे अलग है, इसी प्रकार शरीर को संचालित करने वाले प्राण को हम जानते हैं इसलिए वह प्राण भी हमसे अलग है, हम मन को जानते हैं तो वह मन भी हमसे पृथक है।

अब प्रश्न ये है कि आत्म दर्शन कैसे हो? तो महात्मा लोग कहते हैं कि समाधि के द्वारा। समाधि कैसे लगाई जाए? तो बताते हैं कि स्थिर आसन पर शान्त शिला की तरह बैठ जाएं, मैं शरीर का द्रष्टा हूं, ऐसा विचार करें, फिर प्राण को,मन को भी प्रेरित करने वाला मैं हूं। अपने आप को बुद्धि में स्थिर कर लें, फिर बुद्धि के भी साक्षी बन जाएं और अपनी आत्मा में स्थित हो जाएं इसी को समाधि कहते हैं।

अब इस समाधि में जो अनुभव होगा यदि वेदांत के संस्कार होंगे तो उसी समय यह समझ में आ जाएगा कि यही ब्रह्म है और जिसके वेदांत के संस्कार नहीं हैं वह समाधि का अनुभव भी करेगा, सुख का अनुभव भी करेगा, लेकिन यह ब्रह्म है इसका ज्ञान नहीं होगा। इसलिए उस बुद्धि से  परमात्मा का अनुभव होता है जो वेदांत शास्त्र के अभ्यास से उत्पन्न होने वाले संस्कारों से संस्कृत होती है। और वही बुद्धि संसार शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए शक्ति का काम करती है। दान परसु बुधि शक्ति प्रचंडा