तत्वज्ञान है समग्र शांति का मार्ग

पूर्ण समता आने पर मन उत्तम हो जाता है, वास्तविक तत्व ज्ञान होने पर अनुभव हो सकता है वर्तमान में सुख

Publish: Aug 09, 2020, 07:32 PM IST

व्यक्ति और समाज दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। जैसे वृक्ष- वृक्ष से वन बनता है, बूंद- बूंद से जलाशय का निर्माण होता है, उसी प्रकार व्यक्ति-व्यक्ति से समाज निर्मित होता है। अतः प्रत्येक भारतीय के द्वारा की गई स्वयं की आध्यात्मिक उन्नति समाज का घटक होने के नाते पूरे देश की आध्यात्मिक उन्नति का कारण बन सकती है।

आज किन्हीं सद्गृहस्थ साधक का प्रश्न है कि हम अपने गृहस्थाश्रम में रहते हुए कैसे साधना कर सकते हैं। सद्गृहस्थों के लिए भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण का जीवन और उनकी दिनचर्या अत्यधिक अनुकरणीय है भगवान श्रीकृष्ण महान् गृहस्थ थे। उनकी दिनचर्या में आता है कि -

ब्राह्मे मुहूर्ते चोत्थाय, वायुर्पस्पृश्य माधव।

दध्यौ प्रसन्न करण, आत्मानं तमस: परम्।।

इसका अर्थ है- भगवान माधव ब्रह्म मुहूर्त में उठकर जल का स्पर्श करते थे और प्रसन्न मन और इन्द्रियों से युक्त होकर अज्ञान से परे स्वयं प्रकाश ब्रह्म का ध्यान करते थे।

यदि 24 घंटे में एक बार भी मन को निर्विकार कर लिया जाय तो उसका प्रभाव दिन भर रहता है। बहुत से कलुषित विचार स्वयं ही दूर हो जाते हैं। बहुत सी शंकाएं दूर हो जाती हैं। महात्माओं का सत्संग भी इसमें सहायता करता है। उनके आभा मंडल में सात्विकता होती है, इसलिए उनके दर्शन और समीप बैठने से मात्र से अनेकों शंकाओं का समाधान हो जाता है और अनेकों का तो जीवन ही बदल जाता है। विशुद्ध मन उसको कहते हैं जिसमें समता होती है।

पूर्ण समता आने पर मन उत्तम हो जाता है। वास्तविक तत्व ज्ञान होने पर वर्तमान में सुख का अनुभव हो सकता है, इसलिए जीवन मुक्त के सम्बंध में कहा गया है - 

भविष्यन्नानुसंधत्ते, नातीतं चिन्तयत्यसौ।

वर्तमान निमेषन्तु, हसन्नेवातिवर्तते।।

अर्थात् तत्वज्ञानी न तो भविष्य का अनुसंधान करता है और न ही अतीत की चिंता। वह तो वर्तमान में स्थित होकर प्रसन्नता का अनुभव करता है। यही है समग्र शांति का मार्ग, जिसपर चलकर अपने जीवन को सुखमय बनाया जा सकता है और विपरीत परिस्थितियों में धैर्य रखते हुए द्वन्द्वों से बचा जा सकता है।