वामन अवतार कथा में जीवन का विराट संदेश

हम भूल से स्वयं को उन (भगवान) से पृथक मानकर इन सबको स्वयं का मान बैठे हैं। यह सब तो उन्हीं का है, उनको समर्पित भी क्या करें?

Publish: Jul 13, 2020, 04:18 AM IST

वेद में भगवान के सहस्रों सिर, सहस्रों कर, चरण, नेत्र बतलाए गए हैं।  वास्तव में देखा जाए तो हमारा शरीर, इन्द्रिय, मन, बुद्धि सब-कुछ उसी विराट परमेश्वर के अवयव हैं। हम भूल से स्वयं को उन (भगवान) से पृथक् मानकर इन सबको स्वयं का मान बैठे हैं। यह सब तो उन्हीं का है, उनको समर्पित भी क्या करें?

 किसी कवि ने कहा है-

मेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कुछ है सो तोर।

तेरा तुझको सौंपते, क्या लागे है मोर।।

राजा बलि ने भगवान वामन को तीन पैर पृथ्वी दान में दे दी। भगवान ने विराट स्वरुप धारण करके दो ही पैर में पृथ्वी, अन्तरिक्ष और स्वर्ग को नाप लिया और बलि से बोले- "तीसरे पैर की भूमि बता"।

बलि ने कहा- अभी तक भोग्य का दान किया था, भोक्ता का नहीं। आप तीसरा पैर मेरे सिर पर रखिए क्यूंकि मैं पृथ्वी का भोक्ता होने के नाते इससे बड़ा हूं।

बात तो ठीक थी पर बलि शरीर, इन्द्रिय, प्राण, मन, बुद्धि, में तादात्म्य करके सीमित अहम् को अभी बचाए हुए था। इसलिए वरुण पाश में बांधा गया। बलि की पत्नी विन्ध्यावली ने प्रार्थना करते हुए प्रभु से कहा- प्रभो! आपने मेरे पति को उचित ही दंड दिया। आपने अपनी क्रीड़ा के लिए समस्त जगत् का निर्माण किया है, यह तो आपका ही है। मेरे पति की यही भूल है,जो आपकी वस्तुओं को अपनी समझ बैठा है, यह सुनते ही भगवान् ने बलि को छोड़ दिया।

जीव बलि और विन्ध्यावली शरणागति है। शरणागति जीव को बंधन से छुड़ाने वाली है।