संदर्भ:-कैंसर के इलाज के लिए तंबाकू के उपयोग का सच तंबाकू के पक्ष में शोध का सच

–प्रमोद भार्गव- तंबाकू खाने के पक्ष में आया नवीनतम शोध हैरानी में डालने वाला है। इस शोध में नई आवधारणा गढ़ी है कि तंबाकू के पौधों में पाया जाने वाला एक कण अथवा अणु मनुष्य में वजूद जमा चुकी कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने में उपयोगी है। मसलन अब तक जिस तंबाकू को कैंसर का […]

Publish: Jan 14, 2019, 03:12 PM IST

संदर्भ:-कैंसर के इलाज के लिए तंबाकू के उपयोग का सच तंबाकू के पक्ष में शोध का सच
संदर्भ:-कैंसर के इलाज के लिए तंबाकू के उपयोग का सच तंबाकू के पक्ष में शोध का सच
- span style= color: #ff0000 font-size: large प्रमोद भार्गव- /span p style= text-align: justify strong तं /strong बाकू खाने के पक्ष में आया नवीनतम शोध हैरानी में डालने वाला है। इस शोध में नई आवधारणा गढ़ी है कि तंबाकू के पौधों में पाया जाने वाला एक कण अथवा अणु मनुष्य में वजूद जमा चुकी कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने में उपयोगी है। मसलन अब तक जिस तंबाकू को कैंसर का जनक माना जाता था वहीं तंबाकू कैंसर के निदान में प्रतिरोधी दवा के रूप में काम करेगी। वैसे माना जाता है कि तंबाकू दुनिया भर में प्रत्यक्ष रूप से 40 लाख लोगों की जान लेती है। ऐसे में क्या यह शोध तंबाकू कंपनियों ने अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए प्रायोजित ढ़ंग से कराया है यह आशंका पैदा होना स्वाभाविक है। /p p style= text-align: justify ट्रोब विश्वविद्यालय के इंस्टीटयूट फॉर मालूक्यूलर सांइस के वैज्ञानिकों ने तंबाकू के पौधों के फूल में इस अणु की पहचान की है। इसमें कवक और विषाणु प्रतिरोध के अलावा कैंसर कोशिकाओं की पहचान करने और उन्हें मारने की क्षमता भी है। इस अणु को एनडी-1 नाम दीया गया है। शोध के परिणाम का प्रकाशन ई-लाइफ जर्नल में दिया गया है। प्रमुख शोधकर्ता मार्क हुलेट ने कहा है कि इसमें एक खास पदार्थ विकसित होता है। जिसके निशाने पर केवल कैंसर रहता है। जबकि स्वास्थ्य कोशिकाएं बेअसर रहती हैं। /p p style= text-align: justify तंबाकू या धूम्रपान के फेबर में यह कोई पहला शोध नहीं है। धूम्रपान से शारीरिक हानि कम दिखे इसके लिए वैज्ञानिक और बुद्विजीवियों को तंबाकू कंपनियां प्रायोजित ढ़ंग से ललचाती है। दवा कंपनियां भी इन शोधो को प्रोत्साहित करती हैं जिससे लोग खूब धूम्रपान करें और बीमार हों। इस संदर्भ में कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों के साथ एक अध्ययन केलरैडो की एन लैंडमेन ने प्रकाशित किया है। 80 लाख की संख्या में ये दस्तावेजी साक्ष्य लीगेसी तंबाकू दस्तावेज पुस्तकालय से प्राप्त हुए हैं। इन दस्तावेजों के अध्ययन की पड़ताल से पता चला कि लोगों के दिल-दिमाग पर असर डालने की दृष्टि से तंबाकू कंपनियों ने अर्थशास्त्रियों दार्शनिकों समाज विज्ञानियों और वैज्ञानिकों की गोलबंदी की। नतीजतन धूम्रपान के पक्ष में जोरदार मुहिम छेड़ दी गई। कैंसर के पक्ष में आया ताजा शोध भी इसी मायाजाल की अगली कड़ी लगता है। /p p style= text-align: justify इस अध्ययन के मुताबिक मनोवैज्ञानिक हैंस आइसेन्क और दार्शनिक रॉजर स्क्रटन इस नेटवर्क से जुड़े थे। यह नेटर्वक 1970 में वजूद में आया था। यही वह समय था जब धूम्रपान के खतरों पर गंभीर व व्यापाक बहस की शुरूआत हुई थी। दस्तावेज बताते है कि दुनिया की 7 प्रमुख सिगरेट कंपनियों की एक बैठक 1977 में हुई थीं जहां परस्पर सहयोग से काम करने का फैसला लिया गया। दलील दी गई की धूम्रपान से लोग एक-दूसरे के करीब आते हैं। यानी धूम्रपान के सामाजिक लाभ हैं। हैंस आइसेन्क ने बताया कि तंबाकू से जुड़ी बींमारियां आनुवंशिक कारणों से होती हैं। /p p style= text-align: justify इसी तरह 1985 में एक किताब स्मोकिंग एंड सोसाइटी: टुवर्ड्स ए मोर बेलेंस्ड पर्स्पेक्टिव शीर्र्षक से छपी थी। इस किताब को लिखने और प्रकाशित करने का पूरा खर्च तंबाकू उद्योग ने उठाया था लेकिन इस सहयोग का किताब में कहीं उल्लेख नहीं था। इसी तर्ज पर 1998 में रॉजर स्क्रटन ने दी टाइम्स में धूम्रपान के पक्ष में एक बेहद शर्मनाक और हस्यास्पद तर्क दिया था कि धूम्रपानी लोग स्वास्थय सेवाओं पर कम दबाव डालते हैं क्योंकि वे जल्दी मर जाते हैं । बाद में पता चला कि स्क्रटन को जापान टोबेको इंटरनेशनल से सलाना मानदेय मिलता था। तंबाकू कंपनियों ने 1990 के दशक में 50 लाख डॉलर देकर एसोसिएट्स फॉर रिसर्च इन टू दी सांइस ऑफ एन्जॉयमेंट की स्थापना कराई। यह संस्था स्वास्थ्य में शुद्वतावाद के खिलाफ प्रचार मुहिम चलाती थी। /p p style= text-align: justify तंबाकू कंपनियां प्रायोजित शोध करती हैं यह इस तथ्य से भी साबित होता है कि कुछ समय पहले कई शोध पत्रिकाओं ने निर्णय लिया था कि वे तंबाकू कंपनियों से धान लेकर जो शोध किए जा रहे हैं उनके निष्कर्ष प्रकाशित नहीं करेंगे क्योंकि ये संदिग्धा होते है। इस फैसले में अग्रणी पत्रिका प्लॉस मेडिसन रही है। इसके संपादक जिनी बार्बोर का कहना था कि वे उन हालातों और कारकों को प्राथमिकता देंगे जो सबसे ज्यादा बीमारियों का कारण बनते हैं। जाहिर है तंबाकू बीमारियों की बड़ी कारक है क्योंकि इसके सेवन से हरेक साल 40 लाख लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं। इस कड़ी में प्लॉस वन प्लॉस बायोलॉजी ब्रिटिश जर्नल ऑफ कैंसर और अमेरिकन थॉरोसिक सोसाईटी जर्नल भी शामिल हैं। /p p style= text-align: justify शोध पत्रिकाओं के इस फैसले के बाबत यह सवाल उठाया गया था कि नई दवाओं का परीक्षण अक्सर दवा कंपनियों के पैसे से होते हैं। लिहाजा इस धन से होने वाले क्लीनिकल ट्रायल में कंपनी के पक्ष में नतीजे तय करने की उम्मीद ज्यादा होती है गोया केवल तंबाकू कंपनियों के शोधों के परिणामों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला क्यों लिया गया ? इस सवाल के जवाब में बार्बोर का मत है कि कंपनियों द्वारा दवाइयों के परीक्षण में जटिलताएं तो हैं कितु दवा उपचार में लाभदायी भी हो सकती है यह उम्मीद भी बनी रहती है लेकिन तंबाकू का इस्तेमाल तो हमेशा ही हानिकारक होता हैं इसमें कोई संदेह ही नहीं है। इसलिए तंबाकू का ममला भिन्न है लिहाजा तंबाकू के बाबत कैंसर ठीक होने का जो शोध हुआ है वह शंका के घेरे में है। नतीजतन इस शोध के परिणामों को यदि प्रोत्साहित किया गया तो तंबाकू का सेवन बढ़ेगा जिसका असर मानव स्वास्थ्य के लिए घातक साबित होगा। /p