दरिन्दों को दहशत में डालेगा यह फैसला

– सुनील तिवारी- दिल्ली रेप कांड के बाद बनें नए कानून के तहत पहली बार सजा सुनाते हुए बलात्कार के आरोपियों को एक अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है। हालांकि इस फैसले के बाद आरोपियों को तुरंत फांसी मिल जाएगी, ऐसा नहीं है। उनके पास शीर्ष अदालत में गुहार लगाने,पुर्नविचार याचिका दाखिल करने तथा […]

Publish: Jan 14, 2019, 03:04 PM IST

दरिन्दों को दहशत में डालेगा यह फैसला
दरिन्दों को दहशत में डालेगा यह फैसला
- span style= color: #ff0000 font-size: large सुनील तिवारी- /span p style= text-align: justify strong दि /strong ल्ली रेप कांड के बाद बनें नए कानून के तहत पहली बार सजा सुनाते हुए बलात्कार के आरोपियों को एक अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है। हालांकि इस फैसले के बाद आरोपियों को तुरंत फांसी मिल जाएगी ऐसा नहीं है। उनके पास शीर्ष अदालत में गुहार लगाने पुर्नविचार याचिका दाखिल करने तथा सब कुछ हार जाने पर राष्ट्रपति के पास दयायाचिका का विकल्प रहेगा। /p p style= text-align: justify यह सब चलते हुए एक लंबा समय गुजर जाएगा और हो सकता है कि तब तक उनकी फांसी की सजा लटक भी जाए। फिर भी पिछले साल मुंबई के शक्ति मिल्स में अलग-अलग घटनाओं में दो युवतियों से सामूहिक बलात्कार के दोषी पाए गए तीन लोगों को मौत की सजा सुनकर ऐसे ही गर्हित .त्य से जुड़े तमाम अपराधियों के मन में दहशत जरूर पैदा होगी। उन्हें अपनी मौत के सपने जरूर आने लगेंगे। मिल रेपकांड में अपराधियों के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 376ई के तहत मृत्युदंड की मांग की गई थी। इस पर उनकी मौत की सजा पर मुहर इस कारण से लगाई गई क्योंकि अदालत ने माना है कि इन तीनों में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है। देश में इस संशोधित धारा के तहत पहली बार सजा सुनाई गई जिसे वर्ष 2012 में दिल्ली सामूहिक बलात्कार के बाद कानून में जोड़ा गया है। /p p style= text-align: justify दरअसल बलात्कार के कई मामलों में दोषी ठहराए जाने पर अधिकतम मृत्युदंड का प्रावधान है। जहां तक शक्ति मिल सामूहिक बलात्कार कांड का मामला है अदालत ने पाया कि दोषी आदतन दुष्कर्मी हैं। इस कारण ही कुछ हतों के अंतराल में वे दूसरी बार गैंगरेप की हिमाकत कर पाए। अगर पहले ही केस में उनको सख्त सजा और कैद मिल जाती तो उनको ऐसे जघन्य कांड करने का तो अवसर ही नहीं आता। खेद की बात है कि सबूतों के अभाव में कई बार अपराधी बेखौफ घूमते रहते हैं और पीड़ित व उनके परिजन समेत कानून भी बेबस हो जाता है। बलात्कार के मामले में तो घृणित अपराध के बाद भी अपराधी शेर बना रहता है क्योंकि उसके खिलाफ कई बार कोई शिकायत ही नहीं होती है। शर्म और बदनामी के कारण अक्सर रेप की घटनाओं को पर्दे में ही रहने दिया जाता है। निर्भया कांड के बाद बलात्कारियों के खिलाफ मुहिम का असर है कि पीड़ित महिलाएं मुखर होकर इंसाफ के लिए आगे आने लगी हैं। अदालतों की सक्रियता भी बढ़ी है। इसी का परिणाम है कि अदालतें बलात्कार के मामलों का स्वत: संज्ञान लेकर भी कार्रवाई कर रही हैं। कोलकाता में एक बलात्कार कांड का वहां की अदालत ने स्वत: संज्ञान लेकर कार्यवाही शुरू की है। /p p style= text-align: justify इसी प्रकार के दिल दहला देनेवाले सूर्यानेल्ली बलात्कार मामले में 18 साल बाद केरल उच्च न्यायालय ने प्रमुख आरोपी धर्मराजन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई और 23 अन्य आरोपियों की सजा को वैधा ठहराया है। माना जा सकता है कि बलात्कार के केसों में अदालतों की संवेदनशीलता का परिणाम है कि कितने वर्षो बाद सूर्यानेल्ली के हक की लड़ाई मंजिल तक पहुंच पाई है। औरतों को हवस का शिकार बनाने वालों के गले पर यह फैसला तलवार की तरह लटकता दिखेगा जो निर्भया हादसे की प्रतिक्रिया में सख्त बनाई गई भारतीय दंड संहिता की कोख से निकला है। इन तीनों को दंड संहिता की संशोधित धारा 376-ई के तहत सजा दी गई है जिसके तहत बार-बार बलात्कार के दोषियों को मौत से कम कुछ दिया ही नहीं जाना है। बेशक तीनों दोषी कम उम्र के नौजवान थे लेकिन बेबस औरतों पर जुल्म ढाने के ऐसे आदी बन चुके थे कि उनमें सुधार की कोई गुंजाइश कोर्ट को नहीं दिखी। इन तीनों ने पहले भी इसी बंद कारखाने के परिसर में महिलाओं को अपने जुल्म का शिकार बनाया था। इनमें एक टेलीफोन ऑपरेटर भी शामिल थी जिसने शर्मिदगी से बचने के लिए जुबान पर ताला लगा रखा था। लेकिन फोटा जर्नलिस्ट को पुलिस तक पहुंचते देख उसमें भी हिम्मत जग गई और वह भी अपनी पीड़ा बताने थाने पहुंच गई। उसके मामले में भी न्याय का पहिया त्वरित गति से चला और इन तीनों के साथ इनके दो और साथियों को धारा 376-डी के तहत ता-उम्र कैद की सजा दे दी गई। इस बार इन तीनों को लगातार बलात्कार का दोषी पाया गया और फांसी पर लटकाने के आदेश दे दिए गए। इन दोनों फैसलों के नतीजे बड़े दूरगामी हैं। न्याय की सुस्त चाल के लिए उसे कोसने वाले अब ऐसी त्वरित गति पर अचंभित होंगे और उनमें देश की न्याय व्यवस्था पर विास भी बढ़ेगा। विधि मंत्रालय के आंकड़े खुद बताते हैं कि वर्ष 2012 में बलात्कार के एक लाख से अधिक लंबित मामलों में महज पंद्रह फीसद फैसले के मुकाम तक पहुंच पाए। इसमें भी दंड पाने वालों का प्रतिशत महज पच्चीस फीसद के आंकड़े को छू पाया-पचहत्तर फीसद आरोपी सबूतों के अभाव में बच निकले। कुकर्मियों की शिकार ऐसी पीड़िताएं जो शर्म सामाजिक प्रताड़ना और अदालती दांवपेचों के डर से जुबान पर ताला लगा लेती हैं ऐसे फैसलों के बाद न्याय का दरवाजा खटखटाने का साहस जुटाने में समर्थ हो पाएंगी। लेकिन यह फैसला तमाम तरह के विवादों को भी पैदा करेगा। कानून के जानकार और एक्टिविस्ट मौत की सजा का पुरजोर विरोध कर रहे हैं- उनका मत है कि ऐसा सख्त कानून दोषियों को सुधारने की जगह उनसे बदला लेता प्रतीत होता है। वे कहते हैं कि महज हवस की रौ में बह जाने वाले ऐसे नौजवानों के साथ दुर्दांत अपराधियों वाला सलूक उचित नहीं है- उस पर यह कानून जज के हाथ भी बांध देता है और उनके अपने विवेक के इस्तेमाल की आजादी छीन लेता है। /p