जानलेवा बनते चिकित्सा के सरकारी शिविर

– सुनील तिवारी – छत्तीसगढ़ के विलासपुर में परिवार कल्याण योजना के तहत लगाए गए सरकारी नसबंदी शिविर में जो कुछ हुआ, वह बेहद दुखद और चिन्ताजनक है। इस घटना ने एक बार फिर से सरकारी उसने सरकारी चिकित्सा व्यवस्था पर कई सवालिया निशान लगा दिये हंै। इसमें डॉक्टरों की लापरवाही साफ तौर पर झलकती […]

Publish: Jan 18, 2019, 12:25 AM IST

जानलेवा बनते चिकित्सा के सरकारी शिविर
जानलेवा बनते चिकित्सा के सरकारी शिविर
strong - सुनील तिवारी - /strong p style= text-align: justify छत्तीसगढ़ के विलासपुर में परिवार कल्याण योजना के तहत लगाए गए सरकारी नसबंदी शिविर में जो कुछ हुआ वह बेहद दुखद और चिन्ताजनक है। इस घटना ने एक बार फिर से सरकारी उसने सरकारी चिकित्सा व्यवस्था पर कई सवालिया निशान लगा दिये हंै। इसमें डॉक्टरों की लापरवाही साफ तौर पर झलकती है। /p p style= text-align: justify इस घटना को लेकर देष भर में लोगों का गुस्सा और तीखी प्रतिक्रिया जायज है। छत्तीसगढ. के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने घटना की जांच के आदेश दिए हैं। ऑपरेशन करने वाले चार डॉक्टरों को निलंबित कर दिया गया है। मृत महिलाओं के परिजनों को आर्थिक मदद की घोषणा भी कर दी है। यह सारी औपचारिकताएं हैं जो ऐसी घटनाओं के बाद सरकार सबसे पहले करती है पर इससे मामले की गंभीरता कम नहीं होती। मुआवजे की घोषणा कर देने और जांच कमेटी बना देने मात्र से हादसे की भरपाई हो जायेगी? समझ में आता कि सरकार ऐसी घटनाओं से सीख क्यों नहीं लेती?यह पहला अवसर नहीं है जब छत्तीसगढ़ के सरकारी शिविर में लापरवाही हुई हो। इसके पहले भी कई नेत्र चिकित्सा शिविर आयोजित किए गए जिनमें कई मरीजों के नेत्रों की रोशनी ही चली गई। छत्तीसगढ़ में ही पिछले तीन वर्षाे में आंखों के ऑपरेशन के कैंपों में 60 से अधिक लोग अपनी दृष्टि खो चुके हैं। सवाल यह है कि सरकारी चिकित्सा शिविरों में क्यों इतनी लापरवाही बरती जा रही है। राज्य सरकार क्यों इनके प्रति सतर्क नहीं होती। कोई भी धनराशि इंसान के जीवन का मूल्य नहीं हुआ करती। थोड़ी देर के लिए पीडि़त परिवार को भ्रम में डाला जा सकता है लेकिन जब भी परिवार के लोगों को मृत व्यक्ति के स्मरण का दंश जीवन भर सालता है। खास बात यह है कि जहां यह घटना हुई वह बिलासपुर क्षेत्र राज्य के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल का निर्वाचन क्षेत्र है इसलिए उनसे इस्तीफे की मांग भी की जा रही है। लेकिन आज के दौर में इतनी नैतिकता कहां कि कोई मंत्री ऐसी लापरवाहीपूर्ण घटनाओं को अपनी गलती मानते हुए अपना पद छोड. दे। हालांकि इस मामले की निष्पक्ष जांच तो होनी ही चाहिए और सच्चाई को बाहर लाने का काम स्वास्थ्य मंत्री को करना चाहिए। जन कल्याण के लिए सरकारी स्तर पर शिविरों का आयोजन बेषक अच्छी बात है लेकिन उनसे यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि वे दोषरहित हों। अधिकाधिक लोग ऐसे शिविरों में शामिल हों इसके लिए कई राज्य प्रोत्साहन राशि का प्रावधान रखते हैं बेहतर हो इसके साथ-साथ सरकारी शिविरों में गुणवत्ता वाले कार्य का भी प्रावधान हो। ताजा घटना सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं में आम आदमी की अनदेखी उसके स्वास्थ्य के प्रति उपेक्षा और लापरवाही का ताजा उदाहरण है। इस शिविर में 83 महिलाओं की नसबंदी की गई। /p p style= text-align: justify ग्रामीणों का आरोप है कि एक डॉक्टर ने अपने कुछ सहयोगियों के साथ महज छह घंटों में इन सभी महिलाओं का आपरेशन कर दिया। राज्य में सरकार ने नसबंदी के टारगेट दे रखे हैं। चिकित्सक इस लक्ष्य को जल्द से जल्द प्राप्त कर अपनी पीठ थपथपाने का मौका तलाशते रहते हैं। लक्ष्य को पूरा करने के चक्कर में डॉक्टर और उनके सहायक किस तरह कार्य कर रहे हैं यह शिविर इसका बेहतरीन नमूना है। शनिवार को इस शिविर में चंद घंटों के भीतर दूरबीन पद्धति से 83 महिलाओं की नसबंदी की गई। ग्रामीणों का आरोप है कि एक ही डॉक्टर ने अपने कुछ सहयोगियों के साथ महज कुछ घंटों में इन सभी महिलाओं का आपरेशन कर दिया। सामान्य शल्य चिकित्सा की तुलना में दूरबीन पद्धति ज्यादा सुरक्षित मानी जाती है लेकिन शिविर में इसके विपरीत हुआ। जैसा कि कहा जा रहा है ऑपरेशन के दौरान वहां कोई एनेस्थेसिया विशेषज्ञ भी नहीं था। साथ में उपकरणों के की पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी। इस तरह के शिविरों में अक्सर यह लापरवाही होती है। आपरेशन कर सभी महिलाओं को उनके घर भेज दिया गया। लेकिन घर पहुंचते ही उनकी हालत बिगड़ने लगी। इस पर जिला अस्पताल में महिलाओं को ले जाया गया। इससे पहले की कोई स्थिति को समझ पाता उससे पहले ही कई महिलाओं की जान चली गई। जो बातें कही जा रही हैं उसकी सच्चाई की जांच की जानी चाहिए। महिलाओं की नसबंदी किस दशा में हो रही है कैसी हो रही है आपरेशन के बाद जो सावधानियां बरती जानी चाहिए उनका ध्यान रखा जा रहा है या नहीं इन सब पर स्वास्थ्य विभाग की नजर होनी चाहिए थी। यह नहीं भूलना चाहिए कि परिवार कल्याण कार्यक्रम एवं जनसंख्या नियंत्रण की सफलता का मुद्दा देश के विकास से जुडा मुद्दा है। समय-समय पर इसी तरह की कई घटनाएं हुईं जिससे परिवार कल्याण के कार्यक्रम को संदेह की नजर से देखा जाता रहा है। लोगों की गलतफहमी दूर करने तथा उन्हें परिवार नियोजन का महत्व समझाने में वर्षों की मेहनत लगी है। /p p style= text-align: justify अब जब धीरे-धीरे इस पर लोगों ने विश्वास करना शुरू किया है तो इस तरह की घटनाएं अब तक किए गए प्रयासों को आघात पहुंचाती हैं । रमन सरकार को सचेत हो जाना चाहिए। इस तरह के हादसे के दूरगामी परिणाम सरकार की बुनियाद हिला सकते हैं। बेहतर हो कि सरकार पूरी पड़ताल कर दोषियों के विरुद्ध सख्त से सख्त कार्रवाई करे ताकि इस तरह के प्रकरणों की पुनरावृत्ति रोकी जा सके। /p