Lata Mangeshkar: स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर, जिनकी आवाज ही पहचान है

बुलबुले हिंद, स्वर कोकिला कही जाने वाली लता मंगेशकर का 91वां जन्मदिन, जिनकी तारीफ में उस्ताद बड़े गुलाम अली ख़ान ने कहा था कि वे गलती से भी कभी बेसुरा नहीं गातीं

Updated: Sep 28, 2020, 11:13 PM IST

Photo Courtesy: indiawav
Photo Courtesy: indiawav

स्वर कोकिला लता मंगेशकर का आज 91वां जन्मदिन है। इंदौर में 28 सितंबर 1929 को पंडित दीनानाथ मंगेशकर के घर पर लता का जन्म हुआ था। वे पांच भाई-बहनों के बीच सबसे बड़ी हैं। लता मंगेशकर के जन्मदिन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें शुभकामनाएं दी हैं। बालीवुड समेत देशविदेश से उन्हे जन्मदिन की बधाई मिल रही है।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ट्वीट संदेश के माध्यम से उनके स्वस्थ और दीर्घायु जीवन के लिए प्रार्थना करता की है। उन्होंने लिखा है कि लता दीदी देशभर में जाना-पहचाना नाम हैं। मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं कि मुझे हमेशा उनका स्नेह और आशीर्वाद मिलता रहता है।'

 

वहीं कान्ट्रोवर्सी क्वीन एक्ट्रेस कंगना रनोत ने भी लता मंगेशकर को बधाई दी है। कंगना ने लिखा है कि 'महान लता मंगेशकर जी को जन्मदिन की ढेर सारी बधाइयां। कुछ लोग जो कुछ भी करते हैं एक मन से और पूरी तरह ध्यान लगाकर करते हैं। जिसकी वजह से ना केवल वे उसमें उत्कृष्टता प्राप्त करते हैं बल्कि उस काम का पर्याय भी बन जाते हैं। ऐसी ही एक शानदार कर्मयोगी को मेरा नमन।'

अपने करियर में 30 हजार से ज्यादा गाने गाने का रिकॉर्ड

लता मंगेशकर ने 1942 में महज 13 साल की उम्र में पहली मराठी फिल्म ‘पहली मंगलागौर’ में अपनी आवाज दी थी। लता मंगेशकर ने 1947 में पहली बार हिन्दी फिल्म आपकी सेवा में गाना गया। जिसके बाद उन्होने कभी पीछे मुडकर नहीं देखा। सिल्वर स्क्रीन पर शायद ही कोई एक्ट्रेस हो जिसके लिए उन्होंने गाना नहीं गया हो। मधुबाला से लेकर माधुरी दीक्षित और काजोल तक सभी के लिए लता मंगेशकर ने प्लेबैक सिंगिग की है।

20 से अधिक भाषाओं में उन्होंने 30 हज़ार से ज्यादा गाने गए हैं। 1991 में ही गिनीस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने माना था कि वे दुनिया भर में सबसे अधिक रिकॉर्ड की गई गायिका हैं। इनमें भजन, ग़ज़ल, क़व्वाली शास्त्रीय संगीत और फ़िल्मी गानों को बड़ी शिद्दत से गाया है। उन्हे हर तरह का गाना गाने में महारत हासिल है। बेमिसाल आवाज की धनी लता ने ताउम्र रियाज़ के नियम हमेशा पालन किया।   

कई फिल्मों में एक्टिंग भी कर चुकी हैं लता

पांच साल की उम्र से ही लता अपने पिता के साथ सुर साधना में लग गई थी। पिता की मौत के बाद उन्हे एक्टिंग करनी पड़ी। लेकिन उन्हे एक्टिंग बिल्कुल पसंद नहीं थी। लेकिन गरीबी की वजह से उन्होंने कुछ हिंदी और मराठी फिल्मों में एक्टिंग की। उन्होने 1942 से 1946 तक मंगला गौर, माझे बाल, गजभाऊ, बड़ी मां, जीवन यात्रा जैसी फिल्मों में एक्टिंग की। दरअसल नवयुग चित्रपट मूवी कंपनी के मालिक मास्टर विनायक, मंगेशकर परिवार के नजदीकी लोगों ने लता को एक्टिंग और गायन में मौके दिलाए।

 शमशाद बेगम और नूरजहां के दौर में लता ने बनाई अपनी जगह

1945 में लता मंगेशकर मुंबई आ गईं, और भिंडीबाजार घराने के उस्ताद अमन अली खान से भारतीय शास्त्रीय संगीत की तालीम ली। वसंत देसाई और गुलाम हैदर जैसे संगीतकारों के सम्पर्क में लता आईं और उनका करियर निखरने लगा। लता के गुलाम हैदर मेंटर बन गए। उन्होंने लता मंगेशकर से 'मजबूर' (1948) में एक गीत 'दिल मेरा तोड़ा, मुझे कहीं का ना छोड़ा' गवाया। यह गीत लताजी का पहला सुपर हिट माना जा सकता है। लता का फिल्मी सफर आसान नहीं था, उनका मुकाबला नूरजहां, शमशाद बेगम जैसी हस्तियों से था। लेकिन उनसे अगल लता ने अपनी शैली विकसित की। अपनी भाष सुधारी हिंदी और उर्दू के उच्चारण में महारत हासिल की।

‘आएगा आने वाला’ गाना बना करियर का टर्निंग प्वाइंट

1949 में एक फिल्म रिलीज हुई 'महल'। इसमें खेमचंद प्रकाश ने लता से 'आएगा आने वाला' गीत गवाया जिसे मधुबाला पर फिल्माया गया था। यह गीत सुपरहिट रहा। इस गीत ने एक तरह से ऐलान कर दिया कि आएगा आने वाला आ चुका है। यह गीत लता के बेहतरीन गीतों में से एक माना जाता है और आज भी सुना जाता है। इस गीत की कामयाबी के बाद लता ने फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा।

भारत रत्न, दादा साहेब फाल्के पुरुस्कार से सम्मानित हैं लता मंगेशकर

लताजी मंगेशकर देश की ऐसी महिला हैं जिन्हें भारत सरकार ने 1969 में पद्म भूषण और साल 2001 में भारत रत्न से नवाजा। वहीं उन्हे ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’, ‘दादा साहेब फाल्के पुरस्कार’ और ‘फिल्म फेयर’ जैसे कई अवार्ड्स से सम्मानित किया जा चुका है। साल 2011 में लता मंगेशकर ने ‘सतरंगी पैराशूट’ फिल्म में आखिरी बार गाना गाया।

धीमा जहर देकर मारने की हुई थी कोशिश

जानकारों का कहना है कि उन्हे 33 साल की उम्र में जहर देकर मारने की कोशिश की गई थी। लता मंगेशकर को स्लो पॉइजन दिया गया था। इस बात का खुलासा पद्मा सचदे की किताब 'ऐसा कहां से लाऊं' में किया गया है। किताब के अनुसार एक दिन लता मंगेशकर को  पेट में तेज दर्द हुआ, फिर उन्हें कई बार उल्टियां हुईं। जिसके बाद उनकी तबीयत बिगड़ती गई। वक्त पर इलाज मिल जाने की वजह से करीब 10 दिन बाद वे ठीक हुईं। इस घटना के बाद लता मंगेशकर का रसोइया भाग गया था। जहर की वजह से कई तीन महीनों तक लता मंगेशकर गाना नहीं गा सकीं थी।

लता मंगेशकर ने अपनी गायकी से लोगों का दिल जीता। ग़जल, भजन, फ़िल्मी गाना या शास्त्रीय संगीत, सभी धुनों पर लता की आवाज़ ख़ूब सजती है। लता के गुरू उस्ताद गुलाम अली खान ने लता जी के बारे में कहा था, “कमबख्त! गलती से भी कभी बेसुरा नहीं गाती”। लता मंगेशकर की सुरों पर पकड़ ही कुछ ऐसी रही है।