मणिपुर के खास तामेंगलोंग संतरे और हाथी मिर्चों को मिला GI टैग, किसानों को होगा सीधा फायदा
मणिपुर में होने वाली तामेंगलोंग संतरे और हाथी मिर्च को मिला जीआई टैग, सीएम वीरेन सिंह ने बताया मील का पत्थर, बोले- किसानों को होगा अत्यधिक फायदा

इम्फाल। मणिपुर के किसान तामेंगलोंग संतरे और हाथी मिर्च का बड़े पैमाने पर उत्पादन करते हैं। ये दोनों ही राज्य के बेहद लोकप्रिय और स्पेशल किस्में हैं। मणिपुर के स्थानीय बड़े त्योहारों में इनका खास महत्व भी है। अब खबर आई है कि राज्य के इन खास किस्मों को जियोग्राफिकल इंडिकेशन यानी GI टैग मिल गया है। मुख्यमंत्री एन वीरेन सिंह ने खुद इस बात की पुष्टि की है।
सीएम वीरेन सिंह ने ट्वीट किया, 'मणिपुर के लिए दिन की शानदार शुरुआत! मुझे यह बताते हुए बेहद खुशी हो रही है कि प्रदेश के 2 उत्पादों, हाथी मिर्च और तामेंगलोंग संतरे को जीआई टैग दिया गया है। यह मणिपुर के लिए एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है। इससे किसानों की आय में अत्यधिक वृद्धि होगी।'
What a great start to the day for Manipur!
— N.Biren Singh (@NBirenSingh) September 17, 2021
I’m really happy to share that 2 (two) products of Manipur viz Hathei Chilly & Tamenglong orange have been granted GI Tag. This is a historic milestone in the history of Manipur which will increase the income of the farmers immensely. pic.twitter.com/nFeXSE5KBQ
क्या होता है GI टैग
भारतीय संसद ने साल 1999 रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (GI) ऑफ गुड्स लागू किया था। जीआई टैग किसी भी उत्पाद के लिए एक ऐसा प्रतीक है, जो उसकी विशेष भौगोलिक उत्पत्ति, पहचान और गुणवत्ता के लिए दिया जाता है। GI टैग उस प्रोडक्ट की गुणवत्ता और उसकी विशेषता को दर्शाता है। भारत में पहली बार GI टैग साल 2004 में दार्जिलिंग की चाय को दिया गया था।
तामेंगलोंग संतरे और हाथी मिर्च की खासियत
तामेंगलोंग संतरा मूल रूप से मैंडरिन समूह की एक अनूठी प्रजाति है। यह केवल तामेंगलोंग जिले में पाई जाती है। इसे मिठास और अम्लीय स्वाद के लाजवाब मिश्रण के लिए पसंद किया जाता है। ये हर साल अक्टूबर से फरवरी तक उपलब्ध होते हैं। इनका वजन आमतौर पर लगभग 90 से 110 ग्राम होता है। सेहत के दृष्टिकोण से भी इसे बेहद उपयुक्त माना जाता है।
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हाथी मिर्च की बात करें तो ये उखरूल जिले के सिराराखोंग गांव में बसे सुदूर तंगखुल नागा के आसपास महादेव पहाड़ियों में ही होते हैं। विशिष्ट स्वाद और रंग के कारण इसे मिर्च के सबसे अच्छी किस्मों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि गांव के बुजुर्गों को पहली बार ये तब मिला था जब वे जंगलों में शिकार कर रहे थे। लोगों ने इसे कहीं और लगाने की खूब कोशिश की। लेकिन सिराराखोंग के अलावा कहीं और वैसा क्वालिटी नहीं उगता। इसलिए सिराराखोंग के ग्रामीण हाथी मिर्च को भगवान का उपहार और तंगखुल का गौरव कहते हैं।