गंभीर मानसिक स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है भारत, इलाज खर्च ने 20 फ़ीसदी परिवारों को बनाया गरीब

मानसिक स्वास्थ्य पर हुए इस सर्वे को जुलाई 2018 से दिसंबर 2018 के बीच किया गया था.. जिसमें 5.76 लाख व्यक्तियों पर आधारित यह शोध बताता है कि भारत इस समय अवसाद, चिंता, बाइपोलर डिसऑर्डर, सिजोफ्रेनिया जैसी गंभीर बीमारियों में अपने स्वास्थ्य बजट का बड़ा हिस्सा खर्च कर रहा है, जो कि कुल स्वास्थ्य संबंधी बजट का छठा हिस्सा है

Updated: Apr 13, 2023, 09:01 PM IST

Photo Courtesy: New Indian Express
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नई दिल्ली। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) की एक स्टडी में भारत में मानसिक तनाव को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। स्टडी के मुताबिक भारत इस समय गंभीर मानसिक स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है। जिसकी वजह से 20 फीसदी भारतीय परिवार गरीबी की चपेच में आ गए हैं। 

यह परिणाम एक सर्वे पर आधारित हैं, जिसमें 1.18 लाख परिवारों और 5.76 लाख लोगों को शामिल किया गया है। यह सर्वे नेशनल सैंपल सर्वे के द्वारा जुलाई 2018 से दिसंबर 2018 तक किया गया। इस स्टडी में 6,679 लोग ऐसे लोग थे जो सर्वे के दौरान मानसिक स्वास्थ्य की समस्या से पीड़ित थे। 

इस सर्वे में पाया गया कि स्वास्थ्य पर खर्च होने वाले परिवारों के बजट में से 18.1 फीसदी पैसे मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च हो रहे हैं। मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं को बाइपोलर मूड डिसऑर्डर, डिप्रेशन, डिमेंशिया के अलावा असामान्य विचार, भावनाएं और व्यवहार के तौर पर वर्गीकृत किया गया है। 

दमन और दीव (23.4 फीसदी) , हिमाचल प्रदेश (23.9 फीसदी) और सिक्किम (31.9 फीसदी) जैसे छोटे क्षेत्रों में लोगों ने मानसिक स्वास्थ्य पर अधिक खर्च किया। बड़े राज्यों में महाराष्ट्र (24.3 फीसदी) और तेलंगाना (22.2 फीसदी) में लोगों द्वारा मानसिक स्वास्थ्य पर अधिक खर्च किया गया। स्टडी के मुताबिक भारत इस समय एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहा है, जिसमें अवसाद, चिंता, बाइपोलर डिसऑर्डर, सिजोफ्रेनिया बीमारियों का छठा हिस्सा है। 

कैसे मिलेगी निजात

अध्ययन में शामिल कोच्चि स्थित अमृता इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च सेंटर में एडजंक्ट फैकल्टी डेनी जॉन ने कहा, "कुल मिलाकर 20.7 फीसदी परिवार मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के चलते गरीबी में धकेल दिए गए हैं। मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से निजात पाने के लिए जमीनी स्तर पर प्रयासों में तेजी लाने की जरूरत है ताकि बीमारी के शुरुआती दौर में ही पीड़ित व्यक्ति को पर्याप्त इलाज मिल सके। स्टडी के मुताबिक मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में होने वाले खर्चे को कम करने के लिए लोगों को वित्तीय जोखिम से सुरक्षा प्रदान करने की ज़रूरत है।