कोरोना महामारी के बीच सुपरबग 'कैंडिडा ऑरिस' भी बन सकता है बड़ा ख़तरा

बेहद खतरनाक है सुपरबग 'कैंडिडा ऑरिस', इसकी पहचान करना मुश्किल है और आम एंटीफंगल दवाएं इस पर बेअसर साबित होती हैं

Updated: Dec 12, 2020, 11:54 PM IST

Photo Courtesy: The Economic Times
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कोरोना वायरस से मची तबाही से दुनिया अभी उबर भी नहीं पाई है कि सुपरबग 'कैंडिडा ऑरिस' के रूप में इंसानों की जान के एक और दुश्मन की आहट मिलने लगी है। विश्व के कई देशों के बाद दिल्ली में भी इसके संक्रमण से 6 लोगों की मौत होने की खबर है। दिल्ली के डॉक्टर राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के बैक्टीरियोलॉजिस्ट डॉक्टर अनुपम दास की मानें तो सुपरबग 'कैंडिडा ऑरिस' एक ऐसा फंगस है, जिस पर किसी दवा का आसानी से असर नहीं होता है।

इस सुपरबग से संक्रमित इंसान की मौत का खतरा 60 फीसदी तक बढ़ जाता है। आपको बता दें कि अमेरिका में इस साल कैंडिडा ऑरिस के अब तक 1272 मामले सामने आए हैं, जो वर्ष 2018 में मिले मामलों की तुलना में दोगुने हैं। यह एक नए खतरे का संकेत है। अमेरिकी स्वास्थ्य एजेंसी CDC की रिपोर्ट के अनुसार कई देशों में इस फंगस के गंभीर मामले उजागर हुए हैं। यह इंसान के खून के माध्यम से पूरे शरीर में सर्कुलेट हो सकता है। इसका पता खून की जांच से चलता है।  

 अस्पताल की चीजों में मौजूद होता है सुपरबग 'कैंडिडा ऑरिस'

यह सुपरबग कैंडिडा ऑरिस अस्पताल की हर चीज पर मौजूद रहता है। खासतौर से अस्पताल की चादरों, बेड की रेलिंग, दरवाजे और मेडिकल उपकरणों पर इस सुपर वायरस की मौजूदगी की आशंका अधिक होती हैं। इन वस्तुओं के संपर्क में आते ही यह इंसान की स्किन तक पहुंच जाता है। 

आम एंटीफंगल ड्रग्स नहीं हैं कारगर

सुपरबग 'कैंडिडा ऑरिस' पर आम एंटीफंगल दवाओं का असर नहीं होता। इसलिए संक्रमित होने पर इलाज करना मुश्किल हो जाता है। यह इंसान के शरीर में खून के जरिए घाव करता है। कई बार कान में भी इसका संक्रमण फैल जाता है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यह नाक और यूरीन के सैंपल में भी पाया जाता है।

 अस्पताल में भर्ती मरीजों के लिए 'कैंडिडा ऑरिस' से ज्यादा खतरा

इस सुपरबग से सबसे ज्यादा खतरा उन लोगों को है, जो अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती हैं। जिन्हें ट्यूब के जरिए फीडिंग या ब्रीदिंग करवाई जा रही है उन्हें भी इसके इंफेक्शन का खतरा अधिक होता है। डायबिटिक और एंटीबायोटिक-एंटीफंगल दवाएं नियमित रूप से लेने वालों को भी इस सुपर बग से ज्यादा खतरा होता है।

दिल्ली की रिसर्च के नतीजे चिंताजनक हैं

आपको बता दें कि नई दिल्ली के वल्लभ पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट में मेडिकल मायकोलॉजी की प्रोफेसर अनुराधा चौधरी ने इस पर एक रिसर्च की। दिल्ली के आईसीयू में भर्ती मरीजों पर की गई इस रिसर्च में 15 में से 10 मरीजों के खून में कैंडिडा फंगल इंफेक्शन और ड्रग रेसिस्टेंट बग का खुलासा हुआ है। कैंडिडा फंगल इंफेक्शन वाले मरीजों में से 6 की मौत भी हो गई। मरीजों की मौत का कारण अस्पताल से संक्रमण होना हो सकता है।

डॉक्टरों की मानें तो इस सुपरबग की पहचान एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है। कोविड 19 की तरह ही कैंडिडा से बचाव के लिए भी योजना बनानी जरूरी है। किसी भी मरीज में सुपरबग की पुष्टि के लिए स्किन के स्वैब, ब्लड और यूरीन की जांच करनी पड़ सकती है। इस सुपर बग की पुष्टि होने पर तीन एंटीफंगल दवाओं पर विचार किया जाता है, जिनसे इस संक्रमण का खात्मा किया जा सके। अगर इन तीन दवाओं में किसी ने काम नहीं किया, तो इस सुपरबग का खात्मा बेहद मुश्किल हो जाता है।