World Smile Day 2025: आखिर क्यों है अक्टूबर का ये दिन बेहद खास, जाने स्माइल डे के पीछे की असल कहानी

हर साल अक्टूबर के पहले शुक्रवार को दुनियाभर में वर्ल्ड स्माइल डे मनाया जाता है। 1963 में स्माइली फेस बनाने वाले हार्वे बॉल ने 1999 में इसकी शुरुआत की थी। मुस्कान न सिर्फ मूड अच्छा करती है बल्कि तनाव और डिप्रेशन भी कम करती है।

Updated: Oct 03, 2025, 07:36 PM IST

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में चेहरे पर टेंशन की लकीरें आम हो गई हैं। ऑफिस की डेडलाइन, कभी घर की जिम्मेदारियां, कभी रिश्तों की खींचतान तो कभी कल की चिंता, जिंदगी इन चीजों में इतनी उलझ चुकी है कि लोग धीरे-धीरे मुस्कुराना ही भूलते जा रहे हैं। लेकिन सच तो ये है कि होंठों पर एक छोटी-सी मुस्कान भी जिंदगी को आसान बना सकती है। और इसी सोच को सेलिब्रेट करने के लिए हर साल अक्टूबर के पहले शुक्रवार को मनाया जाता है वर्ल्ड स्माइल डे।

कब और क्यों मनाया जाता है?
दुनियाभर में हर साल अक्टूबर के पहले शुक्रवार के दिन को वर्ल्ड स्माइल डे के रूप में मनाया जाता है। इस बार ये खास दिन आज यानी 3 अक्टूबर को सेलिब्रेट किया जा रहा है। इस दिन का मैसेज साफ है, खुद भी मुस्कुराओ और दूसरों को मुस्कुराने का कारण दो। पॉजिटिविटी का यही सिंपल मंत्र इस दिन को खास बनाता है।

एक स्माइली फेस से शुरू हुई कहानी
इस दिन के शुरुआत की बात करें तो इसकी कहानी भी काफी दिलचस्प है। ये बात है सन् 1963 की, उस दौर में मशहूर अमेरिकी कलाकार हार्वे बॉल ने वो फेमस पीला स्माइली फेस बनाया था। उस वक्त उन्हें भी नहीं पता होगा कि उनका वो डिजाइन आज के समय में कितना उपयोग किया जाएगा। आज सोशल मीडिया से लेकर टी-शर्ट और विज्ञापनों तक हर जगह वो स्माइली डिजाइन दिखाई देती है।

हालांकि, आज के समय के साथ ही उस वक्त भी इसका इस्तेमाल काफी हो रहा था। हार्वे को यह चिंता सताने लगी कि लोग इस स्माइली को तो खूब इस्तेमाल कर रहे हैं, मगर इसके पीछे की असली भावना, जो कि दयालुता और पॉजिटिविटी है, वो कहीं ना कहीं खोती जा रही है। तभी उन्होंने ठान लिया कि दुनिया को असली मुस्कान का महत्व बताना होगा। नतीजा यह रहा कि साल 1999 में पहला वर्ल्ड स्माइल डे मनाया गया और तब से लेकर अब तक यह दिन एक ग्लोबल सेलिब्रेशन बन गया।

मुस्कुराने का साइंटिफिक फायदा
आगे बढ़ने से पहले अब जरा मुस्कुराने के पीछे के साइंस को भी समझ लीजिए। रिसर्च कहती है कि जब आप मुस्कुराते हैं तो दिमाग में एंडोर्फिन, सेरोटोनिन और डोपामाइन जैसे हैप्पी हार्मोन रिलीज होते हैं। यह आपको अंदर से खुश और रिलैक्स महसूस कराते हैं। यानि मुस्कुराना सिर्फ इमोशनल थेरेपी नहीं बल्कि एक तरह की नेचुरल मेडिसिन है जो तनाव, चिंता और डिप्रेशन से लड़ने में मदद करती है।

कैसे मना सकते हैं वर्ल्ड स्माइल डे?
इस दिन को मनाने का कोई बड़ा खर्चा या तैयारी नहीं चाहिए होती है, बस छोटी-छोटी चीजें ही काफी हैं। किसी अनजान शख्स को देखकर हल्की-सी मुस्कान बिखेर दीजिए, किसी बुजुर्ग का हाथ थाम लीजिए, किसी जरूरतमंद को खाना खिला दीजिए या फिर किसी दोस्त को बस एक थैंक यू कह दीजिए। कई स्कूल और संस्थाएं बच्चों को स्माइली बैज पहनाकर, मोटिवेशनल कहानियां सुनाकर और दयालुता के छोटे-छोटे काम सिखाकर इस दिन को सेलिब्रेट करती हैं।

डिजिटल जमाने में मुस्कान का असली महत्व
आज के डिजिटल दौर में जब रिश्ते भी मोबाइल और स्क्रीन तक सिमट गए हैं वहां मुस्कान की अहमियत और बढ़ गई है। एक इमोजी वाली स्माइल भी किसी का दिन बना सकती है। लेकिन असली जादू तो तभी है जब आपकी मुस्कान सचमुच किसी के चेहरे पर रौनक ला दे। यही वर्ल्ड स्माइल डे का असली मैसेज है, स्क्रीन पर नहीं, असल जिंदगी में मुस्कुराइए और मुस्कान बांटिए।